स्पेशल डेस्क। मां दुर्गा के पवन पर्व की शुरुआत हो चुकी है और पंडालों में दर्शाए महिषासुर के वध की प्रतिमा देख कर सभी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। आपको बता दें कि इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत रविवार 15 अक्टूबर 2023 से हुई है और यह महा पर्व 23 अक्टूबर तक चलेगा। इस साल मां दुर्गा का वाहन हाथी है। शारदीय नवरात्र (Sharadiya Navaratri) एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है जो दुनियाभर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान देवी दुर्गा की पूजा और भगवान राम के जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओं की मीमांसा की जाती है।
पंड़ालों में प्रदर्शित किया जाता है यह प्रसंग
नवरात्रि में 9 दिन मां दुर्गा के नव रूपों की पूजा अर्चना होती है। मंदिरों और पंडालों के दर्शन करने के दौरान, आपने एक प्रतिमा देखी होगी जिसमें मां दुर्गा एक असुर महिषासुर का वध करते हुए दिखाई देती हैं। इस प्रतिमा में दर्शाए गए दृश्य को देखकर आपके भी मन में सवाल उठते हैं कि आखिरकार मां दुर्गा त्रिशूल से महिषासुर का वध क्यों कर रही हैं? महिषासुर है कौन? क्या है पूरी कहानी?
दुर्गा के किस रूप ने किया था महिषासुर का वध?
मां दुर्गा का एक प्रमुख रूप है महिषासुरमर्दिनी। राक्षस महिषासुर का वध दुर्गा मां ने “महिषासुरमर्दिनी” के रूप में किया था। महिषासुरमर्दिनी उनकी अद्भुत शक्ति, वीरता, और साहस का प्रतीक है। इस रूप में मां दुर्गा ने आदिशक्ति के साथ महिषासुर को पराजित किया और उसे मार दिया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, महिषासुर ने हार मानी और देवी दुर्गा की महाशक्ति को स्वीकार किया।
कौन है महिषासुर और क्या मिला था वरदान?
महिषासुर, एक बड़ा और शक्तिशाली राक्षस था, देवी दुर्गा के सामने अपनी शक्ति को दिखाने आया था। वह अपनी शक्ति के अहंकार में डूबा हुआ था और उसका उद्देश्य देवी दुर्गा की पूजा और आदर को बदल देना था।
महिषासुर के पिता का नाम रंभ था, जो असुरों का राजा था। भागवत पुराण की कथा के अनुसार, रंभ ने अपनी तपस्या से अग्निदेव को प्रसन्न कर एक पुत्र को प्राप्त किया। महिषासुर का जन्म मनुष्य और भैंस के संयोग से हुआ था, इसलिए उसमें ऐसी शक्ति थी कि वह इच्छानुसार भैंस और मानव का रूप धारण कर सकता था।
महिषासुर: शरणागतों का आदर्श शत्रु
महिषासुर अपनी शक्ति के बल पर अपने आप को अजेय घोषित कर चुका था। महिषासुर को ब्रह्मा द्वारा दिया गया वरदान उसके स्वछंदता का प्रतीक था।
महिषासुरमर्दिनी हैं देवी दुर्गा का रूप:
महिषासुर के आतंक से परेशान होने के बाद, सम्पूर्ण देवतागण ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के पास गए। उन्होंने देवी दुर्गा को उत्पत्ति देने का आलंब लिया। मां दुर्गा ने देवताओं के बाधक, रक्षक और आदर्श शत्रु को चुनौती देने के लिए तैयार हो गईं। वे महिषासुर के खिलाफ युद्ध की तैयारियों में जुट गईं।
युद्ध का महत्वपूर्ण पल
महिषासुर वध के समय देवी दुर्गा के रूप को “महिषासुरमर्दिनी” के नाम से जाना जाता है, जिसे नवरात्रि के इस पावन अवसर पर मनाया जाता है। इस युद्ध की उपलब्धि मां दुर्गा की प्रशंसा और आदर का प्रतीक है, जो आदिशक्ति के रूप में सामर्थ्य को प्रतीत कराता है। महिषासुरमर्दिनी के रूप में मां दुर्गा ने धरती की रक्षा की। जो धरती की सुरक्षा के लिए खतरनाक था।
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