सेंट्रल डेस्क : यह एक क्षेत्रीय बहुपक्षीय संगठन है तथा बंगाल की खाड़ी के तटवर्ती और समीपवर्ती क्षेत्रों में स्थित इसके सदस्य हैं जो क्षेत्रीय एकता का प्रतीक हैं।
क्या करता है बिमस्टेक
बिम्सटेक दक्षिण और दक्षिण पूर्व-एशिया के बीच संपर्क बनाता है , बल्कि हिमालय तथा बंगाल की खाड़ी की परिस्थितिकी को भी जोड़ता है। इसके मुख्य उद्देश्य तीव्र आर्थिक विकास हेतु वातावरण तैयार करना, सामाजिक प्रगति में तेज़ी लाना और क्षेत्र में सामान्य हित के मामलों पर सहयोग को बढ़ावा देना है।
कब हुआ था स्थापित (BIMSTEC)
साल 1997 में बिमस्टेक को अपनी पहचान मिली थी। यह उप-क्षेत्रीय संगठन वर्ष 1997 में बैंकॉक घोषणा के माध्यम से अस्तित्व में आया।
महज चार सदस्यों से हुई थी शुरुवात
प्रारंभ में इसका गठन चार सदस्य राष्ट्रों के साथ किया गया था जिनका संक्षिप्त नाम ‘BIST-EC’ बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड आर्थिक सहयोग था। वर्ष 1997 में म्याँमार के शामिल होने के बाद इसका नाम बदलकर ‘BIMST-EC’ कर दिया गया।
इस तरह मिला नाम
वर्ष 2004 में नेपाल और भूटान के इसमें शामिल होने के बाद संगठन का नाम बदलकर बे ऑफ़ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन कर दिया गया।
क्या है उद्देश्य
क्षेत्र में तीव्र आर्थिक विकास हेतु वातावरण तैयार करना। सहयोग और समानता की भावना विकसित करना। सदस्य राष्ट्रों के साझा हितों के क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग और पारस्परिक सहायता को बढ़ावा देना। शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में एक-दूसरे पूर्ण सहयोग।
यह संगठन दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के मध्य एक सेतु की भाँति कार्य करता है तथा इन देशों के सुदृढ़ आपसी संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है। बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में हिंद-प्रशांत विचार का केंद्र बनने की क्षमता है, एक ऐसा स्थान जहाँ पूर्व और दक्षिण एशिया की प्रमुख शक्तियों के रणनीतिक हित प्रतिच्छेद करते हैं।
बिम्सटेक के समक्ष चुनौतियां
सार्क की तरह ही बिम्सटेक भी द्विपक्षीय तनावों से बच नहीं पाया है बैठकों में निरंतरता का अभाव: बिम्सटेक ने प्रति दो वर्षों में शिखर सम्मेलन, प्रतिवर्ष मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित करने की योजना बनाई थी, लेकिन वर्ष 2018 तक 20 वर्षों में केवल चार शिखर सम्मेलन हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि भारत ने बिम्सटेक का उपयोग सिर्फ तब किया है जब वह क्षेत्रीय व्यवस्था बनाने में सार्क के माध्यम से सफल नहीं हुआ है, वहीं अन्य प्रमुख सदस्य जैसे- थाईलैंड तथा म्याँमार बिम्सटेक की तुलना में आसियान पर अधिक केंद्रित हैं।
व्यापक हैं कार्यक्षेत्र
बिम्सटेक का कार्य क्षेत्र बहुत व्यापक है- इसमें पर्यटन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि आदि जैसे 14 क्षेत्र शामिल हैं। बिम्सटेक को कम क्षेत्रों हेतु प्रतिबद्ध होना चाहिये तथा उन्हीं में कुशलतापूर्वक सहयोग करना चाहिये। बांग्लादेश सबसे विकट शरणार्थी संकट का सामना कर रहा है, म्याँमार के रखाइन प्रांत से रोहिंग्या लगातार पलायन करते रहे हैं। म्याँमार एवं थाईलैंड के मध्य सीमा विवाद चल रहा है।
मुक्त व्यापार समझौते का अभाव बिम्सटेक में मुक्त व्यापार समझौते पर वर्ष 2004 में चर्चा की गई थी, लेकिन अभी तक उसका कोई निष्कर्ष नहीं निकाला गया है।
