Jharkhand Bureaucracy : गुरु सुबह-सुबह पार्क में तफरीह करते दिख गए। उन्हें देखते ही लगा, मानो मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई। अंधे को क्या चाहिए- दो आंखें। तेजी से कदम बढ़ा कर गुरु के निकट पहुंचा। अभिवादन के साथ अपनी उपस्थिति का बोध कराया। गुरु इस अचानक वाली उपस्थिति से थोडे़ चकित हुए। सवालिया निगाहों से पूछा, ‘अरे! तुम यहां कैसे?’ जवाब दिया- हां, गुरु, डॉक्टर ने दिनचर्या सुधारने की हिदायत दी है। इसलिए बिस्तर से जल्दी उठकर इधर चला आया। गुरु बोले, आओ-आओ साथ चलते हैं।
Read Also: Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : राहु की संजीवनी
सेहत के साथ कुछ छपते-छपाते पता चल जाएगा। गुरु का आदेश था, लिहाजा मुस्कुराते हुए साथ हो लिया। पता था कि गुरु को कभी कुछ जानना नहीं होता था। उनके पास पहले से गुप्त सूचनाओं का भंडार था। बस सामने वाले के ज्ञान और धैर्य की परीक्षा लेते रहते हैं। गुरु के वास्तविक मनोरंजन का यही एकमात्र उपक्रम था। कदमताल करते आगे बढ़े। गुरु ने बात शुरू की। पूछा- और बताओ नवरात्र कैसी रही? मां से मांगी मन्नत पूरी तो हुई? प्रश्न का उत्तर- कहां गुरु, ऐसा कहां होता है? जवाब सुनते ही गुरु ने अचरज भरी निगाह से देखा। क्या बात करते हो? नौकरशाही वाले मुहल्ले में तो साक्षात कृपा बरस रही है।
Read Also: Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : आखिर शौक बड़ी चीज है
तांत्रिक से भेंट नहीं हुई क्या? अनजान बनते हुए कहा- गुरु समझा नहीं? अरे, इतने भी नासमझ ना बनो। वनांचल राज में हर तरफ बहार ही बहार है। रिटायरमेंट के बाद भी जलवा बरकरार है। मसला चाहे खादी का हो या खाकी का। हर तरफ मन्नत से जन्नत का रास्ता खुला है। बस साधना के लिए उच्च कोटि का साधक होना चाहिए। उच्चतम कुर्सी ने यह तलाश बहुत पहले पूरी कर ली है। अब तो फाइलों के साथ साधक का आदान-प्रदान हो रहा है। गुरु की गोलमोल बातें रहस्य को और गहरा रही थीं। लिहाजा सीधे पूछ लिया। गुरु कौन साधक और कैसी साधना? सवाल सुनकर गुरु बोले- बड़े भोले हो। जो सामने दिखता है, वह भी नहीं समझते। अब गूढ़ कथा सुनो।
Read Also: Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई…
खाकी के अनुरागी एक बड़े सूरमा ने कठिन परिश्रम से एक साधक की तलाश की। साधक ने याचक की इच्छापूर्ति के लिए घोर साधना की। असर ये हुआ कि सेवानिवृत्ति के बाद भी सेवा सुख और ओहदा कायम रहा। साधना के इस परिणाम की खबर खाकी से चलकर खादिम तक पहुंची। रिटायरमेंट की अंतिम दहलीज पर खड़ी मोहतरमा ने जुगत भिड़ाई।
Read Also: Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : चाची ने काटी ‘चांदी’
तांत्रिक को अपनी हवेली बुलाया। तांत्रिक ने साधना का महात्म्य बताया। हवन-यज्ञ के साथ मंदिर भ्रमण का महत्व समझाया। मैडम पति परमेश्वर को साथ लेकर निकल पड़ीं। मंदिर-मंदिर घंटा बजाया। कुछ दिनों बाद वही हुआ, जिसकी आस थी। मैडम का ओहदा बदला, औकात नहीं। अब कई दूसरे सूरमा उस तांत्रिक का पता तलाश रहे हैं। बात पूरी कर गुरु अपने रास्ते निकल लिए। अब अकेले आगे बढ़ना था। दिमाग में सवाल उमड़-घुमड़ रहे थे… खाकी से खादिम…। सफर कहीं सचिवालय से आयोग वाला तो नहीं।
Read Also- Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : ‘सूरज’ पर ‘ग्रहण’