Jamshedpur Muharram : जमशेदपुर में मुहर्रम का ग़मगीन माहौल चल रहा है। तीसरे मोहर्रम की मजलिस में हुसैनी मिशन, साकची के इमामबाड़े में मौलाना सादिक अली ने शहीद-ए-करबला हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके काफ़िले के साथी हुर बिन यजीद रियाही की कहानी बयां की। उन्होंने बताया कि हुर वह शख्स था जिसे यजीद ने इमाम हुसैन का रास्ता रोकने भेजा था, लेकिन करबला के तपते रेगिस्तान में जब उसका लश्कर प्यास से बेहाल हुआ, तब इमाम हुसैन ने अपने पास का पानी उन्हें पिलाया। इमाम ने न सिर्फ हुर की फौज को पानी दिया, बल्कि उनके प्यासे जानवरों को भी सैराब किया।
बाद में जब हुर ने इमाम हुसैन का रास्ता रोका और घोड़े की लगाम पकड़ ली, तो इमाम ने सख़्त लहजे में कहा – “ऐ हुर, लगाम छोड़ दे, वरना तेरी मां तेरे ग़म में बैठेगी।”हुर ने फ़ौरन एहतेराम दिखाते हुए कहा – “अगर आपकी मां रसूलुल्लाह की बेटी न होती तो मैं भी यही जवाब देता।”यह वाक़िया करबला के उस मोड़ का गवाह है जहां इंसाफ़, एहतेराम और सच्चाई की जीत शुरू होती है। मौलाना ने कहा कि हुर के इसी अदब और तौबा की वजह से उसे अल्लाह ने हिदायत दी, और वह यजीद का खेमा छोड़कर इमाम हुसैन के साथ हो गया।सबसे दर्दनाक मंज़र तब आया जब 10 मोहर्रम को जंग के दौरान हुर का जवान बेटा शहीद हो गया।
हुर बेटे की लाश लेने दौड़ा, मगर इमाम हुसैन ने फ़रमाया –”ऐ हुर, जवान बेटे की लाश बाप से नहीं उठेगी।”इमाम खुद उसके बेटे की लाश उठाकर खैमे में लाए। यह सुनकर मजलिस में मौजूद अजादारों की आंखें छलक पड़ीं और माहौल मातम में बदल गया। मजलिस में मौजूद लोगों ने इस मसाएब को सुनकर आंसुओं में डूबे हुए इमाम हुसैन की महानता और हुर के ईमान की मिसाल को सलाम पेश किया।-
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