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व्रत के दौरान आप अधिक खाते हैं तो जान लीजिए उसके नियम…

by Rakesh Pandey
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नई दिल्ली : इस भागदौड़ भरी जिंदगी में मानव जाति के पास इतना भी समय नहीं है की वह कुछ समय प्रभु के सामने बिताए। हिंदू धर्म में माना गया है की पुण्य कर्म करने से मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है। वहीं जो पाप करते हैं उनको दुख भोगना होता हैं। हर मनुष्य सुख की चाह रखता है। मानव की ऐसी परिस्थिति को देखते हुए वेद पुराणों में मनुष्य के कल्याण के लिए व्रत के नियम बनाए गए हैं।

इसके साथ यह भी बताया गया हैं की वह व्रत करके अपने पापों से छुटकारा पा सकते हैं। व्रत को धर्म का साधक कहा गया है। व्रत करने से पाप का सर्वनाश, पुण्य की उत्पत्ति होती, शरीर और मन शुद्ध होते हैं। लेकिन कई लोग व्रत के दौरान जो एक गलती करते हैं वह है कुछ न कुछ खाते रहना, बार-बार फलाहार करना, शरबत का सेवन करना आदि। उनको यह नहीं पता है की व्रत में कितने बार खाने चाहिए। ऐसे में व्रत करने वालों के मन में एक सवाल जरूर उठना है की व्रत के दौरान कितने बार खाने चाहिए।

यह भी सवाल आता हैं की कितना भोजन करें जिससे व्रत के नियमों का उल्लंघन भी न हो। आइए ज्योतिष के माध्यम से आपको बताते हैं। व्रत करने से शरीर अंदर से शुद्ध होता है। शरीर के भीतर से सभी तरह के विषाक्त पदार्थ बाहर आ जाते हैं, जोकि शरीर को स्वस्थ रखते हैं। मन शांत होता है जोकि आपको अच्छा महसूस कराता है।

मेडिकल के क्षेत्र में भी कहा गया है कि सप्ताह में एक दिन मनुष्य को उपवास रखना चाहिए। व्रत के दौरान सही मात्रा में खाना चाहिए। अधिक मात्रा में भोजन का सेवन करने से आपको नुकसान भी पहुंच सकता है। ऐसे में शरीर के पोषण के लिए दिन में 2 से 3 बार फलाहार करना चाहिए, जिसके साथ बीच बीच में जूस का सेवन करना सर्वश्रेष्ट होता है।

वहीं आप ड्राई फ्रूट्स का भी सेवन कर सकते हैं। व्रत के दौरान आप फल, दूध, छाछ को भोजन के स्थान पर सेवन कर सकते हैं। इसके साथ ही पानी का सेवन करने से आपका पाचन तंत्र भी सही रहता है। वही शास्त्रों में वर्णित है कि व्रत के दौरान भोजन की जगह फल का सेवन करना चाहिए। व्रत के दौरान संपूर्ण आहार से बचें।

व्रत और उपवास में अंतर

उपवास – उपवास में उप का अर्थ समीप और वास का अर्थ बैठना या रहना है। मतलब भगवान में ध्यान लगाना, उनका नाम जप करना और उन्हें याद करना। जब साधक शुद्ध मन से ईश्वर के समीप रहने का प्रयास करता है तो वह उपवास कहलाता है। बिना अन्न ग्रहण करें रहना पड़ता है। इस दौरान उपवास करने वाला साधक अधिक समय तक भगवान के ध्यान में लीन होता है

व्रत – व्रत से अभिप्राय किसी चीज का संकल्प लेकर व्रत को करना, जिसे व्रत कहते हैं। व्रत में भोजन का सेवन किया जाता है। व्रत के दौरान आप किसी भी एक वक्त भोजन का सेवन कर सकते हैं।

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