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हाथियों के मौत के जिम्मेदार लोगों को चिन्हित कर आईपीसी की धारा के तहत हो करवाई: सरयू राय

by Rakesh Pandey
हाथियों के मौत के जिम्मेदार लोगों को चिन्हित कर आईपीसी की धारा के तहत हो करवाई
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जमशेदपुर: घाटशीला के ऊपर बांधा जंगल में 21 नवबंर को 5 हाथियों की मौत बिजली का करंट लगने से हो गयी थी। इस मामले में शनिवार को जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय घटनास्थल पर पहुंचकर स्थानीय नागरिकों, स्वयंसेवियों व एचसीएल के अधिकारियों से बात किया। उसके पूर्व उन्होंने झारखंड के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डेन (मुख्य प्रतिपालक वन्यजीव) व भारत सरकार के पूर्व महानिदेशक वन्यजीव एवं कतिपय वन्यजीव विशेषज्ञों से भी दूरभाष पर बात किया।

इस दौरान विधायक सरयू राय ने कहा कि घटना स्थल को देखने तथा स्थानीय नागरिकों एवं राष्ट्रीय ख्याती के वन्यजीव विशेषज्ञों से वार्ता करने के उपरांत इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि झारखंड में वन विभाग का सिस्टम पूरी तरह से फेल है। सब कुछ भगवान भरोसे चल रहा है। विधायक सरयू राय ने कहा कि घाटशीला में करंट लगने से पाँच हाथियों की मौत कुछ दिन पहले इसी क्षेत्र में दो हाथियों की मौत, कल गिरीडीह में एक हाथी का मरना ऐसी घटनाएं हैं जिसके लिए दोषियों को चिन्हित कर उनके विरूद्ध आईपीसी की सुसंगत धराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर कारवाई होनी चाहिए।

सरयू राय में इन बिंदुओं पर भी उठाई आपत्ति

1. वनों की रक्षा के साथ साथ वन्य जीवों की रक्षा करने, उनका अभिवर्द्धन करने के लिए भारत सरकार और झारखंड सरकार तथा विभिन्न राज्यों के द्वारा कई कानून बनाये गये हैं। उन कानूनों पर स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि प्रासंगिक संदर्भ में किसमें क्या करना है। ऊपर बाँध जंगल के उस स्थान पर जहाँ हाथियों की मौत हुई है जाने पर ऐसा लगा कि नियम कानून केवल कागजों तक सिमटे हैं इनका क्रियान्वयन शुन्य है। उदाहरण के लिए वन जीवों के स्थल एवं भ्रमण क्षेत्र में बिजली के तारों की ऊँचाई सतह से 9 मीटर से अधिक होनी चाहिए परंतु घटना स्थल पर वैसा नहीं दिखा। एक तो तार काफी नीचे है दूसरे पौधा रक्षण के लिए खाई खोदकर ऊपर मिट्टी का टीला बना दिया गया है, जिससे सतह से तार की ऊँचाई कम हो गयी है। यह टीला कई कई वर्ष पहले बना है। इस और वन विभाग के अधिकारियों और कर्मियों का ध्यान नहीं गया जो हादसा का मुख्य कारण है।

हाथियों के मौत के जिम्मेदार लोगों को चिन्हित कर आईपीसी की धारा के तहत हो करवाई

2. वन विभाग और बिजली विभाग के हादसा का दोष एक दूसरे पर मढ़ रहे हैं और बचकाना बयान दे रहे हैं। झारखंड सरकार ने हाथियों के भ्रमण का पर्यवेक्षण सिस्टम 7-8 साल पहले विकसित हुआ है। वन विभाग को बताना चाहिए कि इस सिस्टम में समय समय पर कितनी जानकारियाँ डाली गयी हैं और कितने निर्देश दिए गए हैं, और क्या क्या कारवाई की गयी है?

