Ranchi (Jharkhand) : झारखंड आंदोलन के महानायक और पूर्व मुख्यमंत्री दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन के बाद रविवार को उनका श्राद्ध कर्म उनके पैतृक गांव नेमरा (रामगढ़) में पूरे पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुआ। 4 अगस्त को लंबी बीमारी के बाद शिबू सोरेन के निधन से पूरे राज्य में शोक की लहर दौड़ गई थी। आज इस अवसर पर अपने प्रिय नेता को श्रद्धांजलि देने और सम्मान प्रकट करने के लिए हजारों लोग नेमरा गांव पहुँचे।

सोरेन परिवार ने पूरी श्रद्धा के साथ निभाई रस्में
श्राद्ध कर्म के इस भावुक अवसर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने पूरे परिवार के साथ नेमरा पहुँचे। उन्होंने और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने पूरे विधि-विधान के साथ सभी रस्मों का पालन किया। गांव के बुजुर्गों और पंडितों की देखरेख में पिंडदान, तर्पण और अन्य महत्वपूर्ण कर्मकांड संपन्न किए गए। मुख्यमंत्री ने परिजनों और गांव के बुजुर्गों के साथ बैठकर श्राद्ध से जुड़ी पारंपरिक प्रक्रियाओं पर चर्चा की और सुनिश्चित किया कि सभी रस्में सही तरीके से निभाई जाएँ।

दिशोम गुरु की विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प
यह अवसर केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि यह दिशोम गुरु के संघर्षों, उनके योगदान और उनकी विरासत को याद करने का भी एक मौका था। गांव का माहौल अत्यंत भावुक और श्रद्धा से भरा हुआ था। बड़ी संख्या में ग्रामीण, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकर्ता और दूर-दराज से आए लोग अपने प्रिय नेता को श्रद्धांजलि देने पहुँचे थे।

कल्पना ने गांव की महिलाओं के साथ मिल कर निभाई सभी रस्में
इस दुख की घड़ी में विधायक कल्पना सोरेन ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पूरी सक्रियता के साथ झारखंड की पारंपरिक और आदिवासी रीति-रिवाजों में हिस्सा लिया। ग्रामीण महिलाओं के साथ मिलकर उन्होंने सभी कर्मकांडों को निभाया, जो गुरुजी के सम्मान और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के संकल्प का प्रतीक था। इस श्राद्ध कर्म के माध्यम से सोरेन परिवार ने न सिर्फ अपने पिता और नेता को अंतिम श्रद्धांजलि दी, बल्कि यह भी दर्शाया कि वे अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक जड़ों से गहराई से जुड़े हुए हैं। यह पूरा कार्यक्रम झारखंड की समृद्ध आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का प्रतिबिंब था।