नई दिल्ली : भारत के इतिहास में ऐसे कई प्रधानमंत्री हुए हैं, जिनका अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं हुआ। इनमें से एक कांग्रेस से जुड़े नेता भी शामिल हैं। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर उठे राजनीतिक विवाद ने इस प्रश्न को फिर से चर्चा में ला दिया है कि आखिर क्यों कुछ प्रधानमंत्रियों का अंतिम संस्कार दिल्ली से बाहर हुआ और उनके स्मारक राजधानी में क्यों नहीं बने।
नरसिम्हा राव: हैदराबाद में अंतिम विदाई
पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, जिन्होंने 1991 से 1996 तक देश का नेतृत्व किया, उनका निधन दिसंबर 2004 में हुआ। उनके परिवार की इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में हो, लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इसे हैदराबाद में कराने का निर्णय लिया। आंध्र प्रदेश के कद्दावर नेता वाईएस रेड्डी की पहल पर राव का अंतिम संस्कार हैदराबाद में हुआ। हालांकि, दिल्ली में उनके स्मारक की बात की गई थी, जो अब तक अधूरी है।
वीपी सिंह: इलाहाबाद में संगम के पास अंतिम संस्कार
1989-1990 तक प्रधानमंत्री रहे वीपी सिंह का निधन 2008 में हुआ। उनके परिवार ने दिल्ली में अंतिम संस्कार की इच्छा जताई, लेकिन उन्हें इलाहाबाद ले जाकर संगम के पास उनका अंतिम संस्कार किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मंत्री सुबोधकांत सहाय ने इस आयोजन में भाग लिया। वीपी सिंह के लिए भी दिल्ली में स्मारक बनाने की चर्चा हुई थी, लेकिन वह साकार नहीं हो सका। 2023 में तमिलनाडु सरकार ने उनके सम्मान में एक भव्य प्रतिमा स्थापित की।
मोरारजी देसाई: साबरमती नदी के तट पर विदाई
मोरारजी देसाई, जो 1977 से 1979 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे, उनका निधन 1995 में हुआ। उनके परिवार की इच्छा के अनुरूप उनका अंतिम संस्कार साबरमती नदी के किनारे किया गया। उस समय के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने इस अंतिम संस्कार में शिरकत की। मोरारजी देसाई के स्मारक की चर्चा भी हुई, लेकिन दिल्ली में इसे स्थापित नहीं किया गया।
दिल्ली में अंतिम संस्कार वाले प्रधानमंत्री
दिल्ली में जिन प्रधानमंत्रियों का अंतिम संस्कार हुआ, उनमें जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, चौधरी चरण सिंह और आईके गुजराल शामिल हैं। इन सभी नेताओं के योगदान को सम्मानित करने के लिए दिल्ली में उनके स्मारक स्थल बनाए गए। इसके अलावा, संजय गांधी का अंतिम संस्कार भी दिल्ली के राजघाट पर हुआ था।
राजनीतिक और पारिवारिक निर्णयों का प्रभाव
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्रियों के अंतिम संस्कार और उनके स्मारकों पर राजनीतिक और पारिवारिक इच्छाओं का गहरा प्रभाव रहा है। हालांकि, दिल्ली में स्मारक बनाना उनके योगदान का प्रतीक माना गया, लेकिन कुछ नेताओं को यह सम्मान नहीं मिल पाया।