सहारनपुर: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित बरसी गांव में एक अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है, जो न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां के लोग होली तो मनाते हैं, लेकिन होलिका दहन नहीं करते। यह परंपरा महाभारत काल से जुड़ी हुई है, जो आज भी ग्रामीणों द्वारा पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाई जाती है। बरसी गांव के लोग मानते हैं कि होलिका दहन से भगवान शिव के पैर जलते हैं, जिसके कारण इस गांव में यह परंपरा नहीं निभाई जाती है।
महाभारत कालीन शिव मंदिर की महत्ता
बरसी गांव के पश्चिमी छोर पर एक प्राचीन शिव मंदिर स्थित है, जिसे महाभारत काल से जोड़ा जाता है। मंदिर में स्थापित स्वयंभू शिवलिंग की पूजा वर्षों से जारी है। यह मंदिर धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे महाभारत काल का सिद्धपीठ शिव मंदिर भी कहा जाता है। गांव के लोग बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण कौरवों ने कराया था, जो एक ऐतिहासिक घटना से जुड़ा हुआ है।
कहा जाता है कि जब पांडव पुत्र भीम कुरुक्षेत्र युद्ध के लिए जा रहे थे, तो उन्होंने इस मंदिर के मुख्य द्वार में गदा मारी, जिससे मंदिर को पूर्व से पश्चिम की ओर घुमा दिया गया। इस कारण इस शिव मंदिर को देश का एकमात्र पश्चिम मुखी शिव मंदिर माना जाता है।
यहां तक कि कुछ स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण भी जब कुरुक्षेत्र युद्ध के लिए यात्रा कर रहे थे, तो वे बरसी गांव में रुके थे। उन्होंने इस गांव को बृज बताया था, जिसके बाद गांव का नाम बरसी पड़ा।
होलिका दहन से शिव के पैर जलने की मान्यता
बरसी गांव के लोग एक विशेष धार्मिक मान्यता का पालन करते हैं, जिसके तहत वे होलिका दहन नहीं करते। ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव में भगवान शिव के स्वयंभू शिवलिंग के कारण उनका आगमन होता है। होलिका की आग से भगवान शिव के पैर जलने की मान्यता है, और यही कारण है कि यहां होली के दिन होलिका दहन नहीं किया जाता।
ग्रामीणों का यह भी मानना है कि होलिका दहन से होने वाली आग की तपिश से भगवान शिव के पैर जल सकते हैं, और यही कारण है कि बरसी गांव में यह परंपरा अब तक नहीं निभाई जाती है। हालांकि, गांव के लोग होली का पर्व खुशी-खुशी मनाते हैं, लेकिन वे केवल पारंपरिक रूप से होली के दिन रंग खेलते हैं और अन्य गांवों में जाकर होली की पूजा करते हैं।
विवाहित महिलाएं करती हैं पूजा
गांव की विवाहित महिलाएं इस दिन पड़ोसी गांवों में जाकर होली की पूजा करती हैं, और अपने ससुराल के रीति-रिवाजों के अनुसार त्योहार मनाती हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, और ग्रामीण इसे भविष्य में भी बनाए रखने का संकल्प लेते हैं।
बरसी गांव में होलिका दहन न करने की परंपरा धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष स्थान रखती है, जो महाभारत काल की ऐतिहासिक धरोहर से जुड़ी हुई है। यह परंपरा न केवल गांव के लोगों की आस्था का प्रतीक है, बल्कि एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संदर्भ भी प्रस्तुत करती है, जो इस गांव को अन्य स्थानों से अलग बनाती है।