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राज्यसभा सदस्यों के अधिकार क्या होते हैं? कैसे मनोनीत किए जाते हैं सदस्य…

by The Photon News Desk
Rights of Rajya Sabha
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सेंट्रल डेस्क/Rights of Rajya Sabha Members : लोकसभा सदस्य भी सांसद या संसद सदस्य कहे जाते हैं और राज्यसभा सदस्यों को भी सांसद कहा जाता है। आइए हम यहां जानते हैं कि राज्यसभा के वे सदस्य कौन होते हैं जिन्हें मनोनीत किया जाता है। उनका मनोनयन कैसे होता है। उनके अधिकार व कर्त्तव्य क्या होते हैं।

Rights of Rajya Sabha : सदस्यों को राज्यसभा में मनोनीत क्यों किया जाता है?

इसके पीछे संविधान तैयार करने वालों की अवधारणा ये रही कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों और विधाओं में मह्त्वपूर्ण काम करने वाले जब राज्यसभा में पहुंचेंगे तो उसका बौद्धिक स्तर ऊंचा होगा, वहां कुछ ऐसी वास्तविक बहस का माहौल बनेगा, जो लोकसभा में संभव नहीं है। फिर राजनीतिज्ञों के अलावा भी एक्सपर्ट्स और जानी-मानी हस्तियों को राज्यसभा में पहुंचने का कोई जरिया तो होना चाहिए।

Legislative Council : क्या कहा था गोपालस्वामी अयंगर ने

संविधान के प्रारूप को तैयार करने वाली कमेटी के सदस्य एन गोपालस्वामी अयंगर कहते थे, हमें ऐसे लोगों को मौका देना चाहिए, जो राजनीति का हिस्सा नहीं हैं लेकिन देश के विकास में उनका योगदान बहुत खास रहा है, उनके ज्ञान और अनुभव से सदन को लाभ होगा। वैसे संसदीय वास्तुकला में मनोनीत सदस्यों की उपस्थिति भारतीय समाज को अधिक समावेशी बनाने वाली व्यवस्था का समर्थन करती है। राज्य सभा के लिये सदस्यों का मनोनयन संबंधी प्रावधान आयरलैंड के संविधान से लिया गया है।

Legislative Council : चार सदस्यों के मनोनयन की घोषणा

केंद्र सरकार ने राज्यसभा के लिए चार मनोनीत सदस्यों के नामों की घोषणा की है। राष्ट्रपति ने इनके नामों पर मुहर लगाई है। इनका कार्यकाल 28 जुलाई से शुरू होगा और छह साल के लिए होगा। राज्यसभा में संविधान की वो कौन सी व्यवस्था है, जिसके तहत मनोनीत सदस्यों की नियुक्ति होती है और ये किस क्षेत्र से संबंधित लोग होते हैं।

Rights of Rajya Sabha : ज्ञान और अनुभव का मिलता है लाभ

राज्यसभा के लिए चार सदस्यों के मनोनयन की घोषणा की गई है। ये चारों अपने-अपने क्षेत्र की नामी हस्तियां हैं। आमतौर पर राज्यसभा में जो सदस्य मनोनीत किये जाते हैं वो अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज या एक्सपर्ट होते हैं। राज्यसभा में लोगों के मनोनयन के पीछे संवैधानिक अवधारणा भी यही रही है कि ये लोग जब राज्यसभा में आएंगे तो अपने ज्ञान और अनुभव से विधायी कार्यों में अहम रोल निभाएंगे।

इन लोगों का किया गया मनोनयन

जिन चार लोगों का मनोयन राज्यसभा में हो रहा है, उसमें संगीतज्ञ इलैयाराजा, ट्रैक-फील्ड धाविका रहीं पीटी ऊषा, तेलुगु स्क्रिप्ट राइटर वी विजेंद्रप्रसाद और आध्यात्मिक गुरु वीरेंद्र हेगड़े शामिल हैं। ये चारों तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं। इनका कार्यकाल छह सालों के लिए होगा और 28 जुलाई 2028 तक चलेगा।

