

टाइगर यानी बाघ, सिर्फ जंगल में नहीं रहता। राजनीतिक-सामाजिक जीवन में भी कुछ लोगों को यह उपाधि दे दी जाती है। हां, तो इस बार ऐसा हुआ कि घने जंगल से निकला अपना टाइगर एक ऐसे सफारी में चला आया, जहां उससे बड़े-बड़े अनगिनत टाइगर रहते थे। कुछ दिन तो उसे एडजस्ट करने में लगा, लेकिन अभी तक एडजस्ट नहीं हो सका है। उसे अपने साथ-साथ अपने बच्चों की फिक्र भी सताने लगी, तो सफारी मालिकों से अनुमति लेकर कुनबे के साथ शहर में दहशत फैलाने की सोची। दहशत तो सचमुच फैला दिया, तभी उसे और उसके बच्चे को पिंजड़े में कैद कर दिया गया। संदेश साफ था कि या तो अपने घर में रहो, वरना दोबारा घने जंगल में लौट जाओ। अब देखना है कि शहर में खौफ फैलाने वाला यह टाइगर क्या निर्णय लेता है। वैसे इसका हिसाब तो सभी लगा रहे हैं।

Read Also- शहरनामा : जंगल में कौन मना रहा मंगल

घूस पर भी महंगाई का असर
महंगाई ऐसी चीज है कि कमबख्त गरीबों की थाली से निवाला तक छीन लेती है। इसकी वजह से हर क्रेता-विक्रेता त्राहिमाम करने लगता है। चीजें महंगी होने से खरीदने वाला अपना थैला छोटा कर लेता है, तो बेचने वाला भी कम ही सामान मंगाता है। इससे उसकी दाल-रोटी पर भी संकट आने लगता है। इसी बीच हैरान करने वाली बात तब सामने आई, जब पता चला कि घूस पर भी महंगाई का संकट मंडराने लगा है। चचाजान ने खुलासा करते हुए बताया कि थानेदारों ने रिश्वत या उत्कोच की राशि में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी है। यह जानकर हर कोई हैरान रह गया कि सचमुच ऐसा हुआ है। हम जिसे हराम की कमाई से जानते हैं, वह भी महंगाई की मार झेल रही है। हालांकि, इसे कोई साबित नहीं कर सकता, खुलासा करने वाले चचाजान भी नहीं। उन्होंने भी सरेंडर कर दिया।

Read Also- Jharkhand shaharanaama : शहरनामा : पाठशाला बनी अखाड़ा
पीएचडी की डिग्री चाहिए…
अब तक नेताओं और कुछ, सामाजिक हस्तियों को भांति-भांति की संस्थाएं तरह-तरह की उपाधि से अलंकृत करती थीं। यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा। यह एक-दूसरे को उपकृत करने का आजमाया हुआ नुस्खा है। अब इससे बढ़कर पीएचडी या डॉक्टरेट की डिग्री से सम्मानित करने का विषय चर्चा में है। पिछले दिनों एक पूर्व दिग्गज को एक शिक्षण संस्थान ने पीएचडी की डिग्री दे दी, तो विरोध शुरू हो गया। इस विरोध में जलन या ईर्ष्या की भावना कूट-कूट कर झलक रही थी, क्योंकि नेताजी का विरोध करने वाले वही थे, जिनके पास इस तरह की रेडीमेड डिग्री नहीं थी या वे चाहकर भी इसे नहीं ले सकते हैं। हालांकि, राजनीति में असंभव कुछ भी नहीं होता है। पूर्व में कुछ ऐसे लोगों को भी पीएचडी की डिग्री मिली है, जो न किसी को बताते हैं, न लिखते हैं।
Read Also- शहरनामा : जाम बिना चैन कहां
नाम बदलने का रिकॉर्ड
नाम में क्या रखा है, यह कहने की बात भर रह गई है। हाल के वर्षों में नाम बदलने की होड़ सी लग गई थी। पता नहीं चलता था कि कब किस शहर का नाम बदल जाए। कई रेलवे स्टेशनों के नाम भी बदल गए, जिससे कई ऐसे लोग अपने गंतव्य तक इसी वजह से समय पर नहीं पहुंच सके। जाहिर सी बात है कि जो बरसों बाद शहर लौटेगा तो अपने शहर को देखकर पहचान ही नहीं पाएगा, यह तय है। दस वर्ष में तो शहरों का पूरा हुलिया ही बदल जाता है, ऊपर से शहर का नाम भी बदल जाए, तो नीम-करैला जैसा मामला हो जाता है। हाल में एक क्लिनिक का नाम बदला गया तो हाय-तौबा मच गई। हंगामा मचाने वाले वही थे, जिन्होंने नाम बदलने का रिकॉर्ड बनाया है। उनका कहना है कि क्लिनिक का कांसेप्ट उनका था, उसे तो छोड़ देते।
Read Also- Jharkhand shaharnama : शहरनामा : हेलमेट-टोपी की रार
