नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता को लेकर दायर की जा रही नई याचिकाओं पर नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि याचिकाओं दायर करने की एक सीमा होती है और अब तक बहुत सारे अंतरिम आवेदन दायर किए गए हैं, जिनकी वजह से कोर्ट शायद इस पर समय से विचार न कर पाए। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अब इस मामले पर अप्रैल के पहले सप्ताह में सुनवाई होगी।
क्या है पूजा स्थल अधिनियम, 1991?
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का मुख्य उद्देश्य 15 अगस्त, 1947 को देश में जो भी पूजा स्थल थे, उनके धार्मिक चरित्र को उसी रूप में बनाए रखना है, जैसा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय था। यह अधिनियम किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक परिवर्तन पर रोक लगाता है और इसे उस स्थिति में बनाए रखने का प्रावधान करता है। हालांकि, अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इस अधिनियम से बाहर रखा गया था।
सुप्रीम कोर्ट में दायर नई याचिकाएं:
12 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम से संबंधित 18 मामलों की कार्यवाही को प्रभावी रूप से रोक दिया था। इनमें प्रमुख मामलों में वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और संभल की शाही जामा मस्जिद सहित 10 मस्जिदों के धार्मिक चरित्र का सर्वेक्षण किए जाने की मांग की गई थी। इस समय हुई झड़पों में चार लोग मारे गए थे।
इसके बाद, न्यायालय ने इन याचिकाओं पर 17 फरवरी 2025 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था। लेकिन 12 दिसंबर के बाद कई नई याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टी की नेता इकरा चौधरी और कांग्रेस पार्टी सहित विभिन्न राजनीतिक दल शामिल हैं। इन याचिकाओं में 1991 के कानून के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग की गई है।
याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी:
इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने याचिकाओं की बढ़ती संख्या पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की याचिकाओं की दायर करने की एक सीमा होती है और बहुत से अंतरिम आवेदन होने के कारण इस मामले पर सही तरीके से विचार करना कठिन हो सकता है।
क्या है इस विवाद का केंद्रीय मुद्दा?
इस समय विवाद का मुख्य बिंदु 1991 के कानून की धारा 3 और 4 से संबंधित है। धारा 3 पूजा स्थलों के धार्मिक परिवर्तन पर रोक लगाने का प्रावधान करती है, जबकि धारा 4 कुछ पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र की घोषणा करने और न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को सीमित करने से संबंधित है।
हिंदू और मुस्लिम संगठनों के रुख:
हिंदू संगठनों जैसे अखिल भारतीय संत समिति ने इस अधिनियम के प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाले मामलों में हस्तक्षेप करने की मांग की है। वहीं, मुस्लिम संगठन जैसे जमीयत उलेमा-ए-हिंद इस अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के पक्षधर हैं और वे मस्जिदों की वर्तमान स्थिति को बनाए रखने की मांग करते हैं। उनका कहना है कि कई मस्जिदों और धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद खड़ा किया जा रहा है, जिनके बारे में ऐतिहासिक तथ्य हैं कि वे पहले मंदिर थे और बाद में आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए गए थे।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता जैसे वकील अश्विनी उपाध्याय ने अधिनियम की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की है। उनका तर्क है कि यह प्रावधान किसी भी धार्मिक समूह को न्यायिक उपचार का अधिकार नहीं देते, विशेषकर उन स्थानों के संबंध में जहां धार्मिक चरित्र में परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है।
ज्ञानवापी मस्जिद समिति का रुख:
ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति ने अपनी हस्तक्षेप याचिका में इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध किया है। समिति का कहना है कि यह याचिकाएं शरारतपूर्ण उद्देश्य से दायर की जा रही हैं, जिनका मकसद इन धार्मिक स्थलों के खिलाफ मुकदमा चलाने की प्रक्रिया को बढ़ावा देना है।