3. राज्य के मुख्यमंत्री, राज्य वनजीव बोर्ड के अध्यक्ष होते हैं। वन संरक्षण अधिनियम की कंडिका 8 के अनुसार वन्यजीव बोर्ड को वन्यजीवों पर संरक्षण के बारे में राज्य सरकार को सलाह देने का दायित्व है। इस बोर्ड ने विगत 10 वर्षों में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए क्या क्या सलाह दिया है, यह बात सामने आनी चाहिए। मेरी जानकारी के मुताबिक वन्यजीव बोर्ड की भूमिका वन क्षेत्रों में क्रियान्वयन और निर्माण की योजनाओं की स्वीकृति देने तक हो गयी है, इसका नतीजा है कि टूटोरियल फोरेस्ट क्षेत्रों और रिजर्व फोरेस्ट दोनों में ही वन जीव के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।

4. कुछ वर्ष पहले बंगाल सरकार ने अपनी सीमा पर गहरी खाई खोद दिया है, जिससे हाथियों के बंगाल क्षेत्र में भ्रमण बाधित हो गया है। हवा, पानी, पंक्षी, जानवर इन सबों के बारे में किसी राज्य या देश की सीमा नहीं होती है। राज्य सरकार को बताना चाहिए कि बंगाल सरकार द्वारा हाथियों के भ्रमण में बाधा उत्पन्न करने का कितना विरोध झारखंड सरकार ने किया है। भारत सरकार के प्रोजेक्ट एलीफेंट में किनी शिकायतें दर्ज करवायाी गयी है और इसका क्या फलाफल निकला है?

5. वन विभाग के एक जिम्मेदार पदाधिकारी का ब्यान है कि वे अंडा का खोल में मिर्चा डालकर और इसे जलाकर हाथियों का इस क्षेत्र से बाहर कर रहे हैं। विडंबना है कि एक डीएफओ के क्षेत्र से दूसरे डीएफओ के क्षेत्र में भगाना ही हाथियों का समस्या का समाधान मान लेगा तो हाथियों के प्राकृतिक स्थल और भ्रमण करने से हाथियों की स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी। यह समस्या का कतई समाधान नहीं है। भारत सरकार के एडीजी फाॅरेस्ट (वन्यजीव), प्रोजेक्ट एलीफैंट के सामने इस हादसे का झारखंड सरकार के वन विभाग ने कोई प्रतिवेदन भेजा है तो भारत सरकार की संस्था को इसकी जाँच करनी चाहिए और इसके लिए एक सक्षम दल का जीवों के संरक्षण की जाँच करने के लिए भेजे।

6. चूँकि बिजली की लाइन एचसीएल के लिए बनाई गयी है और यह 1980 में वनसंरक्षण अधिनियम बनने के बाद बनाये गये हैं, इसलिए इसपर अधिनियम के प्रावधान लागु नहीं होते हैं परंतु इस संदर्भ में सेन्ट्रल आॅथोरिटी का निर्देश नहीं होना इस हादसा का मुख्य कारण है। इसका समाधान केवल दो ही है, एक वन क्षेत्रों में बिजली के तारों को भूमिगत करना और दूसरा कि ऐसे बिजली के तारों को केबलिंग करना और खंबों पर इंसुलेटर तार लगाना। इसपर होने वाले भारी खर्च की व्यवस्था वन्य जीवों के संरक्षण के हित में झारखंड सरकार और भारत सरकार मिलकर करे।

7. झारखंड सरकार का मुख्य उद्देश्य भारत सरकार प्रोजेक्ट एलीफैंट के सामने अधिक से अधिक कार्य योजना प्रस्तुत कर अधिक से अधिक फंड लेने में है। भारत सरकार का प्रोजेक्ट एलीफैंट के पास वैधानिक अधिकार नहीं है इसलिए इसबारे में वन संरक्षण अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अनुरूप कानूनी कारवाई की जानी चाहिए।

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