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Kolhan Sindoor Khela Durga Puja : जमशेदपुर समेत पूरे कोल्हान में सिंदूर खेला के साथ मां दुर्गा को नम आंखों से दी गई विदाई, ‘आबार एसो मां…’ के उद्घोष से गूंजे पूजा-पंडाल

* ढोल-ढाक की गूंज और भक्ति के बीच महिलाओं ने निभाई रस्म…

by Anand Mishra
Kolhan Sindoor Khela Durga Puja
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Jamshedpur (Jharkhand) : विजयादशमी के पावन और उल्लास भरे अवसर पर गुरुवार को कोल्हान प्रमंडल के विभिन्न जिलों— पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां— के पूजा पंडालों में पारंपरिक ‘सिंदूर खेला’ का भव्य आयोजन हुआ। भक्ति और भावुकता के माहौल में, विवाहित महिलाओं ने मां दुर्गा को विदाई दी और साथ ही सुख-समृद्धि की कामना करते हुए ‘आबार एसो माँ’ (अगले साल पुनः आना मां) कहकर उनसे अनुनय-विनय किया।

सुबह से ही पंडालों में उमड़ी महिलाओं की भीड़

सुबह से ही पंडालों में विवाहित महिलाओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। पारंपरिक लाल किनारी वाली सफेद साड़ी पहने महिलाओं ने माता दुर्गा की प्रतिमा को सिंदूर अर्पित कर दीर्घ वैवाहिक जीवन और पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना की। सिंदूर खेला की शुरुआत मां दुर्गा की प्रतिमा को सिंदूर चढ़ाने से हुई, जिसके बाद ढोल-ढाक की गूंज और उत्सवी माहौल के बीच सभी ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं दीं। महिलाओं ने एक-दूसरे की मांग में सिंदूर भरकर अपने पति की लंबी आयु और दांपत्य जीवन की स्थिरता के लिए प्रार्थना की।

भक्ति और भावुकता का संगम

माता की विदाई से पहले पारंपरिक थाल सजाकर आई महिलाओं के चेहरे पर जहां एक ओर उल्लास की मुस्कान थी, वहीं माता के जाने के भावुक क्षणों में उनकी आंखें नम भी दिखीं। यह आयोजन स्त्री शक्ति, स्नेह और एकजुटता का प्रतीक बन गया। पूजा समितियों ने इस महत्वपूर्ण रस्म के लिए कई पंडालों में विशेष मंच तैयार किए थे। उपस्थित पुजारियों ने बताया कि यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि यह महिलाओं के आपसी सौहार्द और सामाजिक जुड़ाव का भी प्रतीक है, जिसका झारखंड में भी गहरा सांस्कृतिक प्रभाव देखा जा रहा है।

महिलाओं ने एक दूसरे को दी शुभकामनाएं

रंग-बिरंगी साड़ियों में सजी महिलाओं ने नृत्य, गीत और पारंपरिक मिठाइयों के साथ इस अवसर का भरपूर आनंद लिया, जिसने त्योहार के समापन को यादगार बना दिया। सिंदूर खेला के बाद, मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया और पूरे राज्य में भक्ति, आस्था और उमंग का ऐसा माहौल बना, जिसने यह संदेश दिया कि परंपरा में निहित शक्ति और एकता आज भी समाज को जोड़ने का काम कर रही है।

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