मुंबई : 2024 के अंत तक भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले तीन प्रतिशत कमजोर हुआ है, जबकि अन्य प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले इसकी स्थिति बेहतर रही है। इस साल के दौरान भारतीय मुद्रा पर कई वैश्विक आर्थिक घटनाओं का असर पड़ा और भारतीय रुपये में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। हालांकि, कुछ मुद्राओं के मुकाबले रुपये की गिरावट कम रही है, जिससे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को इसे स्थिर करने के लिए सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करना पड़ा।
डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ
वर्ष 2024 के अंत में रुपये ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले तीन प्रतिशत की गिरावट दर्ज की। भारतीय रुपया इस समय 85.59 प्रति डॉलर के स्तर पर था, जो जनवरी में 83.19 प्रति डॉलर था। यह गिरावट मुख्य रूप से डॉलर के मजबूत होने, वैश्विक बाजारों में तनाव और भारत की आर्थिक स्थिति के कारण हुई है। विशेष रूप से, रूस-यूक्रेन युद्ध, पश्चिम एशिया में जारी संकट और चीन की आर्थिक वृद्धि में सुस्ती ने भारतीय मुद्रा को प्रभावित किया। इसके अलावा, कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता और बढ़ते व्यापार घाटे के कारण अमेरिकी डॉलर की मांग में वृद्धि हुई।
विदेशी मुद्रा भंडार और आरबीआई की कोशिशें
रुपये में गिरावट को नियंत्रित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सक्रिय प्रयास किए। RBI द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार में हस्तक्षेप के संकेत भी मिले, जिसका असर रुपये पर पड़ा। सितंबर में विदेशी मुद्रा भंडार 704.89 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर था, जो दिसंबर तक घटकर 644.39 अरब डॉलर रह गया। यह आंकड़ा इस साल का छह माह का निचला स्तर था।
अन्य मुद्राओं के मुकाबले रुपये की स्थिति
रुपये की गिरावट, हालांकि, डॉलर के मुकाबले ही अधिक थी। जापानी येन और यूरो के मुकाबले भारतीय रुपया अधिक मजबूत रहा। 2024 में रुपये ने येन के मुकाबले 8.7% की मजबूती दर्ज की। एक जनवरी को 100 येन के मुकाबले रुपया 58.99 था, जो 27 दिसंबर तक गिरकर 54.26 रुपये प्रति 100 येन हो गया। इसी तरह, यूरो के मुकाबले भी रुपये में सुधार देखा गया। अगस्त के बाद से रुपये में पांच प्रतिशत की वृद्धि हुई और 27 दिसंबर तक यह 89.11 रुपये प्रति यूरो रहा, जबकि अगस्त में यह 93.75 रुपये प्रति यूरो था।
वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां और रुपये पर असर
2024 में वैश्विक घटनाओं ने भारतीय रुपये को प्रभावित किया। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार, फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती के संकेत, और अमेरिका द्वारा चीन से आयात शुल्क बढ़ाने की घोषणा ने डॉलर की मांग को बढ़ा दिया। इससे वैश्विक मुद्रा बाजार में डॉलर की ताकत बढ़ी, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय रुपया कमजोर हुआ।
इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया में संघर्ष ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित किया, जिससे भारतीय निर्यात और व्यापार घाटे पर दबाव बढ़ा। इन कारणों से रुपये की विनिमय दर में अस्थिरता आई, लेकिन अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया अपेक्षाकृत स्थिर रहा।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगले साल रुपये की स्थिति में सुधार हो सकता है। हालांकि, वैश्विक मुद्राओं और भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा कि भारतीय रुपया किस दिशा में जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक की सक्रिय नीतियों और वैश्विक स्थिति में सुधार की संभावना से रुपये की स्थिरता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
अंत में, इस साल रुपये की स्थिति में गिरावट जरूर आई है, लेकिन अन्य वैश्विक मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया अपेक्षाकृत मजबूत रहा है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत हो सकता है कि आगामी वर्ष में रुपये की स्थिति कुछ बेहतर हो सकती है।
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