Ranchi News: 4 फरवरी 1972 को जमशेदपुर के गोल्फ ग्राउंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव रखी गई। इस ऐतिहासिक रैली में शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो और एके राय ने झारखंड आंदोलन की रूपरेखा तैयार की। इसी रैली में झामुमो की स्थापना पर गहन मंथन हुआ और इसके बाद पार्टी की स्थापना हुई। इस दिन को झारखंड आंदोलन के इतिहास में निर्णायक मोड़ के रूप में याद किया जाता है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक और झारखंड आंदोलन के पुरोधा शिबू सोरेन का निधन दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हो गया। 81 वर्षीय शिबू सोरेन लंबे समय से ब्रेन स्ट्रोक और किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। उनके निधन की खबर से पूरे झारखंड में शोक की लहर है, खासकर जमशेदपुर में, जहां उनके संघर्ष की गूंज अब भी सुनी जाती है।
शिबू सोरेन और झारखंड आंदोलन की शुरुआत
11 जनवरी 1944 को हजारीबाग (अब रामगढ़) के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन के पिता सोबरन सोरेन एक शिक्षक थे, जिन्हें 1957 में सूदखोरों और माफियाओं ने मार डाला था। यह घटना युवा शिबू के जीवन का टर्निंग पॉइंट बनी। आदिवासी अधिकारों के लिए उन्होंने ‘धान काटो आंदोलन’ शुरू किया, जिससे वे आम आदिवासियों के मसीहा बनकर उभरे।
1972 में बिनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। इसके बाद झारखंड अलग राज्य की मांग को लेकर एक लंबा संघर्ष शुरू हुआ। 1989 में विधायक पद से इस्तीफा देकर उन्होंने अलग राज्य के लिए अंतिम चेतावनी दी और आंदोलन को गति दी। अंततः 15 नवंबर 2000 को झारखंड एक स्वतंत्र राज्य बना।
जमशेदपुर और शिबू सोरेन का गहरा नाता
झारखंड आंदोलन के हर चरण में जमशेदपुर एक मजबूत आधार रहा। 1970 के दशक में शिबू सोरेन ने जमशेदपुर के आदिवासी क्षेत्रों में शोषण के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई। उन्होंने यहां मजदूरों, आदिवासियों और छात्रों को संगठित किया और आंदोलन की राजनीतिक धारा को मजबूत किया।
निर्मल महतो और जमशेदपुर में आंदोलन की नई ऊर्जा
झारखंड आंदोलन को धार देने में निर्मल महतो का योगदान अहम था। जमशेदपुर के युवा नेता ने 1986 में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) की स्थापना की और युवाओं को आंदोलन से जोड़ा। 1984 में वे झामुमो के अध्यक्ष बने, लेकिन 1987 में उनकी हत्या से आंदोलन को झटका लगा। शिबू सोरेन हमेशा निर्मल महतो को अपना करीबी मानते रहे। हर वर्ष उनकी जयंती पर वे जमशेदपुर आते और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते थे।
राजनीति में लंबा और उतार-चढ़ाव भरा सफर
शिबू सोरेन ने 1980 में दुमका से पहली बार लोकसभा चुनाव जीता और आठ बार सांसद रहे। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और केंद्र में कोयला मंत्री भी रहे। हालांकि, उनके राजनीतिक करियर में कई विवाद भी आए, जिनमें 1975 का चिरूडीह कांड और 1994 में उनके निजी सचिव की हत्या का मामला प्रमुख रहा। 2025 में स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने पार्टी की कमान अपने बेटे और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सौंप दी थी।
राजनीति को अलविदा और श्रद्धांजलि
उनके निधन पर आजसू प्रमुख सुदेश महतो, सांसद विद्युत वरण महतो, और राज्य के तमाम दलों के नेताओं ने गहरी संवेदना जताई है। झारखंड और खासकर जमशेदपुर में उन्हें एक आदिवासी नायक, आंदोलन के योद्धा और दिशोम गुरु के रूप में सदैव याद किया जाएगा।
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