सेंट्रल डेस्क: लेखिका और समाज सेविका सुधा मूर्ति ने हाल ही में 70 घंटे के कार्य सप्ताह पर चल रहे बहस पर अपनी राय व्यक्त की। इस बहस को इंफोसिस के को-फाउंडर और उनके पति, नारायण मूर्ति के इस सुझाव ने जन्म दिया था कि युवाओं को अधिक वर्किंग ऑवर पर विचार करने चाहिए।
न्यूनतम धन से ऊंचाई तक पहुंची इंफोसिस
सुधा मूर्ति ने एक साक्षात्कार में कहा कि जब लोग अपने काम के प्रति जुनूनी होते हैं, तो समय की कभी कोई सीमा नहीं होती। उन्होंने आगे बताया कि अपने करियर के शुरुआत में उनके पति ने 70 घंटे से अधिक काम किया, यही कारण था कि इंफोसिस को न्यूनतम धन के साथ ऊंचाई पर पहुंचाने का सपना संभव हो पाया।
कठिन मेहनत, किस्मत, सही समय है जरूरी फैक्टर
सुधा मूर्ति ने कहा, “इंफोसिस को इतना बड़ा बनाने के लिए कोई जादुई छड़ी नहीं थी। यह पूरी तरह से कठिन मेहनत, किस्मत, सही समय और सही जगह पर होने का परिणाम था।” इन वर्षों में किए गए व्यक्तिगत बलिदानों पर चर्चा करते हुए सुधा मूर्ति ने यह भी बताया कि उन्होंने पारिवारिक जीवन और अपने पति के कठिन करियर के बीच संतुलन कैसे बनाया।
लंबे समय तक काम करते हैं कई पेशेवर
सुधा मूर्ति ने कहा, “मैंने वह निर्णय लिया और यह भी तय किया कि यह कोई मायने नहीं रखता कि मैं हमेशा यह शिकायत करूंगी कि तुम नहीं हो, क्योंकि वह एक बड़ा काम कर रहे हैं।”
मिसेज मूर्ति ने यह भी माना कि काम के प्रति इस स्तर की प्रतिबद्धता केवल उनके पति तक सीमित नहीं है, बल्कि डॉक्टरों और पत्रकारों जैसे अन्य पेशेवर भी अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इसी तरह लंबे घंटे तक काम करते हैं।
इंटरव्यू के दौरान सुधा मूर्ति ने बताया कि मैंने सीखा कि मुझे अपनी राह खुद बनानी है और यह नहीं सोचना कि मेरे पास समय नहीं है या तुम्हारे पास समय नहीं है और इसका आनंद लेना। मैं लिखती थी, लेकिन फिर मैंने थोड़ा और लिखना शुरू किया।
सभी के लिए ईश्वर ने दिए 24 घंटे
समय की प्रकृति पर विचार करते हुए सुधा मुर्ति ने निष्कर्ष निकाला, ईश्वर ने सभी को 24 घंटे दिए हैं, चाहे आप ‘अमीर हो या गरीब, सुंदर हो या कुरूप।’ यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसे कैसे व्यतीत करना चाहते हैं और अगर आप अपने काम के प्रति जुनूनी हैं, तो आपके साथी को इसका समर्थन करना चाहिए।
काम के घंटे को लेकर ऐसे शुरू हुआ विवाद
2023 में एक पॉडकास्ट के दौरान इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने कहा था कि देश की कार्य उत्पादकता “दुनिया में सबसे कम” है। उन्होंने जर्मन और जापानियों के उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि युवाओं को “70 घंटे प्रति सप्ताह” काम करने पर विचार करना चाहिए, उनके इस बयान ने वर्क लाइफ बैलेंस पर व्यापक बहस छेड़ दी थी।