पलामू : हर साल 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस (World Elephant Day) मनाया जाता है, जो हाथियों के संरक्षण, उनकी घटती संख्या और उनके समक्ष मौजूद खतरों के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास है। भारत, जहां एशियाई हाथियों की दुनिया की सबसे बड़ी आबादी पाई जाती है, हाथी संरक्षण का एक अहम केंद्र है। परंतु शहरीकरण, वनों की कटाई और हाथी कॉरिडोर के सिकुड़ने से मानव-हाथी संघर्ष लगातार गंभीर होता जा रहा है। 1971 में रिलीज हुई फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ ने इंसान और जानवर के बीच के रिश्ते को बड़ी ही संजीदगी से प्रस्तुत किया। राजेश खन्ना का किरदार ‘राजू’, जो अनाथ था, अपने चार हाथियों की मदद से न केवल ज़िंदगी जीना सीखता है, बल्कि समाज के लिए प्रेरणा भी बनता है। फिल्म में हाथियों का अपनापन, समझदारी और बलिदान दर्शकों को रुला देता है।
इसी चुनौतीपूर्ण परिप्रेक्ष्य में झारखंड का पलामू टाइगर रिजर्व (Palamu Tiger Reserve) एक आशाजनक उदाहरण बनकर उभरता है। यहां के हाथी न सिर्फ अपनी मिश्रित नस्ल (mixed breed) के लिए अनोखे हैं, बल्कि अपने शांत, अनुशासित और अहिंसक व्यवहार के लिए भी विशेष रूप से पहचाने जाते हैं।
World Elephant Day 2025 : पलामू के हाथी: मिश्रित नस्ल की विरासत
भारत में एशियाई हाथियों के चार प्रमुख प्रकार हैं मयूरभंजी, तराई, असमिया और दक्षिणी। पलामू के हाथियों की पहचान इन चारों नस्लों के मिश्रण के रूप में हुई है। डीएनए विश्लेषण से यह साबित हुआ है कि यहां के हाथियों में इन सभी उप-प्रजातियों की विशेषताएं विद्यमान हैं। वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि पलामू के हाथी संरचना और स्वभाव दोनों में ही भारत के अन्य क्षेत्रों से अलग हैं। ये अपेक्षाकृत शांत, कम आक्रामक और सामाजिक रूप से समझदार हैं’।
World Elephant Day 2025 : अनुशासित व्यवहार, न्यूनतम संघर्ष
जहां झारखंड में हर साल औसतन 80 लोग मानव-हाथी टकराव में अपनी जान गंवाते हैं, वहीं पलामू टाइगर रिजर्व में ऐसी घटनाएं बेहद कम होती हैं। यहां के हाथी खेतों में घुसने पर भी स्थानीय बाड़ (घेरान) को नहीं तोड़ते, बच्चों को झुंड से दूर रखते हैं और शोर भी नहीं मचाते। यह अनुशासित व्यवहार इस क्षेत्र में संतुलित सह-अस्तित्व को संभव बनाता है।
संरक्षण और सह-अस्तित्व की पहल
1,129 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले पलामू टाइगर रिजर्व में 150 से 180 हाथी रहते हैं। ये हाथी पारंपरिक कॉरिडोर के ज़रिए मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ तक भी यात्रा करते हैं। पूरे झारखंड में हाथियों की संख्या करीब 600 है। राज्य सरकार, वन विभाग और स्थानीय समुदाय मिलकर हाथी कॉरिडोर को सुरक्षित रखने, निगरानी तकनीक अपनाने और जन-जागरूकता फैलाने जैसे कदम उठा रहे हैं, जिससे भविष्य में संघर्ष और भी कम किया जा सके।
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