Chaibasa (Jharkhand): पश्चिमी सिंहभूम जिले के शांत और सुरम्य जगन्नाथपुर प्रखंड में बैतरणी नदी के पवित्र तट पर विराजमान रामतीर्थ रामेश्वर मंदिर सदियों से धार्मिक आस्था, समृद्ध संस्कृति और गौरवशाली इतिहास का जीवंत प्रमाण बना हुआ है। यह पावन स्थल न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है, बल्कि यह त्रेता युग की उस कहानी को भी अपने भीतर समेटे हुए है, जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, माता सीता और उनके प्रिय अनुज लक्ष्मण ने अपने वनवास काल के दौरान यहां विश्राम किया था।
श्रीराम के पदचिन्हों का रहस्य और उनकी स्थापना
स्थानीय मान्यता के अनुसार, इसी पवित्र भूमि पर भगवान श्रीराम ने अपने कर-कमलों से शिवलिंग की स्थापना की थी और विधि-विधान से उसकी पूजा-अर्चना की थी। इस स्थान को भगवान राम के पदचिन्हों से जोड़कर देखा जाता है, जिनके बारे में कहा जाता है कि इनमें से एक वास्तविक है, जबकि दो अन्य कृत्रिम रूप से स्थापित किए गए हैं। इस रहस्य का अनावरण तब हुआ जब एक स्थानीय देवरी (पुजारी) को स्वप्न में इसकी जानकारी मिली। इसके बाद, टाटा स्टील नोवामुंडी की सहायता से इन पदचिन्हों को बैतरणी नदी की गहराई से निकालकर मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया, जिससे इस स्थल की महिमा और भी बढ़ गई।
सर्वधर्म समभाव का प्रतीक और मंदिरों का संगम
समाजसेवी निसार अहमद, जो एक मुस्लिम समुदाय से होने के बावजूद भगवान श्रीराम को अपना आदर्श मानते हैं, इस मंदिर की विशेषता बताते हैं। उन्होंने जानकारी दी कि रामतीर्थ में चार प्रमुख मंदिर स्थापित हैं – भगवान राम को समर्पित रामेश्वर मंदिर, भगवान शिव का मंदिर, जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ का मंदिर और वीर हनुमान का बजरंगी मंदिर। यह धार्मिक स्थल न केवल विभिन्न देवताओं की आराधना का केंद्र है, बल्कि यह सांप्रदायिक सौहार्द्र और सर्वधर्म समभाव का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।
ग्रामीणों के प्रयास और सौंदर्यीकरण
इस पवित्र मंदिर की नींव वर्ष 1910 में स्थानीय ग्रामीणों के सामूहिक प्रयासों से रखी गई थी। समय के साथ, इस स्थल के महत्व को देखते हुए, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, पूर्व सांसद गीता कोड़ा और स्थानीय ग्रामीणों ने इसके सौंदर्यीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे यह और भी आकर्षक और सुगम बन गया है। हाल ही में, झारखंड सरकार ने रामतीर्थ मंदिर को एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में घोषित किया है, जिससे इसकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान और भी मजबूत हुई है।
वेसर शैली की अद्भुत वास्तुकला और मकर संक्रांति का भव्य मेला
रामतीर्थ मंदिर की वास्तुकला वेसर शैली पर आधारित है, जो इसे एक विशिष्ट और दर्शनीय रूप प्रदान करती है। इस शैली की अनूठी कारीगरी और सुंदरता श्रद्धालुओं और पर्यटकों को समान रूप से आकर्षित करती है। हर वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर यहां एक विशाल मेले का आयोजन होता है, जो इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन है। इस मेले में न केवल झारखंड के विभिन्न हिस्सों से, बल्कि पड़ोसी राज्य ओडिशा के मयूरभंज और सुंदरगढ़ जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
सोमवार की विशेष पूजा और मनोकामनाओं की पूर्ति
रामतीर्थ मंदिर में सोमवार के दिन विशेष पूजा-अर्चना का विधान है। स्थानीय लोगों और दूर से आने वाले भक्तों का मानना है कि सोमवार को यहां भगवान की आराधना करने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस अटूट आस्था और श्रद्धा के कारण, रामतीर्थ मंदिर क्षेत्र में लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों को छू रहा है और धीरे-धीरे तीर्थाटन के मानचित्र पर अपना एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान बनाता जा रहा है। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह आस्था, संस्कृति और इतिहास का एक जीवंत संगम है, जो हर आगंतुक को एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।