पॉलिटिकल डेस्क, पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में बिहार विधानसभा में जातिगत आरक्षण को 65% तक बढ़ाने का बिल पास हो गया है। बिहार विधानसभा में शीतकालीन सत्र के चौथे दिन आरक्षण संशोधन विधेयक-2023 पेश किया गया था। राज्य सरकार द्वारा जातीय गणना कराए जाने के बाद बिहार में आरक्षण का दायरा 75 प्रतिशत करने का सरकार ने प्रस्ताव दिया है, जिसका बीजेपी समेत अन्य विपक्षी दलों ने समर्थन किया है। नीतीश सरकार ने जातीय गणना की रिपोर्ट के आधार पर राज्य में आरक्षण का दायरा 15 प्रतिशत बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। कैबिनेट से इसे मंजूरी भी मिल चुकी है। कुल मिलाकर 75 प्रतिशत आरक्षण वाला विधेयक होगा। इस विधेयक में ओबीसी-ईबीसी की 43% हिस्सेदारी होगी। इसका समीकरण कुछ इस तरह से समझें कि बिहार में अभी आरक्षण की सीमा 50% है।
किस वर्ग में कितना बढ़ाया?
• अत्यंत पिछड़ा वर्ग- पहले 18 प्रतिशत, बढ़ाकर 25 प्रतिशत
• पिछड़ा- पहले 12 प्रतिशत, बढ़ाकर- 18 प्रतिशत
• अनुसूचित जाति- पहले 16 प्रतिशत, बढ़ाकर 20 प्रतिशत
• अनुसूचित जनजाति- पहले 1 प्रतिशत, बढ़ाकर 2 प्रतिशत
• ईडब्ल्यूएस का 10 पहले से
दरअसल, सर्वे के आधार पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने ओबीसी और ईबीएस के आरक्षण को 30 से बढ़ाकर 43 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के लिए 16 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत और 2 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 1 से बढ़ाकर 2 प्रतिशत करने की सिफारिश की थी। वहीं ईडब्ल्यूएस के लिए कोटा मौजूदा 10 फीसदी ही रहेगा। साथ ही अगर कुल योग किया जाए, तो यह आंकड़ा 75 प्रतिशत पर पहुंच रहा है। राज्य में ओबीसी, ईबीसी, एससी-एसटी वर्ग को मिलाकर अभी जो 50 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है, उसे बढ़ाकर 65 फीसदी किया जाना है। इसके अलावा ईडब्ल्यूएस कैटेगरी को 10 प्रतिशत आरक्षण अलग से मिलता रहेगा। इस तरह राज्य में कुल 75 प्रतिशत आरक्षण किए जाने का प्रस्ताव है। इसमें पिछड़ा वर्ग को 18 फीसदी, अति पिछड़ा वर्ग को 25 फीसदी, एससी को 20 फीसदी और एसटी को दो फीसदी आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है। विधानसभा में पास होने के बाद इसे विधानपरिषद से भी पास कराया जाएगा। दोनों सदनों से बिल पारित होने के बाद सरकार आरक्षण का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव केंद्र को भेजेगी। आरक्षण में 9 संशोधन हैं।
सर्वे के लिहाज से जनसंख्या
वहीं, अगर सर्वे की बात करें, तो बिहार में ओबीसी 27.13 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग उप-समूह (36 प्रतिशत) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है, एससी-एसटी कुल मिलाकर 21 प्रतिशत से थोड़ा अधिक हैं। विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में लगभग 2.97 करोड़ परिवार हैं, जिनमें से 94 लाख से अधिक (34.13 प्रतिशत) 6,000 रुपये या उससे कम मासिक आय पर निर्भर हैं। बिहार में हाल ही में जातिगत जनगणना के नतीजे आए थे। बिहार सरकार ने इसे विधानसभा में भी पेश किया। इस दौरान नीतीश कुमार ने सदन में कहा था कि जातिगत सर्वे की रिपोर्ट को देखते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए कोटा बढ़ाने की जरूरत है। राज्य में जनसंख्या के आधार पर वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ाया जा सकता है।
ईडब्ल्यूएस आरक्षण पहले की तरह लागू रहेगा
विधानसभा से बिल के पारित होने के बाद इस विधेयक को अब विधान परिषद में रखा जाएगा, जहां से पास होने के बाद राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। राज्यपाल की मंजूरी के बाद यह कानून का रूप लेगा। बिहार में सुशासन बाबू ने अति पिछड़ों और पिछड़ों के वोट बैंक से नई सियासत शुरू की है। अब देखना होगा कि इसका कितना फायदा मिलता है। वहीं, विधेयक में ईडब्ल्यूएस के आरक्षण का जिक्र नहीं होने पर बीजेपी ने सवाल उठाया। इस पर संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि ईडब्ल्यूएस का आरक्षण दूसरे अधिनियम से लागू होगा। ईडब्ल्यूएस आरक्षण पहले की तरह लागू रहेगा। इसके अलावा बिहार सचिवालय सेवा संशोधन विधेयक 2023, बिहार माल और सेवाकर द्वितीय संशोधन विधेयक-2023 भी पेश किया गया।
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