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Jharkhand Election: कभी ‘राजनीति की प्रयोगशाला’ था झारखंड

झारखंड का गठन 15 नवंबर 2000 को हुआ था, लेकिन राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का आलम यह रहा है कि 24 वर्ष के राज्य में 13 बार मुख्यमंत्रियों ने शपथ ली। हालांकि लगातार दो बार से बहुमत की सरकार बन रही है।

by Birendra Ojha
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झारखंड राज्य का गठन लंबे संघर्ष के बाद हुआ था। इसके लिए न जाने कितने आंदोलनकारी शहीद हुए थे, कई अब भी आर्थिक स्थिति से जूझ रहे हैं। इस राज्य का गठन मूल रूप से आदिवासियों की संस्कृति-परंपरा को अक्षुण्ण रखने के लिए किया गया था, लेकिन उसे लेकर जितने सपने देखे गए थे, अधिकांश अब भी अधूरे हैं। इसके साथ बने उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ विकास के मामले में काफी आगे निकल गए हैं। एक समय तो इस राज्य को ‘राजनीति की प्रयोगशाला’ भी कहा जाता था। यहां मधु कोड़ा निर्दलीय मुख्यमंत्री बने, जो उस समय किसी अजूबे से कम नहीं था। इसके साथ ही इस राज्य की चर्चा भ्रष्टाचार को लेकर होने लगी।

इसकी मुख्य वजह राजनीतिक अस्थिरता रही। राज्य गठन से लेकर अब तक 24 वर्ष में 13 बार मुख्यमंत्रियों ने शपथ ग्रहण किया। हेमंत सोरेन से पहले चम्पाई सोरेन ने 12वें मुख्यमंत्री बने थे। शुरुआत में ही जब भाजपा की सरकार बनी तो बाबूलाल मरांडी पहले मुख्यमंत्री बनाए गए, लेकिन भाजपा की सरकार होते हुए भी उन्हें बहुत जल्द कुर्सी छोड़नी पड़ी और अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने। वे भी अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।

इस राज्य में विकास की रफ्तार 2014 से पकड़ने लगी, जब रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। उनके बाद 2019 के चुनाव में झामुमो-कांग्रेस के गठबंधन में हेमंत सोरेन की सरकार भी बहुमत से आई। इसके बावजूद हेमंत सोरेन को अपने ही कार्यकाल में दो बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी पड़ी। हेमंत सरकार को शुरू में कोरोना की वजह से दो वर्ष तक प्राकृतिक आपदा से संघर्ष करना पड़ा।

बहरहाल, हम मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो अभी झामुमो-कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन के साथ भाजपा के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन भी पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में डटी है। भाजपा ने असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान को विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाया है।

दोनों लगातार क्षेत्र में दौरे-सभाएं कर रहे हैं। उधर, हेमंत सोरेन के जेल जाने पर झामुमो को कल्पना सोरेन के नेतृत्व में स्टार प्रचारक मिल गया है, जो अब गांडेय से विधायक भी बन गई हैं। इससे झामुमो के समक्ष न सिर्फ नेतृत्व का संकट दूर हुआ है, बल्कि कल्पना के रूप में एक और आक्रामक नेतृत्वकर्ता भी मिल गया है। यह देखने वाली बात होगी कि इस चुनाव में झामुमो को कितना लाभ होता है। अभी कहना मुश्किल है कि इस बार भी पूर्ण बहुमत की सरकार बनती है या त्रिशंकु। दोनों ही खेमे मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

भाजपा के पास चार पूर्व सीएम

विधानसभा के चुनाव में भाजपा के पास नेताओं की लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है। राज्य में अभी बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, चम्पाई सोरेन व मधु कोड़ा के रूप में चार पूर्व सीएम हैं। यह स्थिति पहले किसी चुनाव में नहीं रही। हालांकि इसके साथ ही पुराने कद्दावर नेता भी छूट गए हैं। राज्य की राजनीति में कभी धुरी रहने वाले पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं, इसलिए सक्रिय राजनीति में उनकी भागीदारी देखने को नहीं मिलेगी। इसी तरह प्रदेश अध्यक्ष रहे राज्यसभा सांसद डॉ. दीपक प्रकाश भी मौजूदा परिदृश्य से गायब हो गए हैं। शुरुआती तीन वर्ष तक उन्होंने हेमंत सरकार को शांत नहीं रहने दिया था। इनकी तरह कुछ अन्य नेता भी अब उतने सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। इस बार के चुनाव में इसका क्या असर होगा, उस पर सबकी नजरें टिकी हैं। यहां बता दें कि झारखंड विधानसभा चुनाव में 13 और 20 नवंबर को मतदान होना है, जबकि परिणाम 23 नवंबर को आएंगे।

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