Gumla (Jharkhand) : झारखंड के गुमला जिले के चैनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में एक बार फिर स्वास्थ्य विभाग की घोर लापरवाही सामने आई है। इस बार एंबुलेंस की अनुपलब्धता और प्रशासनिक उदासीनता ने एक 55 वर्षीय घायल व्यक्ति की जान ले ली, जिससे पूरे जिले के स्वास्थ्य महकमे की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। मरीज की मौत के बाद स्थानीय लोगों में काफी आक्रोश व्याप्त है।
कुल्हाड़ी के हमले में गंभीर रूप से घायल हो गए थे अलबन तिर्की
यह घटना अलबर्ट एक्का जारी थाना क्षेत्र के रौशनपुर गांव की है। 55 वर्षीय अलबन तिर्की पर कथित रूप से विक्षिप्त व्यक्ति प्रदीप खलखो ने कुल्हाड़ी से सिर पर जानलेवा हमला कर दिया, जिससे वह लहूलुहान होकर गंभीर रूप से घायल हो गए। घटना की सूचना मिलते ही पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची और मानवीयता दिखाते हुए अलबन तिर्की को प्राथमिक उपचार के लिए चैनपुर सीएचसी लेकर आई। अस्पताल के डॉक्टरों ने घायल की स्थिति की गंभीरता को देखते हुए फौरन उसे उच्च चिकित्सा के लिए गुमला रेफर कर दिया।
ढाई घंटे तड़पता रहा मरीज, नहीं मिली 108 एंबुलेंस
रेफर किए जाने के बाद ही वह भयावह स्थिति शुरू हुई, जिसने मरीज की जान ले ली। गंभीर रूप से घायल अलबन तिर्की लगभग ढाई घंटे तक अस्पताल में तड़पते रहे, लेकिन उन्हें गुमला ले जाने के लिए एंबुलेंस उपलब्ध नहीं हो सकी। स्वास्थ्यकर्मियों ने बार-बार 108 हेल्पलाइन से संपर्क किया, लेकिन हर बार निराशा हाथ लगी। हेल्पलाइन से यह कहकर पल्ला झाड़ लिया गया कि उस समय नजदीक में कोई एंबुलेंस उपलब्ध नहीं है।
अस्पताल प्रशासन के लाख प्रयासों के बावजूद, घाघरा से एंबुलेंस पहुंचने में दो घंटे से अधिक का समय लग गया। दुर्भाग्यवश, जब तक एंबुलेंस पहुंची, तब तक अमूल्य समय बीत चुका था और गंभीर रूप से घायल अलबन तिर्की ने दम तोड़ दिया।
मौके पर एसीएमओ मौजूद, फिर भी ठोस पहल नहीं
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जिस समय यह दुखद घटना हो रही थी, उस वक्त एसीएमओ (अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी) डॉ. धनुर्धर सुंब्रई स्वयं अस्पताल में मौजूद थे। वह अस्पताल में एक अवैध वसूली प्रकरण की जांच के सिलसिले में पहुंचे थे। ग्रामीणों ने जब उन्हें एंबुलेंस न मिलने और मरीज की बिगड़ती स्थिति के बारे में बताया, तो आरोप है कि उन्होंने कोई ठोस पहल नहीं की, जिससे मरीज को समय पर रेफर किया जा सकता।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि अस्पताल परिसर में उस समय सरकारी वाहन मौजूद था, जिसका उपयोग आपात स्थिति में मरीज को गुमला पहुंचाने के लिए किया जा सकता था। लेकिन, स्वास्थ्यकर्मी और अधिकारी केवल कागजी कार्रवाई और नियमानुसार 108 का इंतजार करने में उलझे रहे। इस लापरवाही के कारण एक जीवन एंबुलेंस के इंतजार में खत्म हो गया।
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