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Jharkhand Naxal News : नक्सलवादः कभी था जिनका आतंक, वो अब रंगदारी के धंधे तक सिमटे !

by Rakesh Pandey
Jharkhand Naxal News
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रांची : एक दौर था जब झारखंड की राजधानी रांची और इसके ग्रामीण इलाके नक्सलियों के खौफ में जीते थे। भाकपा माओवादी, पीएलएफआई, टीपीसी और जेजेएमपी जैसे उग्रवादी संगठन बंदूक के बल पर अपनी सत्ता चलाते थे। लेकिन आज की स्थिति बिल्कुल उलट है। अब ये संगठन अवैध वसूली और रंगदारी जैसे अपराधों तक सिमट गए हैं।

रंगदारी बन गया उग्रवादियों का नया हथियार

आज झारखंड में सक्रिय उग्रवादी संगठन इंटरनेट कॉल और विभिन्न एप्स के माध्यम से व्यापारियों और ठेकेदारों से रंगदारी मांग रहे हैं। पिछले एक वर्ष में 100 से अधिक उग्रवादी और उनके समर्थक, लेवी मांगने, आगजनी और धमकी देने के आरोप में गिरफ्तार किए जा चुके हैं। राजधानी रांची में भाकपा माओवादी का नामोनिशान लगभग मिट चुका है। जबकि पीएलएफआई और टीपीसी जैसे संगठन अब केवल रंगदारी वसूली तक सीमित हो गए हैं।

कुंदन पाहन के सरेंडर के बाद खत्म हुआ माओवादियों का दबदबा

साल 2017 में कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन के आत्मसमर्पण के बाद रांची के बुंडू, तमाड़, सिल्ली, अनगड़ा और दशम फॉल क्षेत्र से माओवादियों का लगभग सफाया हो गया।

कुंदन पाहन के खिलाफ प्रमुख आरोप:

पांच करोड़ रुपये और दो किलो सोना लूट (आईसीआईसीआई बैंक कैश वैन से)

जेडीयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या

पांच पुलिसकर्मियों की सामूहिक हत्या

डीएसपी प्रमोद मिश्रा की हत्या

आज इन इलाकों में अधिकांश इनामी नक्सली सारंडा के जंगलों में छिपे हुए हैं और उनकी गतिविधियां शून्य के बराबर हैं।

PLFI और TPC का कमजोर हो चुका नेटवर्क

पीएलएफआई का मुख्य संचालन अब भी राजधानी रांची और आसपास के जिलों में देखा जा रहा है। हालांकि, संगठन प्रमुख दिनेश गोप की गिरफ्तारी और कई अन्य मुठभेड़ों ने संगठन की ताकत को काफी हद तक तोड़ दिया है। वहीं टीपीसी, जो कभी चतरा और राजधानी के कुछ ग्रामीण इलाकों में प्रभावशाली था, अब केवल नाममात्र का अस्तित्व रखता है। रंगदारी वसूली में यह दूसरे नंबर पर सक्रिय है।

DIG का बयान : हम शांत नहीं बैठे हैं

रांची रेंज के डीआईजी सह एसएसपी चंदन कुमार सिन्हा ने कहा कि भले ही माओवादी और अन्य उग्रवादी संगठनों की गतिविधियां नगण्य हो गई हों, लेकिन पुलिस सतर्क है और हर गतिविधि पर नजर बनाए हुए है। हमारी पैनी नजर पीएलएफआई, टीपीसी और जेजेएमपी जैसी इकाइयों पर है। कोई भी संदिग्ध गतिविधि बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

साल 2000 से 2015: जब नक्सलियों का था बोलबाला

बुंडू, तमाड़, सिल्ली, सोनाहातू सहित ग्रामीण रांची में भारी नक्सली प्रभाव

डीएसपी रैंक तक के अधिकारियों की हत्याएं

आए दिन पोस्टरबाजी, धमकी, आगजनी और पुलिसकर्मियों पर हमले

लेकिन राज्य सरकार और पुलिस के संयुक्त अभियानों ने इस नेटवर्क को धीरे-धीरे तोड़ दिया।

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