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नारी प्रकृति है और नर पुरुष, दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है- वृजनंदन शास्त्री

by The Photon News Desk
shiv mahapuran
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जमशेदपुरमानगो एनएच 33 स्थित वसुन्धरा एस्टेट (नियर इरीगेशन कॉलोनी) में श्री शिव महापुराण (shiv mahapuran) कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ के प्रथम दिन मंगलवार को वृन्दावन से पधारे स्वामी वृजनंदन शास्त्री महाराज ने व्यास पीठ से शिव महापुराण, शोभायात्रा, महात्म वर्णन के प्रसंग का सुंदर व्याख्यान किया। कथा के दौरान प्रसंग के आधार पर कलाकारों ने जीवंत झांकी भी प्रस्तुत की। उन्होंने शिव कथा के विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि शिव को अर्द्धनारीश्वर भी कहा गया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव आधे पुरुष ही हैं या उनमें संपूर्णता नहीं। दरअसल, यह शिव ही हैं, जो आधे होते हुए भी पूरे हैं।

इस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष।

प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है। अर्धनारीश्वर शिव इसी पारस्परिकता के प्रतीक हैं। आधुनिक समय में स्त्री-पुरुष की बराबरी पर जो इतना जोर है, उसे शिव के इस स्वरूप में बखूबी देखा-समझा जा सकता है। यह बताता है कि शिव जब शक्ति युक्त होता है तभी समर्थ होता है। प्रदाेष व्रत के दाैरान करें भगवान शिव की आराधना: महाराज जी ने प्रदोष व्रत का वर्णन विस्तार से करते हुए आगे कहा कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना का काफी महत्व है।

(shiv mahapuran)

शास्त्रों में प्रदोष के व्रत की बड़ी महिमा बताई गई है। इस व्रत को श्रद्धापूर्वक विधि-विधान से जो भक्त करता है उसको जन्म-जन्मांतर के पापकर्मों से छुटकारा मिल जाता है। महीने में दो बार आने वाले प्रदोष व्रत भगवान भोलेनाथ को समर्पित है और इस दिन संध्याकाल में इनकी आराधना करने से शिव प्रसन्ना होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं। कल हाेगा काशी महात्म एवं रूद्राक्ष महिमा का प्रसंग पर कथा: महाराज जी दूसरे दिन बुधवार को काशी महात्म एवं रूद्राक्ष महिमा का प्रसंग सुनायेंगे।

आज के कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रमुख रूप से कृपाशंकर शर्मा, रामाशंकर शर्मा, गिरजाशंकर शर्मा, भाजयुमो के प्रदेश मीडिया प्रभारी कृष्णा शर्मा उर्फ काली शर्मा, संतोष शर्मा समेत सैकड़ों की संख्या में भक्तगण शामिल थे, जिसमें महिलाओं की संख्या अधिक थी।

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