Satyapal Malik Death : देश की राजनीति के एक महत्वपूर्ण चेहरा रहे जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मंगलवार को दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया (RML) अस्पताल में निधन हो गया। वे 78 वर्ष के थे और लंबे समय से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। उन्हें मई 2025 में यूरीनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन और किडनी फेल्योर की जटिलताओं के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों की लगातार निगरानी के बावजूद उनकी हालत में सुधार नहीं हो सका और आज दोपहर उन्होंने अंतिम सांस ली।
उनके निधन की खबर फैलते ही पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। उल्लेखनीय है कि एक दिन पहले ही झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और आदिवासी नेता शिबू सोरेन का भी दिल्ली में निधन हुआ था। झारखंड और राष्ट्रीय राजनीति के लिए यह एक गहरा आघात है।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत और उत्कर्ष
सत्यपाल मलिक का जन्म 24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसवाड़ा गांव में एक जाट परिवार में हुआ था। उन्होंने मेरठ कॉलेज से विज्ञान और कानून की पढ़ाई की। राजनीति में उनकी शुरुआत 1968-69 में मेरठ कॉलेज छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में हुई थी। इसके बाद 1974 से 1977 तक वह उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे और फिर 1980 से 1989 तक राज्यसभा के सदस्य के रूप में सक्रिय रहे। 1989 से 1991 तक वे अलीगढ़ से नौवीं लोकसभा के सांसद भी रहे।
जम्मू-कश्मीर में ऐतिहासिक भूमिका
सत्यपाल मलिक अगस्त 2018 से अक्टूबर 2019 तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे। यही वह समय था जब केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को हटाने का ऐतिहासिक फैसला लिया और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया। इस निर्णय में उनकी भूमिका बेहद अहम मानी जाती है। इसके बाद वे बिहार और मेघालय के राज्यपाल भी बने। हालांकि बाद के वर्षों में वे भाजपा के मुखर आलोचक के रूप में सामने आए। उन्होंने पुलवामा हमले में सुरक्षा चूक और किरू हाइड्रोपावर परियोजना में कथित भ्रष्टाचार जैसे संवेदनशील मुद्दों पर खुलकर बयान दिए, जिससे वे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहे।
झारखंड से जुड़ा विशेष संदर्भ
हालांकि सत्यपाल मलिक का राजनीतिक जीवन मुख्य रूप से उत्तर भारत केंद्रित रहा, लेकिन उनका झारखंड से विशेष जुड़ाव तब सामने आया जब उन्होंने झारखंड की आदिवासी राजनीति, शिबू सोरेन की नीतियों और झारखंड आंदोलन के प्रति सहानुभूति व्यक्त की थी। शिबू सोरेन के निधन के एक दिन बाद सत्यपाल मलिक का जाना, झारखंड के राजनीतिक इतिहास के लिए एक दुखद संयोग बन गया है।
सत्यपाल मलिक एक ऐसे नेता थे जिन्होंने सत्ता में रहते हुए भी असहमति की आवाज बुलंद की। उनके निधन के साथ भारतीय राजनीति ने एक स्पष्टवादी और निर्भीक वक्ता खो दिया है। आने वाले दिनों में उनके योगदान और विचारधारा पर कई राजनीतिक चर्चाएं हो सकती हैं। उनकी अंतिम यात्रा और श्रद्धांजलि समारोह की जानकारी जल्द सार्वजनिक की जाएगी।
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