धर्म-कर्म डेस्क: Gorakhnath Temple Khichdi Mela : उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित भगवान गोरखनाथ मंदिर के बारे में कौन नहीं जानता? यहां के महंत योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद इसकी ख्याति और भी विस्तार ले चुकी है। लोगों के मन में यह उत्सुकता स्वाभाविक हो सकती है कि कौन थे गोरखनाथ या गोरक्षनाथ। वैसे मंदिर में भी गोरखनाथ के बारे में जानकारी अंकित है। मकर संक्रांति इस मंदिर और मंदिर परिसर के लिए बहुत ही विशेष् होता है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी का महाभोग (Khichdi Mela) लगेगा। इसी के साथ शुरू हो जाएगा एक महीने तक लगनेवाला मेला।
ऐसी मान्यता है कि हिमाचल के कांगड़ा में गोखनाथ का आज भी इंतजार हो रहा है। यहां गर्म पानी का सोता है। इस सोते के बारे में कहा जाता है कि यहां गोरखनाथ का इंतजार हो रहा है। यह कितना सच है इसके बारे में किसी वैज्ञानिक आधार का होना या नहीं होना अलग विषय है। आइए, जानते हैं कुछ मान्यताओं के बारे में।
हिमाचल के ज्वाला देवी से आकर यहां की थी तपस्या
माना जाता है कि ज्वालादेवी के स्थान से परिभ्रमण करते हुए ‘गोरक्षनाथ जी’ ने आकर राप्ती नदी के किनारे तटवर्ती क्षेत्र में तपस्या की थी। उसी जगह पर अपनी दिव्य समाधि लगाई थी। जहां आज श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर) स्थित है। यहां वैसे सालों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है लेकिन मकर संक्रांति पर विशेष अनुष्ठान होता है और मंदिर परिसर के साथ जुड़े आसपास के स्थान पर एक माह तक मेला लगता है।
Khichdi Mela: क्यों लगता हैं यहां ‘खिचड़ी मेला’
गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा सदियों पुरानी हैं। इस मंदिर का इतिहास त्रेतायुग से जुड़ा है। गोरखनाथ को भगवान शिव का अवतार माना जाता हैं। किदंवतियों के अनुसार भिक्षाटन के लिए गोरखनाथ हिमाचल के कांगड़ा जिले के प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर गए। देवी का भोजन देखकर गुरू गोरखनाथ ने देवी से कहा कि मैं तो भिक्षा में मिले दाल-चावल ही ग्रहण करता हूं।
ज्वाला देवी ने कहा कि आप भिक्षाटन करके दाल-चावल ले आएं तब तक मैं पानी गरम करती हूं। लेकिन भिक्षाटन पर निकले गोरक्षनाथ राप्ती नदी के किनारे ही रुक गए। वापस लौटकर नहीं गए। माना जाता हैं कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में आज भी गरम पानी गुरू गोरक्षनाथ की प्रतीक्षा कर रहा हैं।
कैसे शुरू हुई खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा
सिद्ध गुरू गोरक्षनाथ राप्ती और रोहिणी नदी के संगम पर अपना भिक्षापात्र रखकर अपनी तपस्या में लीन हो गये। पौष मास के आरम्भ होने पर एक योगी को ध्यानमग्न देखकर लोग उनके भिक्षापात्र में दाल-चावल डालने लगे, किन्तु वह पात्र भर ही नहीं रहा था। यह देखकर लोग चमत्कार मानकर बाबा गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने लगे और तभी से यह परंपरा चली आ रही हैं।
गोरखनाथ मंदिर में लगता हैं सबसे पहले भोग
प्रात:काल 3.30 से 4.00 बजे तक खिचड़ी को भोग लगाकर मंदिर के पट आम जनता के लिए खोल दिये जाते हैं। मंदिर में लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से भगवान को खिचड़ी चढ़ाने के लिए आते हैं।
एक मास तक लगता हैं ‘खिचड़ी मेला’
गोरखनाथ मंदिर में लगने वाला Khichdi Mela हर साल 14 या 15 जनवरी से लेकर शिवरात्रि तक एक महीना लगता हैं। इस मेले में भारत के विभिन्न राज्यों से लोग आते हैं।
मेले में मुख्य आर्कषण
मेले में तरह-तरह की दुकानें व बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार के झूले लगाये जाते है।
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