मुजफ्फरपुर (बिहार) : बिहार के प्रसिद्ध लोक पर्व छठ पूजा की तैयारियां राज्यभर में बड़े धूमधाम से चल रही हैं, और इस बार मुजफ्फरपुर के शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा भी छठ पूजा के रंग में रंगा हुआ है। जेल में बंद कैदी भी इस महापर्व को श्रद्धा और आस्था के साथ मनाने की तैयारियों में जुटे हैं। इस साल केंद्रीय कारा में 47 महिला और 49 पुरुष कैदी छठ व्रत करेंगे, जिनमें से तीन मुस्लिम और एक सिख धर्म के बंदी भी इस पर्व का पालन करेंगे। यह दृश्य यह दिखाता है कि छठ पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भाईचारे और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।
जेल में छठ पूजा की तैयारी
केंद्रीय कारा में इस साल छठ पूजा की तैयारी बेहद खास और भव्य रूप से की गई है। जेल प्रशासन का दावा है कि इस बार की तैयारी पहले से कहीं ज्यादा बेहतर और व्यवस्थित है। इस बार जेल में छठ पूजा के लिए पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है, जो इस पर्व के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा को दर्शाता है। जेल के तालाब के किनारे रंगरोगन किया गया है और खूबसूरत लाइटों से सजाया गया है, ताकि माहौल भक्तिमय और उत्साहपूर्ण हो सके।
जेल अधीक्षक बृजेश सिंह मेहता ने बताया कि जेल में इस बार विशेष रूप से कैदियों को छठ व्रत के लिए हर जरूरी सामग्री मुहैया कराई जा रही है। नहाय-खाय से लेकर पूरे व्रत की प्रक्रिया तक सभी आवश्यक सामग्रियों की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है। इसके साथ ही, जेल प्रशासन यह सुनिश्चित कर रहा है कि कैदियों को घर जैसा अनुभव हो और उन्हें यह महसूस न हो कि वे जेल में हैं।
कैदियों की श्रद्धा और आस्था
मुजफ्फरपुर केंद्रीय कारा में इस साल तीन मुस्लिम कैदी भी छठ पूजा के व्रत में शामिल होंगे, जो इस पर्व की धार्मिक और सांप्रदायिक एकता को और मजबूत करता है। छठ पूजा का विशेष आकर्षण सूर्य देवता की पूजा और उन्हें अर्घ्य देना है, और यह पर्व भारतीय संस्कृति में एक गहरी आस्था और विश्वास का प्रतीक है। जेल में इस उत्सव के दौरान एक अनोखा दृश्य देखने को मिलता है, जिसमें विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग एक साथ इस पर्व को श्रद्धा भाव से मनाते हैं।
केंद्रीय कारा के तालाब के किनारे पर बत्तियां और लाइट्स लगाई गई हैं, ताकि एक धार्मिक और शांति से भरा वातावरण बन सके। इस पूजा के दौरान, बंदी न केवल अपने आस्था के प्रतीक सूर्य देवता की पूजा करते हैं, बल्कि यह उनके लिए एक मानसिक और आत्मिक शांति का समय होता है।
चार दिवसीय पर्व की शुरुआत
छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जो मंगलवार को शुरू हो चुका है। नहाय-खाय के दिन व्रती अपनी शुद्धता और पवित्रता का पालन करते हुए सरल और सात्विक भोजन करते हैं। इस दिन का उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध करना होता है, ताकि अगले दिनों की पूजा में सही आस्था के साथ भाग लिया जा सके। बुधवार को खरना होगा, जिसमें व्रती दिनभर उपवास रखते हुए रात में खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
गुरुवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा, और शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस पर्व का समापन होगा। इस दौरान जेल के अंदर और बाहर सभी कैदी व्रत की प्रक्रिया का पालन करेंगे और अपने जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति के लिए सूर्य देवता से आशीर्वाद मांगेंगे।
छठ पूजा का सामाजिक और सांप्रदायिक संदेश
मुजफ्फरपुर के केंद्रीय कारा में छठ पूजा का आयोजन यह संदेश देता है कि यह पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह समाज के सभी वर्गों को जोड़ने का एक अद्भुत उदाहरण भी है। छठ पूजा के दौरान, यह देखा जाता है कि सभी धर्मों के लोग एक साथ मिलकर सूर्य देवता की पूजा करते हैं और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज में सौहार्द और भाईचारे का भी प्रतीक है।
जेल में भी इस पर्व को लेकर एकता और धार्मिक समरसता की भावना साफ़ देखने को मिलती है। मुस्लिम और सिख धर्म के बंदी भी इस महापर्व को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाने के लिए जुटे हैं, जो यह सिद्ध करता है कि छठ पूजा सिर्फ एक हिंदू पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज की विविधता और एकता का प्रतीक है।
मुजफ्फरपुर के शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में छठ पूजा के आयोजन से यह स्पष्ट होता है कि छठ पर्व न केवल आम लोगों में, बल्कि विशेष परिस्थितियों में रहने वाले कैदियों में भी गहरी आस्था और विश्वास का प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से कैदियों को एक मानसिक और आत्मिक शांति मिलती है, और यह उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का एक अवसर भी है। जेल प्रशासन द्वारा की गई सारी तैयारी यह सुनिश्चित करती है कि इस पर्व का आनंद और आस्था हर बंदी तक पहुंच सके, और वे भी इस महापर्व में शामिल होकर श्रद्धा के साथ पूजा कर सकें।
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