सेंट्रल डेस्क। उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर बसे वाराणसी से संसद के लिए मई 2014 में निर्वाचित होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, कि ‘मां गंगा की सेवा करना मेरे भाग्य में है।’ यह तो सभी जानते हैं कि गंगा को शुद्ध व पवित्र बनाए रखने के लिए नमामि गंगे परियोजना चलाई जा रही है। नमामि गंगे के बारे में जानने से पहले हमें गंगा नदी के इतिहास को समझना होगा।
गंगा नदी का उद्गम
गंगा नदी का उद्गम भगीरथी और अलकनंदा नदी दोनों मिलकर करती है। गंगा नदी भारत और बांग्लादेश में 2525 किलोमीटर तक बहती हुई उत्तराखंड पहुंचती है और वहां हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी में स्थित सुंदरवन तक भारत की मुख्य नदी के रूप में एक विशाल भूमि का सींचन करती है। अपनी पवित्रता के कारण हजारों सालों से गंगा लोगों के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण रही है। हिंदू मान्यताओं में गंगा को गंगा मां कहते हैं और गंगा की पूजा की जाती है।
देश की 40% आबादी गंगा नदी पर निर्भर
इसी गंगा नदी का न सिर्फ़ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है, बल्कि देश की 40% आबादी गंगा नदी पर निर्भर है। 2014 में न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, “अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 प्रतिशत आबादी के लिए एक बड़ी मददगार साबित होगी। अतः गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है”।
क्या है नमामि गंगे अभियान
अपनी इस सोच को एक आकार देने के लिए सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने के लिए प्रस्तावित कार्य योजना को मंजूरी दे दी। इसे 100% केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ एक केंद्रीय योजना का रूप दिया गया। यह समझते हुए कि गंगा संरक्षण की चुनौती बहु-क्षेत्रीय और बहु-आयामी है।
सफाई के लिए समन्वय का होना जरूरी
एक विशाल भू-भाग में फैली गंगा नदी को साफ करना इतना आसान नहीं है। इसमें कई हितधारकों की भी भूमिका है, विभिन्न मंत्रालयों के बीच एवं केंद्र-राज्य के बीच समन्वय को बेहतर करने एवं कार्य योजना की तैयारी में सभी की भागीदारी बढ़ाने के साथ केंद्र एवं राज्य स्तर पर निगरानी तंत्र को बेहतर करने के प्रयास किए गए हैं, ताकि काम सुचारू रूप से चल सके।
इस तरह संचालित की जा रही परियोजना
कार्यक्रम के कार्यान्वयन को कई स्तरों में बांटा गया- शुरूआती स्तर की गतिविधियों, मध्यम अवधि की गतिविधियों (समय सीमा के 5 साल के भीतर लागू किया जाना है) और लंबी अवधि की गतिविधियों (10 साल के भीतर लागू किया जाना है)। शुरुआती स्तर में- नदी की उपरी सतह को साफ करना औऱ नदी में बह रहे ठोस कचरे को हटाना, ग्रामीण क्षेत्रों की नालियों से आने वाला कचरा और शौचालयों के निर्माण, शवदाह गृह का नवीकरण, आधुनिकीकरण और निर्माण ताकि अधजले या आंशिक रूप से जले हुए शव को नदी में बहाने से रोका जा सके, लोगों और नदियों के बीच संबंध को बेहतर करने के लिए घाटों के निर्माण, मरम्मत और आधुनिकीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
2500 एमएलडी अतिरिक्त ट्रीटमेंट कैपेसिटी की होगी क्षमता
मध्यम स्तर में- नगर निगम और उद्योगों से आने वाले कचरे का निस्तारण, जिसके लिए अगले 5 वर्षों में 2500 एमएलडी अतिरिक्त ट्रीटमेंट कैपेसिटी का निर्माण किया जाना है। परियोजना को गति देने के लिए वर्तमान में कैबिनेट हाइब्रिड वार्षिकी आधारित पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर विचार किया जा रहा है। अगर इस पर सहमति बनती है, तो विशेष प्रयोजन वाले वाहन, प्रयोग किए गए पानी के लिए एक बाजार बनाया जाएगा।
उठाए जा रहे ये कदम
नमामि गंगे प्रोजेक्ट के अंतर्गत इन कार्यों के अलावा जैव विविधता संरक्षण, वन लगाना और पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए भी ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। महत्वपूर्ण समुद्री प्रजातियों, जैसे– गोल्डन महासीर, डॉल्फिन, घड़ियाल, कछुए, ऊदबिलाव आदि के संरक्षण के लिए कार्यक्रम पहले से ही शुरू किये जा चुके हैं।
30,000 हेक्टेयर भूमि पर किया जाएगा पौधारोपण
इसी तरह ‘नमामि गंगे’ के तहत जल स्तर की वृद्धि, गंगा के तट पर मिट्टी का कटाव कम करने और नदी के इकोसिस्टम की स्थिति में सुधार करने के लिए 30,000 हेक्टेयर भूमि पर वन लगाए जाने की भी योजना है।
कोई भी कर सकता है योगदान
विशाल जनसंख्या और इतनी बड़ी एवं लंबी नदी गंगा की साफ-सफाई के लिए भारी निवेश की आवश्यकता है। सरकार ने पहले ही बजट को चार गुना कर दिया है लेकिन अभी भी आवश्यकताओं के हिसाब से यह पर्याप्त नहीं है। इसके लिए स्वच्छ गंगा निधि बनाई गई है जिसमें कोई भी गंगा नदी को साफ़ करने के लिए धनराशि का सहयोग कर सकता है।
हमारी, आपकी, सबकी जिम्मेदारी
हममें से अधिकांश को यह पता नहीं है कि हमारे द्वारा इस्तेमाल किया गया पानी और हमारे घरों की गंदगी अंततः नदियों में ही जाती है। गंगा को सुरक्षित रखना और इसकी साफ-सफाई हम सभी की जिम्मेदारी है, न कि केवल सरकार की।