नौकरशाही वाले गलियारे में इन दिनों तूफान से पहले का सन्नाटा है। हर सुगबुगाहट से कई सूरमाओं के कान खड़े हो जा रहे हैं। किसी को जाने का डर सता रहा है, किसी को आने की बेचैनी, कुछ यथास्थिति बरकरार रखने में जुटे हैं। इन सबके बीच कुछ पुराने खिलाड़ी अपने लिए नए मैदान की तलाश में हैं।
गुरु को कानों-कान खबर लगी है कि ‘सुव्यवस्थित नगर’ वाले ‘मित साहब’ अपना कंफर्ट जोन छोड़कर देश की राजधानी में बैठने का मन बना रहे हैं। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि ‘मित साहब’ ने अपने एक मित्र को साथ लेकर इसके लिए लॉबिंग भी शुरू कर दी है। सुना है दिल्ली से कोई बड़े हुक्मरान शासकीय दौरे पर झारखंड आए थे। मित साहब अपने मित्र के साथ फरियाद लेकर पहुंचे गए। इच्छा जताई कि हुक्मरान अपने दरबार में उनकी सेवाएं स्वीकार करें। आश्वासन मिला कि आग्रह पर वैधानिक विधि से विचार किया जाएगा। बहरहाल, उम्मीद पर दुनिया कायम है। तमगा भले ना मिला हो, लेकिन पीएस बनने की प्रत्याशा में नींद जरूर अच्छी आने लगी है।
अगर दांव सही बैठा तो ‘मित साहब’ को जल्दी ही काजल की कोठरी में कलाकारी करने का अवसर मिलेगा। अब बात ‘मित साहब’ के मित्र की। जन सुविधा के लिए इनका काल्पनिक नाम ‘ठोडे’ मान लेते हैं। मित साहब’ के मित्र हैं, सो नाम के साथ साहब और जोड़ लीजिए। ‘मित साहब’ के इस मित्र में यूं तो कई विशेषताएं हैं, लेकिन सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह मौजूदा परिस्थितियों में खुद को मंझा हुआ रणनीतिकार मानते हैं। यही कारण है कि अपने साथ-साथ सीनियर-जूनियर की सेटिंग-गेटिंग का दायित्व सहर्ष स्वीकार करते हैं। व्यवस्था के कई विश्लेषक मित्र महोदय को ‘बेचैन आत्मा’ बताते हैं।
मित्र महोदय को आंतरिक आशंका यह रहती है कि शासन से निकलने वाले हर शासनादेश पर इनका नाम जरूर अंकित होगा। लिहाजा बदलाव की हर सुगबुगाहट से पहले मित्र महोदय अपने लिए तीन जनपद का नाम तय कर लेते हैं। कई बार अपने नजदीकी लोगों को बता भी देते हैं। अब यह सामने वाले पर निर्भर करता है कि वह यकीन करे या ना करे।