निम्न सिद्धांतो पर करता है कार्य
किसी भी संगठन के लिए महत्वपूर्ण होता है, विशेष नियमों व सिद्धांतो पर अमल करना, जिससे उसके लक्ष्य को पाने में सही दिशा में कार्य किया जा सके। इसे के तहत बिमस्टेक भी कुछ सिद्धांतो के अनुसार करता हैं: समान संप्रभुता,क्षेत्रीय अखंडता,राजनीतिक स्वतंत्रता,आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना,शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, पारस्परिक लाभ, सदस्य देशों के मध्य अन्य द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहयोग को प्रतिस्थापित करने के बजाय अन्य विकल्प प्रदान करना
भारत के लिये बिम्सटेक का महत्त्व
भारत को तीन प्रमुख नीतियों के साथ आगे बढ़ने का अवसर देता है
नेबरहुड फर्स्ट: देश की सीमा के नज़दीकी क्षेत्रों को प्रधानता।
एक्ट ईस्ट: भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ता है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का आर्थिक विकास: पूर्वोत्तर राज्यों को बांग्लादेश और म्याँमार के माध्यम से बंगाल की खाड़ी क्षेत्र से जोड़ना।
बंगाल की खाड़ी के आसपास के देशों में चीन के बेल्ट एवं रोड इनिशिएटिव के विस्तारवादी प्रभावों से भारत को मुकाबला करने का अवसर प्रदान करता है।
भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों के कारण दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क-SAARC) महत्त्वहीन हो जाने के कारण भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ जुड़ने हेतु एक नया मंच प्रदान करता है।
सेंट्रल डेस्क। यह एक क्षेत्रीय बहुपक्षीय संगठन है तथा बंगाल की खाड़ी के तटवर्ती और समीपवर्ती क्षेत्रों में स्थित इसके सदस्य हैं जो क्षेत्रीय एकता का प्रतीक हैं।
क्या करता है बिमस्टेक
बिम्सटेक दक्षिण और दक्षिण पूर्व-एशिया के बीच संपर्क बनाता है , बल्कि हिमालय तथा बंगाल की खाड़ी की परिस्थितिकी को भी जोड़ता है। इसके मुख्य उद्देश्य तीव्र आर्थिक विकास हेतु वातावरण तैयार करना, सामाजिक प्रगति में तेज़ी लाना और क्षेत्र में सामान्य हित के मामलों पर सहयोग को बढ़ावा देना है।
कब हुआ था स्थापित (BIMSTEC)
साल 1997 में बिमस्टेक को अपनी पहचान मिली थी। यह उप-क्षेत्रीय संगठन वर्ष 1997 में बैंकॉक घोषणा के माध्यम से अस्तित्व में आया।
महज चार सदस्यों से हुई थी शुरुवात
प्रारंभ में इसका गठन चार सदस्य राष्ट्रों के साथ किया गया था जिनका संक्षिप्त नाम ‘BIST-EC’ बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड आर्थिक सहयोग था। वर्ष 1997 में म्याँमार के शामिल होने के बाद इसका नाम बदलकर ‘BIMST-EC’ कर दिया गया।
इस तरह मिला नाम
वर्ष 2004 में नेपाल और भूटान के इसमें शामिल होने के बाद संगठन का नाम बदलकर बे ऑफ़ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन कर दिया गया।
क्या है उद्देश्य
क्षेत्र में तीव्र आर्थिक विकास हेतु वातावरण तैयार करना। सहयोग और समानता की भावना विकसित करना। सदस्य राष्ट्रों के साझा हितों के क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग और पारस्परिक सहायता को बढ़ावा देना। शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में एक-दूसरे पूर्ण सहयोग।
