पटना: आज, 11 जून को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय राजनीति के चर्चित नेता लालू प्रसाद यादव का 78वां जन्मदिन है। लालू यादव की बोली, बोलने का तरीका और उनकी वाकपटुता के सभी फैन हैं। लालू सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि ऐसे किरदार हैं, जिनकी जिंदगी कहानियों से भरी पड़ी है — कभी हंसी तो कभी हैरानी से भरपूर। इस मौके पर हम आपको ले चलते हैं उनके जीवन की उन राहों पर, जो कम ही लोग जानते हैं।
दूधवाले लालू से मुख्यमंत्री बनने की अनोखी कहानी
बात उन दिनों की है जब लालू यादव छात्र थे। वे पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण रहना-खाना तक मुश्किल था। ऐसे में उन्होंने अपने गांव से एक गाय मंगाई और रोज सुबह खुद दूध दुहकर बाल्टी सिर पर रखकर पटना शहर में बेचने निकल पड़ते।
वो खुद बताते हैं— हम तो गाय-बकरी चराने वाले आदमी हैं। एक समय दूध बेचते थे, वहीं से संघर्ष शुरू हुआ। पहले क्लास में दूध पहुंचाते, फिर खुद पढ़ाई करते और यहीं से छात्र राजनीति में कदम रखते हुए उन्होंने यूनियन चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। यहीं से शुरू हुई लालू यादव की वह यात्रा, जो उन्हें सीधा मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले गई।
लालू के जुमले : ‘पगली’, ‘बुड़वक’ और सोशल मीडिया स्टार
‘नहीं मांगा तो नहीं मिलेगा पगली’
साल 2012 में संसद में रेल सुविधाओं को लेकर ममता बनर्जी से सवाल पूछते समय लालू ने यह मशहूर लाइन कही। जैसे ही उन्होंने कहा — ‘नहीं मांगा तो नहीं मिलेगा पगली’! — पूरा सदन ठहाकों से गूंज उठा।
‘बुड़वक मत बनाओ हमको’
‘बुड़वक’ यानी मूर्ख — यह शब्द लालू यादव ने कई बार विरोधियों, अफसरों और यहां तक कि पत्रकारों को भी कहा है। यह अब बिहार की राजनीतिक शब्दावली का हिस्सा बन चुका है।
क्या लालू यादव गंवार हैं, नहीं, जनता की भाषा बोलने वाले नेता हैं
लालू का भाषण क्लासिकल हिंदी या अंग्रेजी में नहीं होता। वे बोलते हैं — मिथिलांचली, भोजपुरिया और मगही के मिश्रण वाली ‘लालू हिंदी’ में, जो गांव-गांव तक लोगों के दिल में उतरती है। उनका कहना है — ‘भाषा ऐसी हो जो जनता के दिल में जाए, न कि डिक्शनरी में फंस जाए’। शायद यही वजह है कि उनके जुमले आज भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल होते हैं।
राजनीतिक सफर: मंडल आयोग से रेल मंत्रालय तक
• 1990-1997 : लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने और पिछड़ों-दलितों की आवाज बुलंद की।
• मंडल कमीशन : उन्होंने सामाजिक न्याय के पक्ष में सबसे मुखर होकर इसका समर्थन किया।
• रेल मंत्री (2004-2009): लालू यादव ने भारतीय रेलवे को घाटे से मुनाफे में ला खड़ा किया। उनके कार्यकाल की केस स्टडी IIM और हार्वर्ड में पढ़ाई गई।
चारा घोटाला : जेल से बेल तक का सफर
• 1990 के दशक में सामने आया चारा घोटाला (Fodder Scam) जिसमें पशुओं के चारे के नाम पर सरकारी खजाने से 950 करोड़ रुपये की हेराफेरी हुई।
• 1997 में पहली बार जेल गए।
• 2013 : दोष सिद्ध होने पर जेल।
• 2017-2021 : कई बार रांची के बिरसा मुंडा जेल, फुलवारी शरीफ जेल और अस्पताल में रहे।
• 2021 : सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिली।
तेज प्रताप को लेकर विवादों में लेकिन लालू अब भी सुर्खियों में
हाल ही में लालू यादव अपने बेटे तेज प्रताप यादव को लेकर भी चर्चा में आए — मोहब्बत करने पर सजा देने की बात ने सुर्खियां बटोरीं। लेकिन आज बात सिर्फ लालू की है — एक ऐसे नेता की, जो नारेबाज़ी नहीं, अनुभवों और संघर्ष की मिसाल हैं।
एक संघर्षशील किसान पुत्र से देश की राजनीति का सितारा
लालू यादव का जीवन सिर्फ सत्ता या विवादों की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक सामान्य युवक की असाधारण यात्रा है। एक दूध बेचने वाला लड़का, जो भाषा से नहीं, भावना से जुड़ता है — वह आज भी बिहार की राजनीति का अमिट चेहरा बना हुआ है।