Jamshedpur : जमशेदपुर में ट्रैफिक पुलिस द्वारा चलाया जा रहा हेलमेट चेकिंग अभियान अब विवाद और आलोचना का केंद्र बनता जा रहा है। एक ताज़ा मामला सिदगोड़ा के 28 नंबर रोड पर सामने आया, जहां पेड़ के पीछे छिपकर खड़े ट्रैफिक पुलिस के जवान ने टाटा स्टील के एक अधिकारी प्रदीप तियू के साथ दुर्व्यवहार किया। उनकी बाइक की चाबी के लिए छीना-झपटी की। इस बदसुलुकी का वीडियो रविवार को वायरल हो गया है।
इसके बाद ट्रैफिक डीएसपी नीरज सिंह ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने द फोटॉन न्यूज से बातचीत में कहा कि मामले की जांच कराई जाएगी। ट्रैफिक डीएसपी ने कहा है कि जांच में यह देखा जाएगा कि आखिर किस परिस्थिति में यह घटना घटी है। जांच के बाद अगर जवान दोषी पाया गया तो कार्रवाई होगी।
जवान ने उतार लिया हेलमेट
प्रदीप तियू, न्यू बारीडीह के निवासी हैं और टाटा स्टील में कार्यरत हैं। रविवार को दो बजे उन्होंने बताया कि वह अपनी पत्नी को लेकर एग्रिको विद्यापतिनगर स्थित एक डॉक्टर के पास गए थे। जब वे बाइक से पत्नी को उतार ही रहे थे, तभी अचानक एक ट्रैफिक पुलिस का जवान पेड़ के पीछे से निकलकर आया और जबरन उनकी बाइक की चाभी छीनने का प्रयास करने लगा। जब चाभी नहीं छीनी जा सकी, तो उसने प्रदीप तियू के सिर से हेलमेट ही उतार लिया और बाइक को ले जाने की कोशिश की।
इस घटना को लेकर प्रदीप तियू ने स्पष्ट रूप से कहा कि ट्रैफिक पुलिस के जवान नियमों की खुलेआम अनदेखी कर रहे हैं। पहले एसएसपी खुद इस बात को बार-बार कह चुके हैं कि बाइक सवार की चाभी जबरन छीनना या वाहन को बलपूर्वक ले जाना नियम के खिलाफ है। लेकिन हकीकत में शहर में आए दिन ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। हेलमेट चेकिंग के नाम पर हो रही इस तरह की घटना से आम नागरिकों में आक्रोश है। पहले कई लोग इस तरह की घटना में मौत का शिकार हो चुके हैं। यह स्थिति राजनीतिक दलों के लिए भी चिंता का विषय बनी हुई है, जो लगातार इस पुलिसिया रवैये का विरोध करते रहे हैं। फिर भी सुधार के नाम पर ज़मीनी स्तर पर कुछ खास असर नहीं दिख रहा है।
गौरतलब है कि ट्रैफिक नियमों के तहत हेलमेट की जांच करना और कागज़ात देखना पुलिस का अधिकार है, लेकिन चाभी छीनना, हेलमेट उतारना या जबरदस्ती बाइक को खींच कर ले जाना कहीं से भी उचित नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शहर में ट्रैफिक व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर आम नागरिकों की गरिमा को इस तरह ठेस पहुंचाना उचित है? यह घटना न सिर्फ ट्रैफिक पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करती है, बल्कि झारखंड सरकार और जिला प्रशासन के लिए भी एक चेतावनी है कि सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं, ताकि नियम लागू करने के नाम पर आम जनता को प्रताड़ना न झेलनी पड़े।