पटना: बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने गुरुवार को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया और सभी नए मंत्रियों को विभाग सौंपे। इस विस्तार के साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई मंत्रियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दीं, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन से एक मंत्रालय वापस ले लिया गया।
मंत्रिमंडल में बदलाव और नई जिम्मेदारियां
इस बदलाव के तहत विजय मंडल को आपदा प्रबंधन विभाग सौंपा गया है, जो राज्य में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में अहम भूमिका निभाएगा। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन से पहले जो सूचना प्रौद्योगिकी विभाग था, वह अब कृष्ण कुमार मंटू को सौंपा गया है। संतोष सुमन के पास अब केवल लघु जल संसाधन विभाग ही रहेगा।
संजय सरावगी को राजस्व और भूमि सुधार विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो राज्य में भूमि से जुड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए अहम साबित हो सकता है। इसके अलावा, सात नए मंत्रियों को भी विभाग आवंटित किए गए हैं, जिनकी भूमिका अगले 8-9 महीनों में महत्वपूर्ण होगी, खासकर राज्य विधानसभा चुनाव के मद्देनजर।
नीतीश सरकार की चुनावी तैयारी और योजनाएं
बिहार में विधानसभा चुनाव को मात्र 8-9 महीने बाकी हैं और इस विस्तार के साथ नीतीश कुमार मंत्रिमंडल अपनी पूरी क्षमता में आ गए है। अगले कुछ महीनों में राज्य सरकार की ओर से 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की योजनाओं को लागू किया जाएगा। इनमें से दक्षिण बिहार के लिए 30,000 करोड़ रुपये की 120 योजनाओं और उत्तर बिहार के लिए 20,000 करोड़ रुपये की 187 योजनाओं को कैबिनेट मंजूरी पहले ही मिल चुकी है। इन योजनाओं के लागू होने से राज्य में विकास की गति को बढ़ावा मिलेगा और चुनावी माहौल में सरकार की छवि को मजबूत किया जा सकेगा।
जाति गणित और राजनीतिक समीकरण
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर जातिगत समीकरणों की चर्चा तेज हो गई है। नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल का जाति एक्स-रे इस बार एक बड़ा मुद्दा बन गया है। नीतीश कुमार की सरकार में सवर्ण जातियों से 11 मंत्री हैं, पिछड़ी जातियों से 10 मंत्री, अति पिछड़ी जातियों से 7 मंत्री, दलितों से 5 मंत्री और महादलित वर्ग से 2 मंत्री शामिल हैं। इसके अलावा, मुस्लिम समुदाय से भी एक मंत्री को स्थान मिला है।
बिहार में 9 महीने बाद चुनाव होने हैं और सरकार ने मंत्रिमंडल के विस्तार में जातिगत संतुलन बनाने की कोशिश की है। तेजस्वी यादव द्वारा जातिगणना के आंकड़े सार्वजनिक किए जाने के बाद, नीतीश सरकार की यह जातिगत मोर्चाबंदी और महत्वपूर्ण हो गई है।
जाति गणना का प्रभाव और सरकार की रणनीति
पिछली जाति गणना के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की आबादी 36 प्रतिशत है, लेकिन नीतीश सरकार के मंत्रिमंडल में उनकी हिस्सेदारी 19 प्रतिशत है। ओबीसी की आबादी 27.12 प्रतिशत होने के बावजूद मंत्रिमंडल में उनकी हिस्सेदारी 28 प्रतिशत है। दलित और महादलित वर्ग की कुल आबादी 19.65 प्रतिशत है, जबकि मंत्रिमंडल में उनकी हिस्सेदारी 19 प्रतिशत है। सवर्ण जातियों की आबादी 15.52 प्रतिशत है और मंत्रिमंडल में उनकी हिस्सेदारी 31 प्रतिशत है।
इस जातिगत संतुलन के आधार पर, नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल को इस तरह से समायोजित किया है ताकि विभिन्न वर्गों को प्रतिनिधित्व मिल सके। तेजस्वी यादव ने सरकार की जाति गणना को लेकर हमलावर रुख अपनाया है और वह लगातार इस मुद्दे पर बीजेपी और नीतीश सरकार से सवाल कर रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य में सबसे अधिक आबादी वाले वर्गों को उनके हिसाब से हिस्सा नहीं मिल रहा है।