12 सीटों पर राष्ट्रपति करते हैं मनोनयन

राज्यसभा में राष्ट्रपति 12 सीटों पर मनोनीत सदस्यों की नियुक्ति करते हैं। अभी राज्यसभा में पांच नोमिनेटेट सदस्य पहले से हैं। इन चार को लेकर उनकी संख्या नौ हो जाएगी। तीन सीटों पर मनोनयन अभी और होना है। फिलहाल जो सदस्य राज्यसभा में मनोनीत सदस्य के तौर पर पहले से हैं, उनमें कानूनविद महेश जेठमलानी, नृत्यांगना सोनल मानसिंह, राजनीतिज्ञ राम सकाल, प्रोफेसर राकेश सिन्हा और पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई शामिल हैं।

संविधान के किस प्रावधान से राज्यसभा में सदस्यों का मनोनयन होता है?

संविधान का आर्टिकल 80 इसका प्रावधान करता है कि राज्यसभा में राष्ट्रपति के जरिए 12 ऐसे सदस्यों का मनोनयन किया जाना चाहिए जो अपने अपने क्षेत्रों और विधाओं में नामी लोग और एक्सपर्ट हों। इसी आर्टिकल का क्लाज 3 ये कहता है कि राज्यसभा में 12 सदस्यों की नियुक्ति अगर मनोनीत करने के जरिए होगी तो 238 से ज्यादा सदस्य चुने हुए नहीं हो सकते।

मनोनीत सदस्य आमतौर पर कैसे लोग होते हैं?

ये लोग विशेष क्षेत्रों के विशेषज्ञ या उसमें काम करने वाले नामगिरामी लोग होते हैं, जिनके कामों से राष्ट्र को योगदान मिला हो। आमतौर पर ये लोग साहित्य, कला, समाज सेवा और राजनीति से जुड़े क्षेत्रों की नामी हस्तियां होती हैं।

राज्यसभा के गठन के बाद से क्या हर बार सदस्यों का मनोनयन होता रहा है?
आजादी के बाद और देश के संवैधानिक होने के बाद 1952 में राज्यसभा का गठन हुआ। तब से 142 लोगों की नियुक्ति राज्यसभा में सदस्यों के तौर पर मनोनयन के जरिए की जा चुकी है। इनमें स्कॉलर, कानूनविद, इतिहासकार, साहित्यकार, वैज्ञानिक, चिकित्सक, खिलाड़ी, समाजसेवी और राजनीतिज्ञ शामिल हैं। हालांकि ये सभी आमतौर पर सरकार के भरोसे के लोग होते हैं।

जानें अधिकार और कार्यकाल के बारे में

उनके पास वही अधिकार और शक्तियां होती हैं और वही सुविधाएं मिलती हैं, जो एक लोकसभा या राज्यसभा में चुनकर आए सांसद को हासिल होती हैं। वो सदन की कार्यवाहियों में हिस्सा ले सकते हैं। विधायी कार्यों को अपनी विशेषज्ञता और अनुभव से बेहतर बना सकते हैं। उनकी मौजूदगी से राज्यसभा में बहस का स्तर बेहतर और अनुभवजनित हो जाएगा।

उपस्थिति व दिलचस्पी पर उठ रहे सवाल

हालांकि हाल फिलहाल में जो सदस्य मनोनयन के जरिए राज्यसभा में पहुंचे, उनमें से ज्यादातर के बारे में कहा जाता रहा है कि उनकी दिलचस्पी राज्यसभा की कार्यवाहियों में कम होती है। मौजूदगी भी ज्यादा नहीं होती और विधायी कार्यों और बहस में भी वो हिस्सा लेते नहीं दिखते। हां, मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते, लेकिन उप राष्ट्रपति के चुनाव में जरूर शिरकत कर सकते हैं।

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