Jharkhand IPS : गुरु आध्यामिक मिजाज के आदमी हैं। दुख के निवारण का रास्ता वह अक्सर धर्म में खोजते हैं। मौजूदा सभा मंडली में सांसारिक प्रकरण चल रहा था। सुधी श्रोता की तरह चुपचाप कोने में बैठ गया। सभा के बीच से एक वक्ता वनांचल प्रदेश के एक अहम महकमे की कथा बता-सुना रहे थे। दावा था कि यहां बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, जो दूसरी जगह नहीं है। मसलन, फील्ड में तैनाती के लिए कैडर-वार चल रहा है।
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डिपार्टमेंट के मुखिया अपने अधीनस्थ की ही कठपुतली बने बैठे हैं। चढ़ावा नहीं आने पर मुलाजिमों की ऐसी-तैसी हो रही है। फाइलों पर नाम देखकर तय किया जा रहा है कि किसे बुलाया जाए, किसे नहीं। पदस्थापना के बदले मीठी मलाई की डिमांड हो रही। हालांकि, गुरु इस बात से सहमत नहीं थे। उनका कहना था कि हर जगह स्थिति लगभग एक समान है। अपनी बात साबित करने के लिए वह धार्मिक व्याख्या पर उतर गए थे। अगर कहीं दुख है तो दुख का कारण है। संसार में कुछ भी अनायास नहीं होता।
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प्रकृति सबकुछ अपने तरीके से नियंत्रित करती है। आदि, आदि…। सभा उनके इस प्रवचन से बोर होने लगी थी। किसी ने बीच में बोल दिया। ऐसा नहीं है गुरु। वास्तव में पानी सिर से ऊपर चला गया है। माना कि सालों से बैठे अधीनस्थ को लंबा व गहरा अनुभव है, लेकिन अपनी बुद्धि-अपना विवेक भी तो कोई चीज है? गुरु गहराई में उतरते हुए बोले- देखो पूरा मामला यह है कि संबंधित महकमे पर राहु की महादशा लग गई है। राहु को संजीवनी मिल गई है। आयुर्वेद के विशेषज्ञ मानते हैं कि संजीवनी की एक खासियत होती है।
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अगर इसकी सही पहचान कर निर्धारित समय पर निर्धारित मात्रा में उपयोग किया जाए तो यह अमृत समान है। अगर इसकी पहचान, प्रयोग और मात्रा में गलती हुई तो यह विष हो जाता है। इस वनस्पति की एक और विशेषता है कि यह अक्सर पहाड़ी क्षेत्र में रहती है। यही कारण है कि अक्सर इसकी पहचान में धोखा हो जाता है। यहां मामला यह है कि संकट काल में राहु ने अपनी रक्षा के लिए संजीवनी की खोज की। अब हुआ यह कि संजीवनी बूटी की जगह संजीवनी जैसी दिखने वाली विषबेल हाथ लग गई।
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यह संजीवनी लता कुछ इस कदर लिपटी कि इलाज की बजाय बीमार करना शुरू कर दिया। असर सीधे दिमाग पर हुआ। अब स्थिति इस कदर बिगड़ गई है कि राहु के लिए देव, दानव और मानव की पहचान करना मुश्किल होने लगा है। चौतरफा सबकुछ बिखरता नजर आने लगा है। राहु कुछ समझ नहीं पा रहा। अब बताओ पूरी अव्यवस्था के लिए वह बेचारा अकेले कैसे जिम्मेदार होगा? गुरु मौन हो गए- सभा शांत हो गई। गुरु की बात में दम था। प्रवचन पर गहन मंथन की आवश्यकता थी, लिहाजा चुपचाप उठा और अपने रास्ते निकल लिया।
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