नई दिल्ली: कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा का संसद में ‘Palestine’ लिखा हुआ बैग लेकर आना अब सियासी विवाद का केंद्र बन गया है। इस घटना के बाद राजनीतिक हलकों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। बीजेपी ने इस कदम को मुस्लिम तुष्टीकरण करार दिया, जबकि कांग्रेस इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी स्पष्ट राय बताने का प्रयास कह रही है।
फिलिस्तीन बैग पर शुरू हुई सियासत
प्रियंका गांधी जब हाल ही में संसद भवन पहुंचीं तो उनके हाथ में एक विशेष बैग नजर आया, जिस पर ‘Palestine’ लिखा था। संसद जैसे मंच पर इस तरह का प्रतीकात्मक समर्थन सीधे तौर पर एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दे की ओर इशारा करता है। प्रियंका गांधी के इस कदम को लेकर केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल ने कहा कि कांग्रेस का यह कदम मुस्लिम वोटबैंक को साधने का प्रयास है।
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, “प्रियंका गांधी जानबूझकर ऐसे प्रतीक अपनाकर तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं।” वहीं, कांग्रेस के कई नेताओं ने इसे मानवाधिकारों और फिलिस्तीन मुद्दे पर पार्टी की प्रतिबद्धता बताया।
प्रियंका गांधी का पुराना रुख
यह पहली बार नहीं है जब प्रियंका गांधी और कांग्रेस ने फिलिस्तीन के मुद्दे पर अपना रुख साफ किया हो। इससे पहले भी प्रियंका गांधी ने फिलिस्तीन के राजदूत अबेद एलराज़ेग अबू जाज़ेर से मुलाकात की थी। उस समय राजदूत ने उन्हें लोकसभा चुनाव में मिली जीत की बधाई दी थी।
कांग्रेस लंबे समय से मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में फिलिस्तीन का समर्थन करती रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता यह दावा करते रहे हैं कि कांग्रेस का यह रुख गुटनिरपेक्ष नीति का हिस्सा है।
बीजेपी और अन्य दलों की तीखी प्रतिक्रिया
प्रियंका गांधी के ‘फिलिस्तीन’ बैग पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी ने इसे एक राजनीतिक स्टंट बताया। पार्टी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस अंतरराष्ट्रीय मुद्दों का इस्तेमाल करके वोटबैंक की राजनीति कर रही है।
वहीं, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संसद जैसे मंच पर इस तरह का प्रदर्शन कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। हालांकि, बीजेपी इसे भारत के कूटनीतिक संबंधों के लिए असंवेदनशील कदम बता रही है।
क्या है इसका राजनीतिक असर?
प्रियंका गांधी के इस प्रतीकात्मक कदम ने एक बार फिर फिलिस्तीन-इजरायल मुद्दे को चर्चा में ला दिया है। इससे भारत के आंतरिक राजनीति में ध्रुवीकरण की स्थिति बढ़ सकती है। बीजेपी जहां इसे राष्ट्रवाद बनाम तुष्टीकरण की बहस से जोड़ रही है, वहीं कांग्रेस इसे अंतरराष्ट्रीय न्याय और मानवीय मुद्दों की पैरवी बता रही है।
सियासी विश्लेषकों का मानना है कि प्रियंका गांधी का यह कदम 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर खास रणनीति का हिस्सा हो सकता है। फिलहाल इस विवाद ने राजनीतिक दलों को एक बार फिर आमने-सामने खड़ा कर दिया है।