यह संगठन दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के मध्य एक सेतु की भाँति कार्य करता है तथा इन देशों के सुदृढ़ आपसी संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है। बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में हिंद-प्रशांत विचार का केंद्र बनने की क्षमता है, एक ऐसा स्थान जहाँ पूर्व और दक्षिण एशिया की प्रमुख शक्तियों के रणनीतिक हित प्रतिच्छेद करते हैं।
बिम्सटेक के समक्ष चुनौतियां
सार्क की तरह ही बिम्सटेक भी द्विपक्षीय तनावों से बच नहीं पाया है
बैठकों में निरंतरता का अभाव: बिम्सटेक ने प्रति दो वर्षों में शिखर सम्मेलन, प्रतिवर्ष मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित करने की योजना बनाई थी, लेकिन वर्ष 2018 तक 20 वर्षों में केवल चार शिखर सम्मेलन हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि भारत ने बिम्सटेक का उपयोग सिर्फ तब किया है जब वह क्षेत्रीय व्यवस्था बनाने में सार्क के माध्यम से सफल नहीं हुआ है, वहीं अन्य प्रमुख सदस्य जैसे- थाईलैंड तथा म्याँमार बिम्सटेक की तुलना में आसियान पर अधिक केंद्रित हैं।
व्यापक हैं कार्यक्षेत्र
बिम्सटेक का कार्य क्षेत्र बहुत व्यापक है- इसमें पर्यटन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि आदि जैसे 14 क्षेत्र शामिल हैं। बिम्सटेक को कम क्षेत्रों हेतु प्रतिबद्ध होना चाहिये तथा उन्हीं में कुशलतापूर्वक सहयोग करना चाहिये। बांग्लादेश सबसे विकट शरणार्थी संकट का सामना कर रहा है, म्याँमार के रखाइन प्रांत से रोहिंग्या लगातार पलायन करते रहे हैं। म्याँमार एवं थाईलैंड के मध्य सीमा विवाद चल रहा है।
मुक्त व्यापार समझौते का अभाव बिम्सटेक में मुक्त व्यापार समझौते पर वर्ष 2004 में चर्चा की गई थी, लेकिन अभी तक उसका कोई निष्कर्ष नहीं निकाला गया है।
निम्न सिद्धांतो पर करता है कार्य
किसी भी संगठन के लिए महत्वपूर्ण होता है, विशेष नियमों व सिद्धांतो पर अमल करना, जिससे उसके लक्ष्य को पाने में सही दिशा में कार्य किया जा सके। इसे के तहत बिमस्टेक भी कुछ सिद्धांतो के अनुसार करता हैं: समान संप्रभुता,क्षेत्रीय अखंडता,राजनीतिक स्वतंत्रता,आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना,शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, पारस्परिक लाभ, सदस्य देशों के मध्य अन्य द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहयोग को प्रतिस्थापित करने के बजाय अन्य विकल्प प्रदान करना
भारत के लिये बिम्सटेक का महत्त्व
भारत को तीन प्रमुख नीतियों के साथ आगे बढ़ने का अवसर देता है
नेबरहुड फर्स्ट: देश की सीमा के नज़दीकी क्षेत्रों को प्रधानता।
एक्ट ईस्ट: भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ता है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का आर्थिक विकास: पूर्वोत्तर राज्यों को बांग्लादेश और म्याँमार के माध्यम से बंगाल की खाड़ी क्षेत्र से जोड़ना।
बंगाल की खाड़ी के आसपास के देशों में चीन के बेल्ट एवं रोड इनिशिएटिव के विस्तारवादी प्रभावों से भारत को मुकाबला करने का अवसर प्रदान करता है।
भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों के कारण दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क-SAARC) महत्त्वहीन हो जाने के कारण भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ जुड़ने हेतु एक नया मंच प्रदान करता है।
READ ALSO : छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव : आप ने 12 उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की

