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उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का न्यायपालिका पर तीखा हमलाअनुच्छेद 142 को बताया ’24×7 न्यूक्लियर मिसाइल’

by Neha Verma
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नई दिल्ली: उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में न्यायपालिका पर तीखा प्रहार करते हुए सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के प्रयोग पर गहरी आपत्ति जताई है। उन्होंने इस संवैधानिक प्रावधान को लोकतांत्रिक शक्तियों के लिए “24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल” करार दिया है और चेतावनी दी कि यह देश के लोकतांत्रिक ढांचे को खतरे में डाल सकता है।

अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं: उप राष्ट्रपति

धनखड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को आदेश देना संविधान के विपरीत है। उनका कहना था कि न्यायपालिका को अपनी सीमाएं नहीं लांघनी चाहिए और देश के संविधानिक पदों की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। उन्होंने दो टूक कहा, ‘अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं।’

अनुच्छेद 142 पर उठाए गंभीर सवाल

संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को यह विशेष अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी मामले में ‘पूर्ण न्याय’ के लिए कोई भी आदेश पारित कर सकता है। लेकिन उप राष्ट्रपति ने इस अधिकार के दुरुपयोग की आशंका जताते हुए कहा, ‘अब यह अनुच्छेद एक ऐसी न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है, जो 24 घंटे, सातों दिन सक्रिय रहती है।’

उन्होंने सवाल उठाया कि अगर इस तरह की शक्तियों का निर्बाध और मनमाना प्रयोग होता रहा तो लोकतंत्र के तीन स्तंभों में संतुलन कैसे बना रहेगा।

लोकतंत्र में संतुलन जरूरी: धनखड़

धनखड़ ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — तीनों की अपनी-अपनी सीमाएं हैं और सभी को उन्हीं के भीतर रहकर कार्य करना चाहिए। उनका कहना था कि ‘सुप्रीम कोर्ट की शक्ति सर्वोच्च हो सकती है, लेकिन वह असीमित नहीं हो सकती।’

पहले भी दे चुके हैं न्यायपालिका पर बयान

यह पहली बार नहीं है जब उप राष्ट्रपति ने न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल उठाए हों। इससे पहले भी उन्होंने कई बार न्यायिक अतिक्रमण (Judicial Overreach) और संसदीय सर्वोच्चता (Parliamentary Supremacy) की बात उठाई है। उनके बयानों को कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच तनावपूर्ण संबंधों के रूप में देखा जा रहा है।

राजनीतिक और संवैधानिक हलकों में हलचल

उप राष्ट्रपति के इस बयान के बाद कानूनी और राजनीतिक जगत में हलचल मच गई है। कुछ विशेषज्ञों ने इसे लोकतंत्र के संतुलन की ओर एक जरूरी इशारा बताया, तो कुछ ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप के रूप में देखा है। आने वाले दिनों में इस विषय पर और बहस होना तय है।

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