Jharkhand Politics : चाईबासा: भाजपा सरकार आदिवासियों की सरना-आदिवासी धर्म कोड नहीं देकर हिंदू बनाने की साजिश रच रही है। लड़ के झारखंड लिया है और अब सरना-आदिवासी धर्म कोड भी लड़कर लेंगे। यह कहना है झामुमो जिला प्रवक्ता बुधराम लागुरी का। बुधराम लागुरी ने कहा कि वर्ष 1961 की जनगणना एवं उसके बाद हुए 1971, 1981, 1991, 2001 और अभी अंतिम 2011 में हुए जनगणना कॉलम में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन एवं बौद्ध को पृथक धर्म के रूप में दर्शाया गया है। इन सभी को अलग धर्म कोड दिया गया।

Jharkhand Politics : 1951 तक आदिवासी धर्म को अलग दर्शाया गया
उन्होंने तर्क दिया कि अबतक हुई छह जनगणनाओं में केन्द्र की किसी भी सरकार के कार्यकाल में सरना/आदिवासी धर्म कोड को एक पृथक सरना-आदिवासी धर्म कोड को नहीं दर्शाया गया। न ही अलग धर्म कोड का कॉलम दिया गया। इस तरह आदिवासी धर्म को अन्य धर्मों के कॉलम में डाल दिया गया। जबकि वर्ष 1872 से लेकर वर्ष 1951 तक की प्रत्येक जनगणना में धर्म की गणना करने की प्रक्रिया में अन्य धर्म यथा हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध की तरह आदिवासी धर्म को भी एक पृथक धर्म के रूप में दर्शाया गया था।
1961 में अन्य श्रेणी में डाला गया सरना-आदिवासी धर्म कोड
बुधराम लागुरी ने कहा कि आदिवासी भारत देश के प्रचीनतम निवासी है और भारत में उनका धर्म सबसे प्रचीनतम है। सबसे प्राचीनतम धर्म यथा सरना-आदिवासी धर्म अलग कोड और विशिष्ट दर्जा वर्ष 1961 की जनगणना से हटा दिया गया और इसे अन्य श्रेणी में डाल दिया गया है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार आदिवासी धर्म की मान्यता और विशिष्टता समाप्त कर हम आदिवासियों को अपमानित करने का कार्य कर रही है। साथ ही साथ हमारी विशिष्ट पहचान को समाप्त कर हमें अन्य धर्मों में मिलाने की कोशिश कर रही है।
Jharkhand Politics : विभिन्न राज्यों में भी चल रही मांग
झामुमो के जिला प्रवक्ता का कहना है कि इस मामले में दशकों से विभिन्न राज्यों में आदिवासियों ने भारत की जनगणना में सरना-आदिवासी के लिए अलग धर्म कोड यथा पहचान के लिए आंदोलन किया है और भारत सरकार के साथ वार्ता भी हुई है। इधर झारखंड राज्य में आदिवासियों ने अपनी सरना-आदिवासी धर्म कोड की मांग को लेकर लगातार आंदोलन चल रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी मामले को लेकर बहुत ही गम्भीरता के साथ आदिवासियों की मांग को देखा।
विधानसभा से पारित, केंद्र से नहीं मिला अनुमोदन
हेमंत सोरेन ने विधानसभा में चर्चा कराकर पारित करते हुए राज्यपाल के माध्यम से केन्द्र की भाजपा सरकार को अनुमोदन हेतु भेज दिया था। परंतु इन पांच वर्षों में केंद्र की भाजपा सरकार झारखंड की आदिवासियों को अपना हक व अधिकार दिलाने में नाकाम साबित हुई है।
27 मई से पूरे राज्य में धरना-प्रदर्शन की तैयारी
सरना-आदिवासी धर्मकोड को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा गंभीर है। इसके लिए अब व्यापक आंदोलन की रणनीति तैयार की जा रही है। झामुमो की ओर से अगले 27 मई से पूरे राज्य में विराट धरना प्रदर्शन आयोजित कर राष्ट्रपति के नाम से उपायुक्त, पश्चिमी सिंहभूम, चाईबासा को मांग पत्र सौंपा जाएगा। हर गांव के स्तर पर इस मुद्दे को उठाया जाएगा।

