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उपचुनाव घाटशिला : किसका घाट, कहां की शिला!

by Shyam Kishor Choubey
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Jamshedpur : घाटशिला विधानसभा क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव का परिणाम चाहे जो हो, राज्य की इंडिया ब्लॉक वाली हेमंत सोरेन की सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़नेवाला। विधानसभा के पूर्ण चुनाव में पिछले साल इंडिया ब्लॉक को कुल जमा 81 सीटों के सापेक्ष 56 सीटें मिली थीं। यह अपार बहुमत बतलाता है कि यदि उपचुनाव उसके हाथ से फिसल भी जाता है तो फौरी तौर पर उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़नेवाला, लेकिन कुछ तो प्रभाव जरूर पड़ेगा।

यदि झामुमो जीत जाता है तो भी सत्ता पक्ष या प्रतिपक्ष पर कोई असर नहीं पड़ने का, लेकिन चंपाई सोरेन पर प्रभाव जरूर पड़ेगा। घाटशिला का घाट फिलहाल झामुमो का है, देखना यह है कि इस उपचुनाव में 60 किलोमीटर दूर जिलिंगगोड़ा के रहवासी बाबूलाल सोरेन की शिला गड़ पाती है या नहीं। यहां साल भर के अंदर वे दूसरी मर्तबा सियासी पत्थलगड़ी करने आये हैं, हालांकि पहली बार नंवबर 2024 में वे तकरीबन 22 हजार मतों से पिछड़ गये थे।
इस सीट पर दिवंगत शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के पुत्र सोमेश सोरेन के मुकाबले पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में भाजपा विधायक चम्पाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन खड़े हैं। सवाल इन्हीं दोनों की विरासत का है, लेकिन असल प्रतिष्ठा तो चम्पाई सोरेन की फंसी हुई है।
चम्पाई हों कि दिवंगत रामदास सोरेन, दोनों ही 2019 में झामुमो के बैनर तले चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। दोनों में पुराना याराना था और दोनों ही कोल्हान में झामुमो के संताल चेहरे थे, हालांकि पद और पहचान में चम्पाई बीस पड़ते थे। पिछले साल फरवरी 2024 में चम्पाई इन्सिडेंटल मुख्यमंत्री बने तो तकरीबन सात महीने बाद रामदास सोरेन इन्सिडेंटल शिक्षा मंत्री बनाये गये थे।

31 जनवरी 2024 को जब ईडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को रांची में जमीन घोटाला का आरोप लगा जेलबंद कर दिया था, तब इन्सिडेंटली चम्पाई को मुख्यमंत्री की कुर्सी हाथ लग गई थी। 28 जून 2024 को हेमंत बेलआउट हुए तो चम्पाई की कुर्सी खिसक गई। वे नाराज होकर भाजपा में चले गये। इसी घटना की भरपाई में रामदास सोरेन को इन्सिडेंटली मंत्री बनाया गया था। नवंबर 2024 के चुनाव में वे चम्पाई के इसी बेटे बाबूलाल सोरेन को हरा कर अपने जीवन काल में तीसरी बार विधानसभा पहुंचे तो स्वाभाविक तौर पर उनको एक बार फिर मंत्री की कुर्सी मिल गई थी। दुर्भाग्य से वे साल भर के अंदर 15 अगस्त 2025 को चल बसे तो इस उपचुनाव की नौबत आ गई है।
अब सोचना यह है कि अपने पिता की सीट सोमेश निकाल लेते हैं तो क्या प्रभाव पड़ेगा और यदि बाबूलाल जीत जाते हैं तो उसका राजनीतिक फलितार्थ क्या हो सकता है। सोमेश के जीतने पर बाबूलाल सोरेन का जो होगा, सो होगा, उनके पिता चम्पाई सोरेन की प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी। भाजपा कहेगी कि उनको कोल्हान टाईगर समझ कर वह अपने साथ ले गई थी लेकिन वे तो बगल की सीट भी लगातार दो प्रयासों में नहीं निकाल सके। यदि बाबूलाल के हाथ विजयश्री लगती है तो निश्चय ही चम्पाई का रूतबा बढ़ जाएगा। पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी पांच आदिवासी सीटें गंवा चुकी भाजपा को बड़ा धक्का तब लगा था, जब पांच महीने बाद विधानसभा चुनाव में सुरक्षित 28 आदिवासी सीटों में से भाजपा की झोली में केवल एक सीट आई थी, वह भी इन्हीं चम्पाई सोरेन की।

बाबूलाल के जीतने का दूसरा असर यह होगा कि मुख्यमंत्री सह झामुमो प्रमुख हेमंत सोरेन की प्रतिष्ठा पर आंच आएगी, सो आएगी, राज्यसभा चुनाव थोड़ा कठिन हो जाएगा। झारखंड कोटे में राज्यसभा की दो सीटें हैं, जबकि वोटर विधायक हैं 81। इस स्थिति में जिस प्रत्याशी को 28 विधायकों के वोट मिल जाते हैं, वह विजयी होता है। फिलहाल इंडिया ब्लॉक के पास 56 विधायक हैं, जो दोनों ही राज्यसभा सीटें निकालने के लिए पर्याप्त हैं। उपचुनाव में यदि घाटशिला सीट झामुमो के हाथ से निकल जाती है तो राज्यसभा चुनाव में उसे एक वोट के लिए चिरौरी करनी पड़ेगी या सीट गंवाने की नौबत आ सकती है।

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