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ट्रांसजेन्डर रेशमा बनी पटना विश्वविद्यालय सीनेट सदस्य, देश में पहली बार ट्रांसजेंडर मनोनीत

by Rakesh Pandey
ट्रांसजेन्डर रेशमा बनी पटना विश्वविद्यालय सीनेट सदस्य
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बिहार स्पेशल। ट्रांसजेंडर के लिए बिहार में रोल मॉडल रहीं रेशमा प्रसाद ने एक और इतिहास रच दिया है। बिहार के राज्यपाल सह कुलाधिपति राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय के तहत पटना विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य के रूप में ट्रांसजेन्डर रेशमा प्रसाद का मनोनयन किया है। इस मनोनयन के साथ ही राजभवन ने ट्रांसजेन्डर समुदाय की उच्च शिक्षा में भागीदारी को एक नई दिशा दी है। हालांकि, सीनेट सदस्य के रूप में रेशमा का मनोनयन तीन वर्षों के लिए किया गया है।

ट्रांसजेन्डरों के लिए उच्च शिक्षा में सकारात्मक कदम
राजभवन के अनुसार, रेशमा को सीनेट सदस्य बनाए जाने का मकसद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ट्रांसजेन्डर समुदाय की समस्याओं और चुनौतियों का निराकरण करना है। ट्रांसजेन्डरों को उच्च शिक्षा में सकारात्मक रूप से शामिल करने का एक कदम भी माना जा रहा है। राजभवन की इस पहल से सामाजिक और शैक्षिक समानता के मामले में एक नई ऊर्जा मिलेगी।

पहले भी अपनी उपयोगिता साबित कर चुकी हैं रेशमा
रेशमा ने राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर अनेक कार्यों में अपनी भूमिका से साबित किया है कि वह ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए प्रयासरत हैं। उनके द्वारा की जाने वाली अब तक की प्रमुख कई पहलुओं में राजभवन ने भी समर्थन दिया है।

जातीय आधारिण जनगणना को लेकर आई थी चर्चा में
बता दें की रेशमा प्रसाद नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन की सदस्य है। रेशमा ने हाल ही में बिहार में जातीय आधारित गणना के सर्वे रिपोर्ट में ट्रांसजेन्डरों की संख्या को लेकर आपत्ति जताई थी। उनके अनुसार, रिपोर्ट में दी गई संख्या जिसमें ट्रांसजेन्डर समुदाय की कुल संख्या 825 बताई गई, उसे लेकर उन्होंने आपत्ति दर्ज की थी। उनका मानना था कि 2011 में बिहार में ट्रांसजेन्डर की संख्या 42000 थी, जिसके बावजूद संघर्ष के बाद भी समुदाय को अपने हक की पहचान नहीं मिली थी।

ट्रांसजेन्डर का सीनेट सदस्य बनना मील का पत्थर
रेशमा, जो ट्रांसजेन्डर समुदाय के लिए कार्य करते आ रही हैं, आज पटना विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य बनकर एक नए मील का पत्थर साबित हुईं हैं। उनके साथ पूरे होने वाले सीनेट की कड़ी मेहनत और समर्थन से ट्रांसजेन्डर समुदाय को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पहले बार मान्यता प्राप्त हुई है।

रेस्टोरेंट खोलने के लिए पांच साल किया संघर्ष
गौरतलब है कि साल 2018 में शुरू हुए इस संघर्ष के सफर में, रेशमा ने पहले ही सोचा था कि उन्हें एक ऐसा स्थान बनाना है जहां ट्रांसजेन्डर समुदाय के लोगों को अच्छी शिक्षा के अधिकार मिले। इस उद्देश्य के साथ उन्होंने रेस्टोरेंट की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने पांच साल के संघर्ष के बाद सफलता प्राप्त की हैं। इस रेस्टोरेंट को खोलने के बारे में रेशमा कहती हैं कि इसका खुलना इतना आसान नहीं था, परंतु हमारी मेहनत और समर्थन ने हमें इस मुकाम तक पहुंचाया है।

 

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