- रिम्स में 1974 बैच के गोल्डेन जुबली समारोह में जुटे डॉक्टर
- पुनर्मिलन समारोह में 45 साल बाद दोस्तों से मिलकर खिल उठे चेहरे
रांची : जिंदगी में दोस्ती के रिश्ते का खास महत्व होता है। दोस्त न हो, तो जीवन में बहुत कुछ अधूरा सा लगता है। कुछ ऐसा ही नजारा मंगलवार को रिम्स कैंपस में देखने को मिला, जहां दोस्तों का प्यार सात समंदर पार से खींच लाया। कोई लंदन से चला आया, तो कोई अटलांटा से। रांची पहुंचने के बाद जब पुराने यार मिले तो पहले हर किसी का किला चेहरा, फिर गुफ्तगू के साथ आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।
कई डॉक्टर दोस्तों से मिलने के बाद 50 साल पीछे की यादों में खो गए। सब एक दूसरे से मिलकर हालचाल जानने में लगे थे। खट्टी- मीठी यादें शेयर करते हुए आज भी दोस्तों की टांग खींचने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
चाचा पराठा का नहीं भूला स्वाद

न्यू जर्सी से आए डॉ. सुधांशु प्रसाद कुछ दोस्तों से संपर्क में थे। उनसे मिलना भी होता था। उन्होंने बताया कि 43 साल बाद सभी बैचमेट्स एक साथ थे। 74 बैच के साथियों से मिलकर खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उस समय की एक एक बात जेहन में ताजा हो गई। बिहार के नालंदा में स्कूलिंग के बाद मैं इंग्लैंड चला गया। पिता डॉक्टर थे तो उनके साथ वहीं रहने लगा। हाई स्कूलिंग इंग्लैंड में ही हुई। इसके बाद रिम्स में एडमिशन मिला। इंग्लैंड से सीधे रांची आ गया। मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। चाचा पराठा का नाश्ता और खाना आज भी याद है। आरोग्य भवन में दोस्तों के साथ मंदिर जाने का वो पल भी भूले नहीं भूलता। जम्मू कश्मीर का एक दोस्त था, जिसे हम कश्मीरी सेब बुलाते थे। ये मेरा दोस्त ऐसा है, जिससे साल में एक बार तो मुलाकात हो ही जाती है। बाकी दोस्तों से 43 साल बाद मिलने की जो खुशी है, उसे बता नहीं सकता।
हॉस्टल के सामने गुमटी पर जुटते थे यार

जॉर्जिया के अटलांटा सिटी में रहने वाले डॉ. अरविंद गुप्ता दोस्तों से मिलने रांची पहुंच गए। डॉ. अरविंद ने बताया कि जो चीज लाइफ में इंपॉर्टेंट हो, उसके लिए तो समय निकाला जा सकता है। यहीं वजह है कि दोस्तों का प्यार खींच लाया। हमारे रिश्ते सच्चे और ईमानदारी वाले थे। यहीं एक वजह थी, जो हमें आज भी एक साथ जोड़े हुए है। हमें इस बात की चिंता नहीं थी कि कौन क्या बनेगा। मेरा फर्स्ट
ईयर का मित्र बना डॉ. सुधांशु। कोई ऐसा साल नहीं, जब हम नहीं मिलते। रिम्स कैंपस में हॉस्टल के सामने पान की गुमटी पर हम दोस्त इकट्ठा होकर गपशप करते थे। बीआईटी के पास ढाबे में दोस्तों के साथ देहाती चिकन को वो स्वाद आज भी मैं भूल नहीं सकता।
कैंपस की पॉलिटिक्स से रहा दूर

1974 बैच के डॉ. निरंजन कुमार चौधरी छत्तीसगढ़ से दोस्तों से मिलने रांची आए। उनका कहना है कि वैसे तो कुछ दोस्त मिलते रहे थे। अब 38 साल के बाद अपने बैच के साथियों से मिलना हो रहा है। मुंगेर के रहने वाले डॉ. निरंजन का आरएमसीएच में एडमिशन हुआ था। पुरानी बातों को याद करते हुए कहा कि कैंपस की पॉलिटिक्स में कभी शामिल नहीं हुआ। किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी। सभी हमारे यार थे। कोई भी किसी को भूला नहीं। हंसते-खेलते हम डॉक्टर बन गए। आज भी उसी अंदाज में दोस्तों से मिलकर खुशी हुई। अब काम से रिटायरमेंट ले चुका हूं। उन्होंने दोस्तों के लिए कहा कि जिंदगी के कैनवास पर जो तस्वीर बनी है, वह मरने के बाद भी दिलों में जिंदा रहेगी।
डेढ़ साल से थी मिलन की प्रतीक्षा

डॉ. रीता झा ने कहा कि लंदन में जब अपने दोस्तों के साथ मिलने की सूचना मिली तो दिल में पुरानी यादें ताजा हो गईं। सबके साथ धीरे-धीरे कांटैक्ट हुआ। दोस्तों से मिलने की तैयारी डेढ़ साल से चल रही थी। आज सबके साथ हूं। इस पल को कभी नहीं भूल पाऊंगी। उन्होंने कहा कि कॉलेज के दिनों के बाद कभी मिलने का मौका नहीं मिला। आज 45 साल बाद पूरे बैच से मिलना हुआ। बैच ज्वाइन करने के चार महीने बाद ही शादी हो गई। पहले साल तो दोस्तों के साथ बीते। इसके बाद बच्चे और फैमिली के साथ मेडिकल की पढ़ाई चैलेंज से कम नहीं थी। फिर भी दोस्तों से मुलाकात कॉलेज में होती थी। लंदन के रॉयल फ्री हॉस्पिटल से अब रिटायर हो चुकी हूं। आज हर टेंशन से दूर दोस्तों के साथ खुलकर मिलने का मौका मिला। उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई का जिक्र करते हुए कहा कि टॉप 8 में केवल लड़कियां ही थीं।
हॉस्टल के पीछे नाचे, सीनियर्स ने बजाए थे ढोल

कैंपस का जिक्र करते हुए रांची के डॉ. एके नाग ने कहा कि कैंपस का वो दिन कभी नहीं भूल सकता। जब हमारा पूरा बैच हॉस्टल के पीछे नाचा था। उस समय सीनियर्स ढोल बजा रहे थे। 5 साल तो सब साथ थे। लेकिन, आज 45 साल बाद सब एक साथ जुटे। कई लोग तो चेहरा भी नहीं पहचान पा रहे थे। रीयूनियन ने सभी में उत्साह भर दिया। व्हाट्सएप ग्रुप से सभी बैच के लोग जुड़ गए हैं। इंडिया के हर कोने से दोस्त पहुंचे हैं। एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पढ़ाई के दौरान ही हिरणी फॉल जाने का प्लान बन गया। गाड़ी हमारे पास थी। ड्राइवर खलासी बनकर हम हिरणी फॉल के लिए निकल पड़े। रास्ते में गाड़ी खराब हो गई। लकड़ी जलाकर हमने ठंड में रात गुजरी। सुबह पता चला कि जहां हम रात में रुके, वह शमशान घाट था।