Jamshedpur (Jharkhand) : जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी एक बार फिर विवादों के घेरे में है। आरक्षण रोस्टर की अनदेखी कर संविदा शिक्षकों की नियुक्ति का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब विश्वविद्यालय के वित्त पदाधिकारी और परीक्षा नियंत्रक के पद पर नियुक्ति को लेकर सवाल उठने लगे हैं। विश्वविद्यालय के वित्त अधिकारी डॉ. जावेद अहमद और परीक्षा नियंत्रक डॉ. रमा सुब्रह्मण्यम कथित तौर पर अपनी रिटायरमेंट की उम्र सीमा पार करने के बाद भी अपने पदों पर बने हुए हैं।
वरिष्ठ शिक्षक के तौर पर पदस्थापित, पर पद शिक्षकेत्तर
हालांकि, विश्वविद्यालय का तर्क है कि दोनों ही अधिकारी विश्वविद्यालय में वरीय शिक्षक के रूप में पदस्थापित हैं और शिक्षकों के लिए रिटायरमेंट की उम्र सीमा अभी समाप्त नहीं हुई है। लेकिन जानकारों की मानें तो वित्त अधिकारी और परीक्षा नियंत्रक जैसे पद शिक्षकेत्तर श्रेणी (Non-Teaching) के अंतर्गत आते हैं, जिनकी रिटायरमेंट की अधिकतम आयु सीमा 60 वर्ष ही होती है। नियमों के अनुसार, 60 वर्ष की उम्र पूरी होने के बाद कोई भी शिक्षक या शिक्षिका इन शिक्षकेत्तर पदों पर बने नहीं रह सकते हैं।
उम्र सीमा का उल्लंघन, नियमों से अलग विश्वविद्यालय की कार्यशैली
विश्वविद्यालय में यह नियम कुछ अलग ही ढंग से चलता दिख रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, डॉ. जावेद अहमद की जन्मतिथि 01 जनवरी 1962 है, जिसके अनुसार वर्तमान में उनकी उम्र 63 वर्ष हो चुकी है। वहीं, डॉ. रमा सुब्रह्मण्यम की सेवा भी दो वर्ष शेष बताई जा रही है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनकी उम्र भी 63 वर्ष हो चुकी है।
वित्त पदाधिकारी की कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं
विश्वस्त सूत्रों की मानें तो डॉ. जावेद अहमद वित्त पदाधिकारी के पद को छोड़ने के इच्छुक नहीं हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय में अपने पद का भरपूर लाभ उठाया है। आरोप है कि उन्होंने तत्कालीन कुलपति डॉ. अंजिला गुप्ता पर दबाव डालकर अपनी एक बेटी का पीएचडी में एडमिशन कराया था, जिसको लेकर मेरिट लिस्ट की अनदेखी का मामला भी सामने आया था। इसके बाद, इसी तरह से उन्होंने अपनी दूसरी बेटी की नियुक्ति कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर कराई।
परीक्षा नियंत्रक ने दिया था इस्तीफा, कुलपति ने फिर सौंपी जिम्मेदारी
दूसरी ओर, यह भी बताया जाता है कि डॉ. रमा सुब्रह्मण्यम ने निर्धारित उम्र सीमा का हवाला देते हुए परीक्षा नियंत्रक के पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन तत्कालीन कुलपति डॉ. गुप्ता ने कथित तौर पर दबाव बनाकर उन्हें फिर से इसी पद पर नियुक्त कर दिया। इस पूरे मामले पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. राजेंद्र जायसवाल और प्रवक्ता डॉ. सुधीर साहू से मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी।
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