Ranchi: झारखंड हाई कोर्ट ने पेसा कानून (PESA Act) को लेकर सुनवाई की। कोर्ट ने झारखंड सरकार से पूछा है अब तक पेसा एक्ट की नियमावली को क्यों लागू नहीं की गई, जबकि जुलाई 2024 में ही इस मामले में इसे दो माह के भीतर लागू करने का निर्देश दिया गया था।
झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश राजेश शंकर की खंडपीठ ने सरकार से 6 सितंबर तक इस मामले में स्पष्ट जवाब मांगा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगली सुनवाई में वह इस पर निर्णय सुना सकती है।
कोर्ट में मौजूद रहे पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव
सुनवाई के दौरान झारखंड पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव स्वयं कोर्ट में उपस्थित रहे। न्यायालय ने विभागीय सचिव से सीधा सवाल किया कि इतने स्पष्ट आदेश के बावजूद अब तक पेसा नियमावली को धरातल पर क्यों नहीं उतारा गया।
अवमानना याचिका पर हुई सुनवाई
गौरतलब है कि इस मामले में आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि झारखंड राज्य का गठन ही आदिवासियों के विकास के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन 1996 में संसद द्वारा पारित पेसा एक्ट की नियमावली को अब तक राज्य में लागू नहीं किया जा सका है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
दायर याचिका में यह भी बताया गया कि पेसा कानून के प्रभावी कार्यान्वयन से ग्रामसभा को सशक्त किया जा सकता है और स्थानीय स्तर पर आदिवासियों को स्वशासन का अधिकार मिल सकता है।
पेसा कानून (PESA Act) क्या है?
Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act, 1996 24 दिसंबर 1996 को संसद द्वारा पारित किया गया था और इसका उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों (Scheduled Areas) में रहने वाले आदिवासी समुदायों को स्वशासन का अधिकार देना है। इस कानून के ज़रिए, संविधान के 73वें संशोधन में लागू पंचायती राज व्यवस्था को आदिवासी इलाकों में उनकी पारंपरिक प्रणाली के अनुरूप विस्तारित किया गया।
क्यों पड़ी पेसा कानून की ज़रूरत?
भारत के कई राज्य ऐसे हैं, जहाँ अनुसूचित क्षेत्र (जैसे झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्यप्रदेश आदि) हैं और जहाँ आदिवासी समुदाय सदियों से अपनी परंपरागत ग्रामसभा प्रणाली के तहत खुद निर्णय लेते रहे हैं। लेकिन पंचायती राज लागू होने से उनकी पारंपरिक सत्ता खत्म होने लगी। इससे उनकी संस्कृति, ज़मीन और अधिकारों पर खतरा मंडराने लगा। इसलिए, आदिवासियों की विशिष्ट सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने और उनके ग्राम स्तर पर स्वशासन को मान्यता देने के लिए यह कानून बनाया गया।
पेसा कानून के प्रमुख प्रावधान (Main Provisions of PESA Act)
- ग्रामसभा को सर्वोच्च माना गया है
• ग्रामसभा को नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है।
• कोई भी विकास योजना ग्रामसभा की अनुमति के बिना लागू नहीं की जा सकती। - जमीन, जल, जंगल पर अधिकार
• ग्रामसभा को जमीन के हस्तांतरण, खनन गतिविधियों, जल स्रोतों के उपयोग पर निर्णय लेने का अधिकार है।
• खनन लीज़ देने से पहले ग्रामसभा की सहमति जरूरी है। - पारंपरिक रीति-रिवाजों की मान्यता
• ग्राम स्तर पर न्याय, सामाजिक व्यवस्था और परंपरागत संस्थाओं को कानूनी मान्यता दी गई है। - शराब बिक्री, पैसा उधारी और बाज़ार पर नियंत्रण
• ग्रामसभा यह तय कर सकती है कि उसके क्षेत्र में शराब की बिक्री होगी या नहीं।
• साहूकारों की मनमानी से आदिवासियों को बचाने के लिए पैसे के लेनदेन और ऋण व्यवस्था पर निगरानी की व्यवस्था की गई है। - स्थानीय संसाधनों की रक्षा
• स्थानीय वन उत्पाद, जल स्रोत, खनिज, भूमि आदि के संरक्षण और उपयोग का अधिकार ग्रामसभा को दिया गया है। किन राज्यों में लागू होता है पेसा कानून?
पेसा एक्ट उन राज्यों में लागू होता है, जहाँ संविधान की अनुसूची 5 (Fifth Schedule) के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र घोषित हैं, जिसमें निम्नलिखित राज्य शामिल हैः
• झारखंड
• छत्तीसगढ़
• मध्यप्रदेश
• ओडिशा
• राजस्थान
• गुजरात
• महाराष्ट्र
• आंध्र प्रदेश
• तेलंगाना
• हिमाचल प्रदेश
किन कारणों से अब तक नहीं हुआ पूरी तरह लागू?
बता दें कि संसद ने 1996 में यह कानून बनाया था, लेकिन इसे जमीनी स्तर पर लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। राज्य सरकारों को इसके लिए अपने-अपने राज्य में नियमावली बनानी होती है।
झारखंड जैसे राज्यों ने अब तक पेसा की पूरी नियमावली नहीं बनाई है, जिससे इस कानून का लाभ आदिवासी समुदाय तक नहीं पहुँच पाया।
क्या पेसा आदिवासियों के लिए एक कवच है?
• यह कानून आदिवासियों को अपनी ज़मीन, संसाधन और संस्कृति को बचाने का संवैधानिक अधिकार देता है।
• यह उन्हें आत्मनिर्भर और स्वशासी बनाता है।
• बाहरी हस्तक्षेप से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करता है।