रांची : झारखंड आंदोलन के प्रणेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन से झारखंड में शोक की लहर है। सोमवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 81 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। शिबू सोरेन का जीवन संघर्ष और दृढ़ता की मिसाल है। भले ही वे झारखंड के सबसे सम्मानित नेताओं में से एक बने, लेकिन उनका शुरुआती राजनीतिक सफर चुनौतियों से भरा रहा। उन्होंने अपने जीवन में कई चुनावी हार का सामना किया, लेकिन इन हारों ने ही उन्हें एक मजबूत नेता और ‘गुरुजी’ के रूप में स्थापित किया।
Shibu Soren Political Journey : मुखिया चुनाव में मिली थी पहली हार
शिबू सोरेन ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत बरलंगा पंचायत के मुखिया के रूप में की थी। हालांकि, यह उनकी पहली चुनावी हार साबित हुई। महाजनों की सूदखोरी और शोषण के खिलाफ उनका आंदोलन पूरे क्षेत्र में लोकप्रिय था, लेकिन चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। कहा जाता है कि महाजनों ने इस चुनाव में खूब छल-कपट किया, जिसके चलते वे मामूली अंतर से चुनाव हार गए। इस हार ने शिबू सोरेन के भीतर के क्रांतिकारी को और जगा दिया। उन्होंने महाजनों की ओर से हड़पी गई जमीन पर धान कटवाने का ‘धनकटनी आंदोलन’ शुरू किया और कटी हुई फसल को गरीबों में बांट दिया। यह घटना उनकी जन नेता की छवि को और मजबूत कर गई।
दो विधानसभा चुनावों में भी मिली थी शिकस्त
बरलंगा में मिली हार के बाद भी शिबू सोरेन ने हार नहीं मानी। उन्होंने 1972 में जरीडीह विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें जनसंघ के नेता छत्रु महतो के सामने हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में उनका साथ कोल्हान के आदिवासी नेता बागुन सुम्बरुई ने दिया था। शिबू सोरेन ने यह चुनाव झारखंड पार्टी के बैनर तले लड़ा था।
इसके बाद, उनकी तीसरी बड़ी हार 1977 में टुंडी से विधानसभा चुनाव में हुई। उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का निबंधन नहीं हुआ था, इसलिए उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा। इस चुनाव में उनका मुकाबला जनता पार्टी के सत्य नारायण दुदानी से था। इस हार का एक बड़ा कारण झामुमो के ही नेता शक्ति नाथ महतो का भी चुनाव लड़ना माना जाता है। दोनों नेताओं के वोट बैंक बंट गए, जिसका सीधा फायदा उनके प्रतिद्वंद्वी को मिला। इस हार ने शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी महतो के बीच कुछ दूरियां बढ़ा दी थीं। हालांकि, बाद में 1980 में बिनोद बिहारी महतो ने टुंडी से चुनाव जीतकर इस हार का बदला लिया और झामुमो के पहले विधायक बने।
Shibu Soren Political Journey : संथाल की ओर रुख और ‘गुरुजी’ का उदय
टुंडी में हार के बाद शिबू सोरेन का मन विचलित हो गया था। इसी समय एक घटना का जिक्र अक्सर होता है, जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी। कहा जाता है कि धनबाद में महाजनों ने बराकर नदी के पास उनकी घेराबंदी कर उन पर जानलेवा हमला करने की कोशिश की। अपनी जान बचाने के लिए उन्होंने अपनी बाइक सहित उफनती नदी में छलांग लगा दी। लोगों को लगा कि वे अब नहीं बचेंगे, लेकिन वे तैरकर नदी के पार संथाल की धरती पर पहुंच गए।
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