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PM at Jahan-e-Khusru: सूफी संत कुरान पढ़ते थे और वेदों की आवाज़ सुनते थे

जवूनागरबे, नफ़्से-ख़ुद तमाम अस्त। ज़े-काशी, पाबे-क़शान, नीम-ग़ाम अस्त’। अर्थात, जब हम जागते हैं, तो हमें यह लगता है कि काशी और काशान (जो ईरान का एक शहर है) के बीच की दूरी सिर्फ आधे कदम की है।

by Reeta Rai Sagar
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नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दिल्ली के सुंदर नर्सरी में आयोजित 25वें जहीर-ए-ख़ुसरो महोत्सव में शिरकत की। अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि भारत एक ऐसी भूमि है, जहां हर संस्कृति ने पनपने का अवसर पाया है। यहां की मिट्टी में कुछ खास है।

प्रधानमंत्री ने कहा, हमारा हिंदुस्तान वह स्वर्गिक बग़ीचा है, जहां हर रंग की संस्कृति ने पनपने का अवसर पाया है। यहां की मिट्टी में कुछ खास है। शायद इसीलिए जब सूफी परंपरा हिंदुस्तान में आई, तो ऐसा लगा जैसे वह अपनी ही धरती से जुड़ गई हो। उन्होंने कहा कि सूफी परंपरा ने भारत में एक विशिष्ट पहचान बनाई और सूफी संतों ने कुरान पढ़ा और वेदों की आवाज़ें भी सुनीं।

खुसरो ने संस्कृत को श्रेष्ठ भाषा बताया

पीएम ने आगे कहा कि जब सूफी और शास्त्रीय संगीत परंपराएं मिलीं, तो उन्होंने भक्ति और प्रेम की नई अभिव्यक्तियों को जन्म दिया, जो हज़रत ख़ुसरो की क़व्वालियों, बाबा फरीद की कविताओं, बुल्ले शाह, मीर, कबीर, रहीम और रसख़ान की शायरी में स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। ये संत रहस्यवादी भक्ति को एक नया आयाम देते हैं। पीएम ने कहा, रसख़ान, एक मुस्लिम थे, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण के अत्यंत समर्पित भक्त थे। ख़ुसरो के बारे में बोलते हुए, उन्होंने कहा कि ख़ुसरो ने भारत की प्रशंसा में गीत गाए और इसे उस समय के बड़े देशों से भी बड़ा बताया। ख़ुसरो ने संस्कृत को ‘दुनिया की सबसे श्रेष्ठ भाषा’ के रूप में वर्णित किया था।

काशी और काशान की दूरी आधे कदम की लगती हैः मोदी

ग़ालिब को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा : जवूनागरबे, नफ़्से-ख़ुद तमाम अस्त। ज़े-काशी, पाबे-क़शान, नीम-ग़ाम अस्त’। अर्थात, जब हम जागते हैं, तो हमें यह लगता है कि काशी और काशान (जो ईरान का एक शहर है) के बीच की दूरी सिर्फ आधे कदम की है। वास्तव में, आज की दुनिया में, जहां युद्ध मानवता को इतना बड़ा नुकसान पहुंचा रहा है, यह संदेश बहुत उपयोगी हो सकता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि सूफी परंपरा ने दुनिया को करीब लाया है। उन्होंने 2015 में अफ़ग़ानिस्तान संसद की अपनी यात्रा को याद करते हुए रूमी का उद्धरण किया और कहा कि आठ सौ साल पहले रूमी अफ़ग़ानिस्तान के बल्ख प्रांत में पैदा हुए थे। मैं यहां रूमी की रचनाओं का हिंदी अनुवाद ज़रूर साझा करना चाहूंगा, क्योंकि ये शब्द आज के समय में भी अत्यंत प्रासंगिक हैं।

फूल बारिश में पैदा होते हैं, तूफ़ान में नहीं

रूमी ने कहा था, ‘शब्दों को उठाओ, आवाज़ को नहीं, क्योंकि फूल बारिश में पैदा होते हैं, तूफ़ान में नहीं’।मुझे उनका एक और कथन याद आता है, अगर मैं इसे स्थानीय शब्दों में कहूं, तो इसका मतलब है, मैं न तो पूरब से हूं, न पश्चिम से, न मैं समंदर से आया हूं, न मैं ज़मीन से आया हूं, मेरा कोई स्थान नहीं है, मैं कहीं का नहीं हूं, अर्थात, मैं हर जगह हूं। यह सोच, यह दार्शनिकता हमारे ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना से अलग नहीं है। जब मैं दुनिया के विभिन्न देशों में भारत का प्रतिनिधित्व करता हूं, तो ये विचार मुझे शक्ति प्रदान करते हैं।

पीएम ने नजर-ए-कृष्णा गीत सुना

अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने आयोजक, रूमी फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. करन सिंह और कार्यकारी निदेशक मुज़फ़्फर अली को धन्यवाद दिया और अली को अपने ‘दोस्त’ के रूप में संबोधित किया। यह महोत्सव रविवार तक चलेगा। इसकी शुरुआत संजीवता सिन्हा डांस कंपनी (अहमदाबाद) और मूरलाला मर्वाड़ा (कच्छ) की प्रस्तुति से हुई। बारिश और ध्वनि व्यवस्था में कुछ व्यवधान के बावजूद, प्रधानमंत्री ने उनका ‘नज़र ए कृष्णा’ गीत सुना। उन्होंने मंच पर संगीतकारों से बातचीत भी की।

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