पूर्णिया : बिहार के पूर्णिया जिले में एक चार साल के मासूम बच्चे ने खेलते-खेलते खिलौने के स्टील गियर को निगल लिया, जो उसके गले में फंस गया, जिससे उसकी तबीयत बिगाड़ने लगी। यह घटना चंपानगर थाना क्षेत्र की है, जहां बच्चा अचानक गंभीर समस्या का सामना कर रहा था। बच्चे के गले में फंसा यह स्टील गियर उसकी वोकल कॉर्ड (स्वरतंत्र) और सांस की नली में फंस गया था, जिससे उसकी हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी।
प्राइवेट अस्पतालों ने किया इलाज से इनकार
बच्चे के परिजनों ने उसे पहले शहर के निजी अस्पतालों में भर्ती कराने का प्रयास किया, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण अस्पतालों ने इलाज करने से मना कर दिया। डॉक्टरों को यह समझ में आ गया कि गरीब परिवार से किसी भी तरह की मनमानी रकम वसूल नहीं की जा सकेगी, इसलिए उन्होंने बच्चे की जान को खतरे में बताते हुए उसे बिना इलाज के भेज दिया। इस बीच, बच्चा लगातार परेशानी का सामना कर रहा था और उसका स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा था।
सरकारी अस्पताल में इलाज के दौरान डॉक्टरों ने बचाई बच्ची की जान
बच्चे की स्थिति और उसकी जान को खतरा होते देख, परिजन बच्चे को सरकारी अस्पताल, GMCH (गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल) लेकर पहुंचे। यहां डॉक्टरों ने त्वरित निर्णय लिया और बिना ऑपरेशन के बच्चे के गले में फंसा स्टील गियर निकालने का साहसिक कदम उठाया।
GMCH के चिकित्सक डॉ. विकास कुमार ने बच्चे के गले का एक्सरे करने के बाद इस खतरनाक स्थिति का आकलन किया। उन्हें यह देखकर पता चला कि स्टील गियर वोकल कॉर्ड और सांस की नली में फंसा हुआ था, जो बच्चे के जीवन के लिए खतरा पैदा कर रहा था। इसके बावजूद, डॉक्टर ने बिना ऑपरेशन के स्टील गियर को बाहर निकालने का फैसला किया।
चैलेंजिंग था इलाज, फिर भी सफल रहा
डॉ. विकास कुमार ने बताया कि, ‘हमने बच्चे को बेहोश कर दिया था। स्टील गियर धारदार था और आधा हिस्सा वोकल कॉर्ड में तथा आधा हिस्सा सांस की नली में फंसा हुआ था। इसे निकालना बेहद चुनौतीपूर्ण था, लेकिन अस्पताल के सहयोगी कर्मियों नंदन कुमार और मुनचुन कुमार की मदद से हम इस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा करने में सक्षम हुए। अब बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ है और उसकी दवा जारी रहेगी। धीरे-धीरे उसकी गले की सूजन भी कम हो जाएगी और वह सामान्य रूप से बोल सकेगा।
परिजनों का आभार, डॉ. विकास कुमार और उनकी टीम की सराहना
बच्चे की मां ने इस संघर्षपूर्ण घड़ी में डॉक्टरों और उनकी टीम के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा, ‘हमने दो दिन तक निजी अस्पतालों का चक्कर लगाया, लेकिन हर अस्पताल में हमें जान का खतरा बताया गया। आखिरकार हम सरकारी अस्पताल पहुंचे और यहां डॉक्टरों ने हमारे बच्चे की जान बचाई। हम डॉ. विकास कुमार और उनकी पूरी टीम का धन्यवाद करते हैं’।
अस्पताल के अधीक्षक डॉ. संजय कुमार ने भी इस सराहनीय कार्य के लिए डॉक्टरों की टीम की सराहना की और कहा कि ऐसे समय में जब निजी अस्पतालों ने मरीज को नकार दिया, सरकारी अस्पताल ने न केवल इलाज किया, बल्कि बच्चे की जान भी बचाई।