नई दिल्ली : बिहार सरकार ने कई अटकलों के बावजूद गत 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के मौके पर जातीय जनगणना सर्वे के आकड़े जारी कर दिए। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया। कोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार को इसकी पूर्ण अनुमति है। सुप्रीम कोर्ट इसे रोक नहीं सकता। जानिए इसे विस्तार से कोर्ट ने आखिर क्या कहा?
जातीय जनगणना मामले के मामले में हुई सुनवाई : सुप्रीम कोर्ट नहीं लगायी रोक
राज्य में जातीय जनगणना के विरोध में केंद्र सरकार की दलील थी कि जनगणना पर सभी तरह के फैसले लेने का अधिकार केंद्र के पास है।राज्य की सरकारें इस संबंध में कोई फैसला नहीं ले सकतीं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम किसी राज्य सरकार के किसी काम पर रोक नहीं लगा सकते। इसके साथ ही कोर्ट ने बिहार सरकार को नोटिस जारी किया है और अगले साल जनवरी तक जवाब देने कहा है।
3 अक्टूबर को उठा मामला
3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में यह महत्वपूर्ण मामला उठा। इसमें याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट से जातीय जनगणना के आंकड़े जारी किए जाने के मामले मे हस्तक्षेप की मांग की थी। जिसे कोर्ट ने इस सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था। याचिकाकर्ताओं में एक सोच, एक प्रयास और यूथ फॉर इक्वेलिटी जैसे संगठन शामिल हैं। जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की बेंच जातीय गणना मामले की सुनवाई हुई।
बिहार की जातीय जनगणना का सर्वे आंकड़ा
बिहार की आबादी के आंकड़ों के आधार पर, इस राज्य की जनसंख्या का पूरा चित्रण तय किया गया। बिहार सरकार ने जातीय गणना के आंकड़े जारी किए थे। जारी आंकड़े के अनुसार बिहार की आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है। इसमें सबसे बड़ी संख्या अत्यंत पिछड़ा वर्ग की है। यह 4 करोड़ 70 हजार 80 हजार 514 हैं। वहीं दूसरे नंबर पर अति पिछड़ा वर्ग 3 करोड़ 54 लाख 63 हजार 936 है। अनुसूचित जाति की संख्या कुल 2 करोड़ 56 लाख 89 हजार 820 है। अनुसूचित जनजाति की आबादी मात्र 21 लाख 99 हजार 361 बताई गई है। सामान्य वर्ग की संख्या 2 करोड़ 2 लाख 91 हजार 679 हैं।
28 अगस्त को केंद्र सरकार ने दायर किया था हलफनामा
28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर किया था। इस हलफनामे के माध्यम से केंद्र सरकार ने सबसे पहले जनगणना के अधिकार को केंद्रीकृत करने की कोशिश की थी, जिसके तहत सेंसस एक्ट 1948 में केंद्र को ही प्राधिकृत माना जाता है। इसके बाद, कुछ घंटों के भीतर केंद्र ने इस हलफनामे को वापस लेकर दूसरा हलफनामा दायर किया, जिसमें यह कहा गया कि पैरा 5 में शामिल होने का हिस्सा एक अवबोधन के कारण हो गया था। इसे बदल दिया गया। इस नए हलफनामे के माध्यम से, केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि वे संविधान के प्रावधानों के अनुसार SC/ST/SEBC और OBC के स्तर को बढ़ाने के लिए कदम उठा रही हैं।
केंद्र सरकार का तर्क
पटना हाई कोर्ट ने 1 अगस्त को सर्वेक्षण की वैधता को बरकरार रखा था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि बिहार के पास ऐसा सर्वेक्षण करने का कोई अधिकार नहीं है, जो केंद्र की शक्तियों को हड़पने की एक कोशिश है। उन्होंने तर्क दिया कि सर्वेक्षण ने संविधान की अनुसूची VII, जनगणना अधिनियम, 1948 और जनगणना नियम, 1990 का उल्लंघन किया है। याचिकाओं में कहा गया है कि जनगणना को संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ सूची में शामिल किया गया था। दलीलों में तर्क दिया गया कि जून 2022 में सर्वेक्षण अधिसूचना जनगणना अधिनियम, 1948 की धारा 3, 4 और 4ए के साथ-साथ जनगणना नियम, 1990 के नियम 3, 4 और 6ए के दायरे से बाहर थी।
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