

Jamshedpur News : भारत के प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान एक्सएलआरआई में वार्षिक सीएचआरओ कॉन्क्लेव क्रोनोस 2025 का आयोजन किया गया। इस वर्ष का विषय था – कार्य, कार्यबल और कार्यस्थल की पुनर्कल्पना: 2030 के लिए एचआर नेतृत्व की दिशा। कार्यक्रम का आयोजन पीजीडीएम (जीएम) सत्र 2025–26 के छात्रों द्वारा किया गया।

इस अवसर पर देश के प्रमुख मानव संसाधन विशेषज्ञों ने भविष्य की बदलती कार्यशैली, तकनीकी हस्तक्षेप, मानवीय जुड़ाव, समावेशिता और कार्यबल की लचीलापन जैसी अहम चुनौतियों पर चर्चा की। कॉन्क्लेव के उद्घाटन में संस्थान के निदेशक फादर जॉर्ज सेबेस्टियन ने कहा, “कृत्रिम बुद्धिमत्ता कभी भी मानव संसाधन विशेषज्ञों की जगह नहीं ले सकती। एचआर केवल प्रक्रिया नहीं, बल्कि संस्थान की धड़कन होता है, जिसमें मानवीय संवेदनाएं जुड़ी होती हैं।”

डीन डॉ. संजय पात्रो ने कहा कि बदलते कार्यस्थल की जरूरतों के अनुसार नौकरियों की रचना और साझा प्रयोग पर एचआर नेताओं को ध्यान देना होगा। वहीं डॉ. पूर्ण चंद्र पाधन ने इसे शिक्षा और उद्योग के बीच एक मजबूत सेतु बताया। समापन अवसर पर डॉ. कनगराज अय्यलुसामी और रजनी रंजन ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और आयोजन समिति के छात्रों को विशेष रूप से सम्मानित किया गया।

पैनल परिचर्चाओं की प्रमुख बातें
पहला पैनल – कार्यबल की लचीलापन:
ट्रांस्सियन इंडिया के शलीन मानिक ने कहा कि अब प्रदर्शन के साथ-साथ टैलेंट का लचीलापन और स्थानांतरण जरूरी हो गया है। बीसीजी की सोनलिका यादव ने जोड़ा कि धैर्य, भरोसा और अनुकूलता आज के युग के सबसे बड़े स्तंभ हैं।
दूसरा पैनल – बदलती एचआर नेतृत्व भूमिका:
वेदांता पावर की अभिलाषा मलवीया ने कहा कि आज के दौर में करियर का मतलब है निरंतर पुनराविष्कार और गहरा जुड़ाव। सायन चक्रवर्ती ने कहा कि संगठन की संस्कृति का केंद्र हमेशा मानवीय जुड़ाव ही रहेगा।
तीसरा पैनल – समावेशिता और समानता:
किंड्रिल की कावेरी चौहान ने कहा कि वास्तविक समावेशिता तब ही होगी जब तंत्र न्यूरो विविध लोगों के लिए भी सुलभ होंगे। नॉर्दर्न ट्रस्ट के रॉयडन गोंसाल्वेज ने कहा कि समावेशिता केवल नीति नहीं, बल्कि जीने की संस्कृति होनी चाहिए। इस आयोजन ने साबित किया कि एक्सएलआरआई न केवल भारत, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भविष्य के कार्य और संगठनों की दिशा तय करने में अग्रणी है।
