Home » Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : चाची ने काटी ‘चांदी’

Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : चाची ने काटी ‘चांदी’

झारखंड की नौकरशाही की कार्यप्रणाली एक बार फिर अपना पुराना इतिहास दोहरा रही है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने के खेल में एक नया खिलाड़ी फंस गया है। मामला करोड़ों रुपये की सरकारी संपत्ति की लूट से जुड़ा है। लिहाजा बड़ी जांच एजेंसियों का शिकंजा कब कस जाए, कोई कह नहीं सकता। क्या कुछ चल रहा है अंदरखाने, जानें द फोटोन न्यूज के एग्जीक्यूटिव एडिटर की कलम से।

by Dr. Brajesh Mishra
Jharkhand Bureaucracy
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

Jharkhand Bureaucracy Rock New Scam Allegations : गुरु अपनी मंडली को कहानी सुना रहे थे। कथा कुछ ऐसी थी- प्राचीन काल की बात है…। एक नगर में दो पड़ोसी रहते थे। पहला पड़ोसी लोहे का काम करता था, जबकि दूसरा आभूषण बनाने के कारोबार से जुड़ा था। पड़ोसी होने के नाते दोनों का एक-दूसरे की दुकान पर आना-जाना था। यानी, सोनार अक्सर लोहार की दुकान पर जाता था। इस दौरान वह बगैर मूल्य चुकाए कोई न कोई लोहे का सामान उठा लाता था। पहले वह महीने में एक-दो बार ऐसा करता था।

Read Also: Jharkhand Bureaucracy :   नौकरशाही : ससुर जी का कोटा

पड़ोसी के लिहाज में लोहार कुछ नहीं बोलता। धीरे-धीरे सोनार हर हफ्ते सामान उठाकर ले जाने लगा। कुछ समय बाद लोहार को बात समझ में आ गई कि सोनार उसे मूर्ख समझ रहा था। एक दिन लोहार सोनार की दुकान पर गया। पहले दोनों ने लंबी बातचीत की। लोहार ने सोनार से कहा- तुम्हारी दुकान में तो बहुत महंगे आभूषण होंगे। सोनार ने समझा कि पड़ोसी पर अमीरी का रौब दिखाने का अच्छा मौका है। सोनार ने एक आभूषण का डिब्बा लोहार की तरफ बढ़ाया। कहा- यह देखो मेरी दुकान का सबसे कीमती आभूषण। इसका मूल्य लाखों में है। लोहार ने आभूषण को डिब्बे से बाहर निकाला। कुछ देर उसे हाथ में रखकर ऊपर-नीचे देखा। फिर आभूषण अपनी जेब में रखकर निकल लिया।

Read Also: Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : आखिर शौक बड़ी चीज है

सोनार देखता रह गया। वह पड़ोसी को मना नहीं कर सका, लेकिन इससे उसे काफी नुकसान हुआ। वह सदमे में आ गया। गुरु ने कहा- इस कहानी का संदेश इस प्रचलित मुहावरे में छिपा है- ‘सौ सोनार की, एक लोहार की।’ कहानी सुनकर सभा मंडली जोर से हंसी। सभा में देर से पहुंचने के कारण कहानी का संदर्भ और प्रसंग समझना था। लिहाजा अपनी तरफ से गुरु को छेड़ा। पूछा- गुरु आखिर इस लोकोक्ति का वर्तमान समय से क्या लेना-देना? गुरु बोले- देर से आने का यही नुकसान है।

Read Also: Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : राहु की संजीवनी

हर कहानी ‘कटियारी की भागवत’ हो जाती है। जो आता है, वही कहता है, फिर से बताइए। उनकी बात भी जायज थी। मामला समझने के लिए उनके कटाक्ष को बर्दाश्त करना ही था। उनकी ओर हाथ जोड़कर मुस्कान बनाए रखी। गुरु बोले- कहानी का प्रसंग और संदर्भ ‘चाची’ से जुड़ा है। चाची की एक गलती चाची पर ही भारी पड़ गई है। चाची इस खेल में सोनार बन रही थीं। दूसरी तरफ से लोहार वाला दाव पड़ गया। बात समझ में नहीं आई। गुरु से फिर सवाल किया-चाची? अरे हां वही, जिनकी विजयी मुस्कान पर कभी टाटा में बड़े-बड़े अखबारों के पन्ने कुर्बान कर दिए जाते थे।

Read Also: Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : बाबा का आशीर्वाद

अपनी इन्हीं हरकतों के कारण चाची सर्किट हाउस में झारखंड के नक्शे वाले केक कटिंग की मुराद मन में ही रखकर लौहनगरी से विदा हो गई थीं। एक बार फिर वही गलती दोहरा दी। टाटा से आने के बाद चाची ने कुछ दिनों तक राजधानी में योजना बनाने का काम किया। दिन बहुरे। आलाकमान के निर्देश पर चाची का दूसरा ठिकाना इस्पात नगरी बना। चाची ने लौहनगरी के अनुभव का पूरा इस्तेमाल किया। सामाजिक दायित्व की प्रयोगशाला स्थापित की। बगैर विलंब के स्टील से ‘चांदी’ बनाने की विधि विकसित की।

Read Also: Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : अवगुन कवन नाथ मोहि मारा

समय का पहिया घूमता रहा। इसी बीच विदाई का फरमान फिर आ गया। चाची को यह बात बड़ी नागवार गुजरी। इसके लिए अपनी जगह आए नए प्रभारी को जिम्मेदार माना। लिहाजा अपने कुछ करीबी लोगों को एक टिप दी। उनकी दी गई यह टिप मार्केट में फैल गई। दावा किया गया कि नए प्रभारी का नया गुर्गा ‘चांदी’ वसूली के लिए काली गाड़ी में आ गया है। नए हाकिम के कुछ शुभचिंतकों ने उन्हें मार्केट की सूचना और सूचना का स्रोत समझा दिया। अब नए प्रभारी को कहानी वाले पड़ोसी की तर्ज पर सोनार-लोहार के फार्मूले से हिसाब-किताब बराबर करना था। काम सामाजिक दायित्व की प्रयोगशाला के निरीक्षण से शुरू हुआ।

Read Also: Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : दुख का इलाज

पता चला कि प्रयोगशाला में रखा ‘चांदी’ का एक बड़ा भंडार हवा हो गया है। घेरे में सीधे चाची आ गईं। सो, बगैर देर किए मामले को सियासी सूरमाओं के हाथ सौंप दिया गया। नए प्रभारी फिलहाल इस खेल में अजेय होकर निकले। अब चुपचाप किनारे बैठकर मैदान में चल रहे खेल को ऐसे देख रहे हैं मानो, इससे इनका कोई लेना-देना न हो। फिलहाल चाची गहरे अवसाद में हैं। पता नहीं कब कहां से पूछताछ के लिए नोटिस आ जाए। गुरु ने कहानी का सार बता दिया था। अब बाकी कसरत दिमाग को करनी थी। लिहाजा, नतमस्तक होकर हमने फिर एक बार गुरु का लोहा मान लिया और अपने रास्ते निकल लिए।

Read Also- Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई…

Related Articles

Leave a Comment