स्पेशल डेस्क. ईद-उल-फितर में अब एक हफ़्ते से भी कम का समय बचा है। यह त्योहार रमजान के महीने के बाद आता है, जिसमें मुस्लिम समुदाय पूरे 30 दिन तक रोज़ा रखते हैं। एक महीने तक भूख-प्यास की शिद्दत बर्दाश्त करने के बाद मुसलमानों को ईद-उल-फितर का तोहफा मिलता है। दुनियाभर में सभी धर्मों के लोग रमजान और ईद की पवित्रता का सम्मान करते हैं।
रमजान का महत्व
रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौंवा महीना है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक रोजा रखते हैं और अन्न-जल से परहेज करते हैं। सूर्यास्त होते ही रोजा रखने वाला व्यक्ति खजूर या पानी से रोजा खोलता है। यह महीना मुसलमानों के लिए आत्मचिंतन के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
ईद-उल-फितर के साथ रमजान होगा खत्म
इस्लाम धर्म का सबसे पाक महीने खत्म होने में बस कुछ ही दिन बाकी बचे हैं। क्योंकि, कुछ ही दिनों में ईद-उल-फितर के त्योहार के साथ रमजान का महीना खत्म हो जाएगा। इस्लाम धर्म में रमजान और ईद-उल-फितर सबसे पाक त्योहार माना जाता है, इसे मीठी ईद भी कहा जाता है, जो अपने साथ कई मायनों पर रहमत ले आता है, इस्लाम धर्म मानने वालों के लिए ये महीना मुबारक और अव्वल होता है। वहीं, ईद-उल-फितर त्योहार के दौरान लोग एक-दूसरे को गले मिलते हैं। खुशियों का इजहार करते हैं और अल्लाह से रहमत और बरकत की कामना करते हैं।
ईद-उल-फितर 2024 कब है?
इस्लामिक चंद्र कैलेंडर (हिजरी) के दसवें महीने, शव्वाल के पहले दिन पड़ने वाली, ईद-उल-फितर की तारीख स्थानीय धार्मिक अधिकारियों द्वारा नए चंद्रमा के देखे जाने के आधार पर हर साल बदलती रहती है। कई रिपोर्ट के अनुसार, इस साल, ईद-उल-फितर 10 अप्रैल, 2024 को मनाया जाएगा।
सहरी और इफ्तारी का होता है महत्व
रमजान के पाक महीने में सहरी और इफ्तारी का ख़ास महत्व होता है। सहरी को सूर्योदय से पहले किया जाता है। धर्म को मानने वाले सभी लोग लगभग अनिवार्य रूप से रोज़े रखते हैं। इफ्तार शाम को नमाज़ के बाद किया जाता है। इसमें खजूर खाकर रोज़ा खोला जाता है। ये शाम को मगरिब की अजान के बाद खोला जाता है।
ईद-उल-फितर का इतिहास
ईद इस्लाम के प्रमुख त्योहारों में एक है, जिसे मुस्लिम समुदाय के लोग खुशी और जश्न के साथ मनाते हैं। ईद-उल-फितर मनाए जाने को लेकर ऐसा माना जाता है कि इसी खास दिन पर पैगंबर हजरत मुहम्मद ने बद्र के युद्ध में जीत हासिल की थी। इसी खुशी में हर साल ईद मनाई जाती है। कहा जाता है कि 624 ई. में पहली बार ईद-उल-फितर मनाया गया था। खुशी, जश्न, प्रेम, सौहार्द, अमन, चैन और भाईचारे को बढ़ावा देना ही ईद पर्व का महत्व है। इसलिए ईद के दिन लोग गले मिलते हैं और एक-दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं।