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Jharkhand Model Schools : मॉडल विद्यालयों को नहीं मिल रहे छात्र, 3280 सीटों के लिए सिर्फ 838 हुए पास, 2442 सीटें रह जाएंगी खाली

Jharkhand Model Schools: जमशेदपुर के मॉडल स्कूलों में दाखिले का संकट, 3280 में से 2442 सीटें खाली रह जाने की आशंका

by Anurag Ranjan
Empty classrooms and low student admissions in Jamshedpur model schools in 2025
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जमशेदपुर : झारखंड एकेडमिक काउंसिल द्वारा घोषित परीक्षा में राज्य के 82 मॉडल स्कूलों (Jharkhand Model Schools) में कक्षा 6 में नामांकन के लिए हुई प्रतियोगिता परीक्षा में कुल 838 छात्र उत्तीर्ण हुए है। राज्य में शैक्षणिक सत्र 2025-26 के लिए सभी मॉडल स्कूलों में 3280 छात्र-छात्राओं का नामांकन होना था। इसके लिए झारखंड एकेडमिक काउंसिल के द्वारा 11 मई 2025 को राज्य स्तर पर जिला मुख्यालय में प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन किया था।

परीक्षा में कुल 5063 फॉर्म भरे गए थे। इनमें से मात्र 838 छात्रों के पास होने पर प्रतियोगिता परीक्षा पर ही प्रश्नचिह्न लग गया है। या यूं कहा जा सकता है कि मॉडल स्कूलों में छात्रों के लाले पड़ गए हैं। या फिर सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का स्तर इतना निम्न है कि मॉडल स्कूलों के लिए अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई के लिए छात्र नहीं मिल पा रहे हैं। मॉडल स्कूलों के शत प्रतिशत मैट्रिक एवं इंटर परीक्षा परिणाम के बावजूद नामांकन के लिए छात्रों का नहीं मिल पाना मॉडल स्कूलों के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है, जो चिंता का विषय है। वर्तमान शैक्षणिक सत्र में 2442 सीटें रिक्त रह जाएंगी।

मालूम हो कि झारखंड राज्य में केंद्रीय विद्यालय की तर्ज पर 89 मॉडल स्कूल (Jharkhand Model Schools) खोले गए थे। इनमें 7 मॉडल स्कूलों को सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में बदल दिया गया है। इस प्रकार कुल 82 मॉडल स्कूल राज्य में चल रहे हैं। इन स्कूलों में केंद्रीय विद्यालय की तर्ज पर अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होती है। मॉडल स्कूल स्थापना के 14 साल बीत जाने के बावजूद इन विद्यालयों में संसाधनों एवं शिक्षकों की घोर कमी है। वर्ष 2011-12 में इन विद्यालयों के लिए चयनित संविदा आधारित करीब 108 संविदा शिक्षक इन विद्यालयों में कार्यरत हैं।

शिक्षा विभाग की लापरवाही के कारण इन शिक्षकों को अपने वाजिब हक से भी वंचित होना पड़ रहा है। झारखंड हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद शिक्षकों का स्थायीकरण नहीं किया जाना भी चिंता का विषय है। मॉडल स्कूलों के लिए 11 शिक्षकों समेत कुल 25 पद स्वीकृत हैं। बहाली का खाका शिक्षा विभाग द्वारा वर्ष 2016-17 में बनाया गया था, लेकिन बाद में उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

शिक्षा विभाग की लापरवाही के शिकार हैं मॉडल स्कूल

राज्य के मॉडल स्कूलों के प्रति शिक्षा विभागों के विभागीय पदाधिकारियों का उदासीन रवैया मॉडल स्कूलों के विकास में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। अमूमन मॉडल स्कूलों में अत्यधिक गरीब तबके के अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़े वर्ग के छात्र-छात्राएं अपना नामांकन कराते हैं। पहले मॉडल स्कूल में नामांकन परीक्षा प्रखंड स्तर पर होती थी, जिसमें अधिक से अधिक छात्र शामिल होते थे और मॉडल स्कूलों में नामांकन कराते थे। वर्ष 2023 से जिला स्तर पर प्रतियोगिता परीक्षा होने से अभिभावक अपने बच्चों को आर्थिक तंगी के कारण प्रतियोगिता परीक्षा दिलाने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।

Jharkhand Model Schools : मॉडल स्कूलों में विषयवार शिक्षकों का अभाव

राज्य के 82 मॉडल स्कूलों (Jharkhand Model Schools) समेत 7 सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस मॉडल स्कूल को मिलाकर वर्तमान में कुल 108 शिक्षक वर्तमान में संविदा पर कार्यरत हैं। राज्य के किसी भी विद्यालय में विषयवार शिक्षक का नहीं होना विद्यालय की सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है। अधिकांश विद्यालय विभागीय उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं। सभी मॉडल स्कूलों में मैट्रिक और इंटर परीक्षा परिणाम का औसत 95% से 100% तक है। ढुलमुल नीति के कारण मॉडल स्कूलों की स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही है। विभाग का यही रवैया रहा तो आने वाले समय में आधे से अधिक मॉडल स्कूलों में छात्रों की संख्या शून्य हो जाएगी।

राज्य के अधिकांश मॉडल स्कूलों में अंग्रेजी, विज्ञान एवं गणित के शिक्षक नहीं हैं। खानापूर्ति के नाम पर हिंदी मीडियम के प्राइमरी व मिडिल स्कूल के शिक्षकों को विद्यालय में बच्चों को पढ़ने के लिए डेपुटेशन कर दिया गया है। इससे आसानी से समझा जा सकता है कि अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक का नहीं होना उतना ही दुखद है जितना की पानी से मछली को निकाल कर जमीन पर छोड़ देना।

मॉडल स्कूलों को प्लस-टू का दर्जा है प्राप्त

राज्य के सभी 89 मॉडल स्कूलों को वर्ष 2014 एवं 15 में प्लस-टू का दर्जा झारखंड एकेडमिक काउंसिल की ओर से दिया जा चुका है। लेकिन, आज तक एक भी प्लस-टू के शिक्षकों की बहाली नहीं होने के कारण अभिभावक इन विद्यालयों में अपने बच्चों का नामांकन कराने से दूर भाग रहे हैं। शिक्षा विभाग अंग्रेजी माध्यम के इन विद्यालयों को नाममात्र के शिक्षकों के भरोसे बीते 14 वर्ष से कछुए की गति से चला रही है।

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