पटना : बिहार विधानसभा का बजट सत्र चुनावी साल में बेहद हंगामेदार रहा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के बीच विवाद तो चर्चा में रहा ही, इसके अलावा विधानसभा में तेजस्वी यादव और सम्राट चौधरी के बीच भी तीखी नोक-झोंक देखी गई। यह बजट सत्र नीतीश सरकार के पांच साल के कार्यकाल का आखिरी बजट सत्र था। हालांकि, बजट सत्र पहले 28 मार्च तक चलने वाला था, लेकिन ईद के पर्व के मद्देनजर इसे एक दिन कम कर दिया गया था।
सदन में पूछे गए 3857 प्रश्न, 70 घंटे चली कार्यवाही
इस बार के बजट सत्र में कुल 3857 प्रश्न पूछे गए, जिनमें से 2944 प्रश्नों को स्वीकृति मिली। इनमें से 2639 तारांकित प्रश्न थे, जिनमें से 2400 प्रश्नों के उत्तर दिए गए। इसके अलावा 278 ध्यानाकर्षण सूचनाएं लाई गईं, जिनमें से 227 के उत्तर दिए गए। 622 निवेदन विधानसभा को प्राप्त हुए, जिनमें से 616 स्वीकृत हुए। 344 याचिकाएं भी लाई गईं, जिनमें से 311 स्वीकृत हुईं। कुल मिलाकर, बजट सत्र में 70 घंटे की कार्यवाही चली।
हालांकि, सत्र का समय अपेक्षाकृत कम रहा। पहले 20 दिन सदन की कार्यवाही चलती थी, लेकिन इस बार होली और ईद के कारण दो दिन की कार्यवाही कम कर दी गई थी। इसके बावजूद, हंगामे की वजह से सदन की कार्यवाही में कई बार समय की बर्बादी हुई, लेकिन कुल मिलाकर 16 दिनों तक सदन की कार्यवाही चली। इस दौरान सदन का माहौल काफी गहमागहमी से भरा रहा।
317,000 करोड़ का बजट पास, 4 विधेयक भी स्वीकृत
बिहार सरकार ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए 317,000 करोड़ रुपये का बजट पेश किया, जिसे सदन में पास कर दिया गया। इसके अलावा चार विधेयक भी सदन में स्वीकृत किए गए। राज्य विधानसभा में कुल 243 सदस्य हैं, जिनमें से विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अलावा मंत्री का सवाल नहीं उठता है।
तेजस्वी यादव की सीमित उपस्थिति, तेज प्रताप के प्रश्नों का उत्तर नहीं
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव इस सत्र में चार दिन ही सदन में दिखे। इस दौरान उनका एक प्रश्न था, जो उनके विधानसभा क्षेत्र में सड़क निर्माण से संबंधित था। इस प्रश्न का उत्तर पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन ने दिया। वहीं, तेज प्रताप यादव के किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया।
विपक्ष ने उठाए गंभीर मुद्दे
बिहार विधानसभा के इस बजट सत्र के दौरान विपक्ष ने सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए। एआईएमआईएम के विधायक अख्तरुल ईमान ने कहा कि ‘जनता की गाढ़ी कमाई बर्बाद हो रही है और सरकार जनता के सवालों से भाग रही है। सीमांचल के विकास का मुद्दा अधूरा रह गया है’। वहीं, राजद विधायक आलोक मेहता ने सरकार पर आरोप लगाया कि ‘सरकार ने गंभीरता से जनता के सवालों का जवाब नहीं दिया। नौकरी, रोजगार और कानून व्यवस्था जैसे अहम मुद्दों पर सरकार पूरी तरह से नाकाम रही है’।
प्रश्नकाल का महत्व, सरकार की जवाबदेही पर सवाल
इस बार के बजट सत्र में लंबे समय बाद प्रश्नकाल बिना हंगामे के कई दिनों तक चला। चुनावी साल के मद्देनजर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही इस दौरान ज्यादा से ज्यादा सवाल उठाने की कोशिश कर रहे थे। विपक्ष ने 65% आरक्षण, वक्फ बिल और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश की, लेकिन सरकार का जवाब स्पष्ट नहीं था।
अरुण पांडेय का दृष्टिकोण
राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडेय का कहना है कि, ‘विधानसभा का बजट सत्र नीतीश कुमार और राबड़ी देवी के विवाद के कारण चर्चा में जरूर रहा, लेकिन विवाद से अधिक सवालों का उत्तर हुआ है। यह सभी विधायकों के लिए अंतिम बजट सत्र था क्योंकि अगले छह महीने बाद चुनाव होने हैं और इस कारण सवालों की संख्या अधिक थी’।
सदस्यों ने लिखित उत्तर को चुना
बिहार विधानसभा में 36 मंत्रियों में से सात विधान परिषद से हैं, और शेष 31 सदस्य विधानसभा से हैं। इन 31 में से कई सदस्यों ने इस बार कोई प्रश्न नहीं पूछा, जबकि कुछ ने सिर्फ शून्यकाल में अपने क्षेत्र के मुद्दे उठाए। ऐसे सदस्यों ने समयाभाव के कारण प्रश्नों का लिखित उत्तर प्राप्त किया।
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