Giridih (Jharkhand) : भारतीय सनातन संस्कृति के महान पर्व शारदीय नवरात्र के दौरान गिरिडीह शहर का माहौल पूरी तरह से भक्तिमय हो गया है। इस वर्ष गजराज पर मां दुर्गा के आगमन से भक्तों में खासा उत्साह है। झारखंड के गिरिडीह इलाके में शक्ति और साधना का यह पर्व पिछले लगभग दो सौ वर्षों से अधिक समय से मनाया जा रहा है।
18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यहां टिकैत (राजाओं) ने शुरू की थी मां की आराधना
इतिहासकारों के अनुसार, 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यहां के टिकैत (राजाओं) ने अपनी रियासतों में जगतजननी मां दुर्गा की आराधना शुरू की थी। शाही खजाने से बड़े धूमधाम से यह अनुष्ठान संपन्न होता था। समय के साथ, ये दुर्गा मंडप भव्य मंदिरों में बदल गए हैं और स्थानीय लोगों के हृदय में तीर्थस्थल का स्थान रखते हैं।
महासप्तमी से विजयादशमी तक बदलते हैं मां के मुखमंडल के भाव
गिरिडीह शहर में स्थित श्री श्री आदि दुर्गा मंडा (बड़ी मईया) का दरबार अपनी अद्भुत और निराली महिमा के लिए प्रसिद्ध है। यहां की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि महासप्तमी से लेकर विजयादशमी तक मां के मुखमंडल के भाव बदलते हुए प्रतीत होते हैं, जो भक्तों को जीवंत एहसास कराते हैं।
• महासप्तमी के दिन मां का मुखमंडल एक बेटी के अपने मायके आने जैसा सुंदर, ममतामयी और सलोना रूप दर्शाता है।
• महाअष्टमी और नवमी के दिन मां का तेज और आकर्षक मुखमंडल धैर्य के साथ जीवन जीने का संदेश देता हुआ दिखता है।
• विजयादशमी के दिन मां का आलौकिक मुखमंडल अत्यंत शांत और सौम्य हो जाता है, जिसमें अपनों से बिछुड़ने की पीड़ा स्पष्ट दिखाई देती है। विदाई के समय, मां के निर्मल हृदय में भक्तों से एक वर्ष के लिए बिछुड़ने का विरह भाव स्पष्ट रूप से महसूस होता है।
मूर्तिकार हाथों से गढ़ते हैं जीवंत प्रतिमा
इस दरबार की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि आधुनिकता के इस दौर में भी प्रतिमा गढ़ने में सांचों का उपयोग नहीं किया जाता है। मूर्तिकार अपने हाथों से प्रतिमा गढ़ते हैं, जिससे भक्तों को जगतजननी के जीवंत रूपों के दर्शन होते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, चाहे संतान सुख की कामना हो, मनचाहा वर, रोगी को स्वस्थ काया या केस-मुकदमों में सफलता, ‘बड़ी मईया’ के दरबार में भक्तों की हर मुराद पूरी होती है।